Atmadharma magazine - Ank 166
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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कर्तव्य समजावे छे. अने तेमां पण पुराणोनी कथाओ द्वारा ज्यारे संतपुरुषोनुं द्रष्टांत आपे छे त्यारे, पुराणपुरुषोनुं
चरित्र जाणे के आपणी नजर सामे ज बनी रह्युं होय–एवुं लागे छे.
(८) पुण्य – पाप अने धर्म
मिथ्यात्व–हिंसादि भावो पाप छे; दया–पूजा वगेरे शुभराग पुण्यबंधनुं कारण छे; अने धर्म तो आत्मानो
वीतरागभाव छे.–आ रीते त्रणेनुं भिन्नभिन्न स्वरूप आप सारी रीते समजावो छो. एज प्रमाणे नवतत्त्वोमां जीव–
अजीवनी भिन्नता, आस्रव अने संवरनी भिन्नता, वगेरेनुं पण तेओ घणुं स्पष्ट विवेचन करे छे. रागद्वारा संवर
थवानुं मानवुं ते तत्त्वनी भूल छे.
(९) क्रिया
क्रियाना केटला प्रकार छे अने तेमां कई क्रियाथी धर्म थाय छे ते संबंधमां आप समजावो छो के, चेतन अने
जड पदार्थनी क्रिया भिन्नभिन्न छे; चेतननी क्रिया चेतनमां होय छे ने जडनी क्रिया जडमां होय छे. चेतननी क्रिया जड
करतुं नथी, अने जडनी क्रिया चेतन करतुं नथी. क्रियाना त्रण प्रकार छे. –
१. धर्मनी क्रिया.
२. विकारनी क्रिया
३. जडनी क्रिया.
(१) आत्मानो ज्ञान–आनंद स्वभाव छे. ते जडथी अने रागादिथी पृथक् छे. एवा स्वभावमां अंतर्मुख
थईने जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप क्रिया थाय छे ते धर्मनी क्रिया छे; आ ज क्रिया मोक्षनुं कारण छे.
(२) आत्मा पोताना स्वभावथी बहिर्मुख थईने राग–द्वेष–मोहरूप जे भाव करे छे ते विकारनी क्रिया छे,
अने ते क्रिया संसारनुं कारण छे.
(३) आत्माथी भिन्न देहादिनी जे क्रिया छे ते बधी जडनी क्रिया छे. ते जडनी क्रियाथी आत्माने न तो धर्म
थाय छे के न अधर्म;–केम के तेनो कर्ता आत्मा नथी.
आ रीते त्रणे क्रियाओनुं भिन्न भिन्न स्वरूप समजवुं जोईए.
(१०) सम्यग्दशन
पू. गुरुदेवना सर्व उपदेशनुं मुख्य वजन “सम्यग्दर्शन” उपर छे. आप कहो छो केः सम्यग्दर्शन अलौकिक
अने अपूर्व चीज छे; सिद्धभगवान जेवा अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद समकितीए पोताना आत्मामां चाखी लीधो छे.
एक सेकंडना सम्यग्दर्शनमां एटली ताकात छे के अनंत भवनो नाश करी नांखे. सम्यग्दर्शन थतां ज जीव निःशंक
थई जाय छे के बस! हवे मारे अनंत भवनो अभाव थई गयो, हवे हुं साधक थयो ने अल्पकाळमां ज मारी मुक्ति
थशे. समकितीने स्वयं पोताथी ज पोतानो निर्णय थाय छे, बीजाने पूछवुं नथी पडतुं. जीवे संसार परिभ्रमणमां शुभ
रागरूप व्रत–तप–त्याग अनंत वार कर्या छे परंतु सम्यग्दर्शन कदी प्रगट कर्युं नथी; अने सम्यग्दर्शन वगर कदी
सम्यग्ज्ञान के सम्यक्चारित्र होतुं नथी. सम्यग्दर्शन वगर ज्ञान अने चारित्र पण मिथ्या ज होय छे, माटे सम्यग्दर्शन
ज धर्मनुं मूळ छे–एम जाणीने पहेलां सम्यग्दर्शननो प्रयत्न करवो जोईए.
–आ रीते पू. गुरुदेवना उपदेशनो संक्षिप्त परिचय कराव्यो. पू. गुरुदेवनी सानुभव प्रवचन शैली
श्रोताजनोने मुग्ध करी नांखे छे. प्रवचनमां तेओ अनेक युक्तिओ, द्रष्टांतो अने शास्त्रना आधारो आपे छे. हजारो
श्रोताजनोनी सभामां पण संपूर्ण शांत वातावरण रहे छे अने समयनी बराबर नियमितता जळवाय छे तेओश्रीनी
वाणी आत्मस्पर्शी होवाथी निःशंकरूपे धाराप्रवाह चाली जाय छे.
ः ६ः
आत्मधर्मः १६६