पोतानो अज्ञानभाव ज बंधनुं कारण छे. ज्ञानी तो पोताना ज्ञानभाव रूपे ज परिणमता होवाथी तेने
बंधन थतुं नथी; अने अज्ञानी पोताना अज्ञान भावरूपे परिणमतो होवाथी तेने बंधन थाय छे. ज्ञानी
अने अज्ञानीना अंतर–परिणमननुं मोटुं अंतर पू. गुरुदेवे आ प्रवचनमां ओळखाव्युं छे.
ज्ञानभावपणे ज परिणमे छे. अल्परागादि थाय तेमां तन्मयपणे परिणमता नथी. आवा ज्ञानी धर्मात्मा
बाह्यभोगोपभोगनी सामग्री वच्चे वर्तता होय त्यारे पण अज्ञानजनित बंधन तेने थतुं नथी संयोगो ज्ञानीने
अज्ञानरूप परिणमावी शकता नथी, तेथी संयोगना कारणे बंधन थतुं नथी. अज्ञानी ते संयोगना प्रसंग वखते
ज्ञानने भूलीने पर साथे एकताबुद्धिथी, रागमां लीन थईने अज्ञानभावपणे परिणमे छे. तेथी तेने पोताना
अज्ञानभावने लीधे बंधन थाय छे.
अर्थात् काळीवस्तु खावाथी शंख काळो थई जतो नथी; तेम उज्जवळ ज्ञानभावरूपे परिणमता ज्ञानी परसंयोगमां
उभेला देखाय तोपण ते परद्रव्य तेना ज्ञानने अज्ञानरूप करी शकतुं नथी; केम के कोई पण द्रव्य बीजा द्रव्यने निमित्त
थई ने परभावस्वरूपे परिणमावी शकतुं नथी, अने परद्रव्यथी लाभ–नुकशान माननारो अज्ञानी जीव भगवाननुं
नाम लेतो होय त्यारे पण तेना अज्ञानभावने लीधे तेने बंधन ज थाय छे; ते स्वयं अपराधी होवाथी बंधाय छे.
रागादिथी धर्म माननारो मिथ्याद्रष्टि जीव कदाचित पूंजणी लईने परजीवनी दयाना शुभ परिणाममां वर्ततो होय तो
पण ते वखतेय पोताना अज्ञानभावने लीधे तेने बंधन ज थाय छे. परनी क्रिया मारी एम मानीने रागमां
लीनपणे वर्ततो होवाथी अज्ञानी क्षणे क्षणे बंधाय छे; ने ज्ञानी तो ज्ञानानंदस्वरूपमां एकत्वपणे वर्तता थका क्षणे
क्षणे कर्मोथी छूटता ज जाय छे.
परिणमता थका कर्मोथी छूटता ज जाय छे. ए ज्ञानभावनी ओळखाण अज्ञानीने नथी. संयोग घटया माटे बंधन
घटयुं अने संयोग वध्या माटे बंधन वध्युं एम अज्ञानीओ ज बाह्यद्रष्टिथी देखे छे, पण वस्तु स्थिति एम नथी.
अंतर्मुख थईने ज्ञानरूपे परिणमता ज्ञानीने अज्ञानरूप करवा कोई परद्रव्यनी ताकात नथी; अने स्वयं
अज्ञानभावरूपे वर्तता अज्ञानीने ज्ञानरूप करवा कोई परद्रव्य समर्थ नथी.
श्रावणः २४८३