Atmadharma magazine - Ank 166
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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पू. श्री कानजीस्वामी
शुं कहे छे?
पू. गुरुदेवना उपदेश संबंधमां
“शासनप्रभाव” नामनी पुस्तिकामां थोडुं दिग्दर्शन
कराववामां आव्युं छे; जिज्ञासुओने उपयोगी होवाथी
ते अहीं प्रसिद्ध करवामां आव्युं छे.
(१) सर्वज्ञनी श्रद्धा अने सम्यग्दर्शन
आप भारपूर्वक कहो छो के जेने धर्म करवो होय तेने सर्वज्ञनी श्रद्धा अवश्य होवी जोईए. सर्वज्ञनी श्रद्धा
विना सम्यग्दर्शन होतुं नथी अने सम्यग्दर्शन वगर सर्वज्ञनी साची ओळखाण पण होती नथी,–आ रीते ए बंने
एकबीजाना सहभावी छे, तेथी “धर्मनुं मूळ सर्वज्ञ छे” एम कहो अथवा “धर्मनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे” एम कहो–
ए बंने एक ज छे. आ संबंधमां श्री प्रवचनसारनी गा. ८०–८२ तेमने बहु प्रिय छे, तेमां कह्युं छे के–जे जीव द्रव्य–
गुण–पर्यायथी अरहंतदेवने ओळखे छे ते जीव पोताना आत्माने पण अवश्य ओळखे छे अने तेनो दर्शनमोह
अवश्य क्षय थईने तेने सम्यग्दर्शन थाय छे. पछी शुद्धोपयोगना बळथी रागद्वेषनो क्षय करतां चारित्रमोहनो पण
क्षय थई जाय छे...बधाय तीर्थंकर भगवंतोए आ ज उपायथी कर्मोनो क्षय कर्यो, अने आ ज प्रकारनो उपदेश करीने
निर्वाण पाम्या; ते अरहंत भगवंतोने नमस्कार हो!
(२) सम्यक् पुरुषार्थ, सर्वज्ञनो निर्णय, अने क्रमबद्धपर्याय.
आ जगतमां ‘सर्वज्ञ’ छे; सर्वज्ञे बधा पदार्थोनी त्रणे काळनी पर्यायो प्रत्यक्ष जाणी लीधी छे, अने ए ज
प्रमाणे थवानुं पदार्थनुं स्वरूप छे. आमां कंई पण फेरफार करवानी जेनी बुद्धि छे तेने सर्वज्ञनी श्रद्धानो, के
वस्तुस्वरूपना निर्णयनो, पुरुषार्थ नथी. सर्वज्ञनी श्रद्धामां अने वस्तुस्वरूपनो निर्णय करवामां स्वसन्मुख अपूर्व
पुरुषार्थ छे. आवा पुरुषार्थ विना सर्वज्ञनो के क्रमबद्धपर्यायनो साचो निर्णय कदी थई शकतो नथी.
सर्वज्ञनी श्रद्धामां क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय पण आवी ज जाय छे, अने मोक्षमार्गनो सम्यक् पुरुषार्थ पण
तेमां आवी ज जाय छे. आ विषय पू. गुरुदेवना श्रीमुखथी सांभळीने जरूर समजवा योग्य छे. “सर्वज्ञे जे देख्युं छे
ते ज थशे, तेमां फेरफार नहि थाय,–ए रीते सर्वज्ञनी ओथ लेतां तो पुरुषार्थ ऊडी जाय छे”–आ मान्यतामां घणी
गंभीर भूल छे. पू. गुरुदेव कहे छे केः हे भाई! शुं तें सर्वज्ञनो निर्णय कर्यो छे? “आ जगतमां सर्वज्ञ छे,–जेने भव
नथी, राग नथी, द्वेष नथी” एम सर्वज्ञनो निर्णय करवामां रागादिथी भिन्न ज्ञानस्वभावना निर्णयनो पुरुषार्थ पण
आवी ज जाय छे; माटे पहेलां तुं सर्वज्ञनो निर्णय कर. सर्वज्ञनो निर्णय करवाथी–(तेमां ज्ञानस्वभावनो
क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय पण आवी ज जाय छे.) तने खबर पडशे के तेमां सम्यक् पुरुषार्थ आवे छे के नथी आवतो!
ः ४ः
आत्मधर्मः १६६