Atmadharma magazine - Ank 166
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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परद्रव्य बंधनुं कारण नथी
ज्ञानीने बंधन केम थतुं नथी अने अज्ञानीने बंधन केम थाय छे? तेनो खुलासो करतां आचार्य
भगवान कहे छे केः बाह्य संयोगो तो ज्ञानीने के अज्ञानीने कोईने बंधननुं कारण थता नथी. जीवोने
पोतानो अज्ञानभाव ज बंधनुं कारण छे. ज्ञानी तो पोताना ज्ञानभाव रूपे ज परिणमता होवाथी तेने
बंधन थतुं नथी; अने अज्ञानी पोताना अज्ञान भावरूपे परिणमतो होवाथी तेने बंधन थाय छे. ज्ञानी
अने अज्ञानीना अंतर–परिणमननुं मोटुं अंतर पू. गुरुदेवे आ प्रवचनमां ओळखाव्युं छे.
(समयसार–बंधअधिकार उपरना प्रवचनोमांथी)
अंतर्मुख थईने ज्यां ज्ञानस्वभावी आत्मानो पत्तो लाग्यो त्यां धर्मीए पोताना आत्माने परथी भिन्न
जाण्यो, अने रागादि परभावोथी पण आत्मस्वभावनी भिन्नता जाणी; हवे ते अंतर्मुख ज्ञानस्वभावनी द्रष्टिथी
ज्ञानभावपणे ज परिणमे छे. अल्परागादि थाय तेमां तन्मयपणे परिणमता नथी. आवा ज्ञानी धर्मात्मा
बाह्यभोगोपभोगनी सामग्री वच्चे वर्तता होय त्यारे पण अज्ञानजनित बंधन तेने थतुं नथी संयोगो ज्ञानीने
अज्ञानरूप परिणमावी शकता नथी, तेथी संयोगना कारणे बंधन थतुं नथी. अज्ञानी ते संयोगना प्रसंग वखते
ज्ञानने भूलीने पर साथे एकताबुद्धिथी, रागमां लीन थईने अज्ञानभावपणे परिणमे छे. तेथी तेने पोताना
अज्ञानभावने लीधे बंधन थाय छे.
परसंयोगना निमित्ते ज्ञानीने बंधन थतुं नथी ते समजाववा अहीं शंखनो दाखलो आप्यो छे. जेम शंख
पोताना स्वभावथी सफेद छे. ते काळी–राती वगेरे चीजोने खाय तोपण तेना कारणे तेनुं श्वेतपणुं हणातुं नथी,
अर्थात् काळीवस्तु खावाथी शंख काळो थई जतो नथी; तेम उज्जवळ ज्ञानभावरूपे परिणमता ज्ञानी परसंयोगमां
उभेला देखाय तोपण ते परद्रव्य तेना ज्ञानने अज्ञानरूप करी शकतुं नथी; केम के कोई पण द्रव्य बीजा द्रव्यने निमित्त
थई ने परभावस्वरूपे परिणमावी शकतुं नथी, अने परद्रव्यथी लाभ–नुकशान माननारो अज्ञानी जीव भगवाननुं
नाम लेतो होय त्यारे पण तेना अज्ञानभावने लीधे तेने बंधन ज थाय छे; ते स्वयं अपराधी होवाथी बंधाय छे.
कोई तिर्यंच–बळदनो जीव समकिती होय ने खेतरमां फरतां फरतां लीला मोल चरतो होय, छतां ते वखते
य अंतरमां ज्ञानानंदस्वभावनी द्रष्टि वर्तती होवाथी अज्ञानजनित बंधन तेने थतुं ज नथी. अने बीजो कोई
रागादिथी धर्म माननारो मिथ्याद्रष्टि जीव कदाचित पूंजणी लईने परजीवनी दयाना शुभ परिणाममां वर्ततो होय तो
पण ते वखतेय पोताना अज्ञानभावने लीधे तेने बंधन ज थाय छे. परनी क्रिया मारी एम मानीने रागमां
लीनपणे वर्ततो होवाथी अज्ञानी क्षणे क्षणे बंधाय छे; ने ज्ञानी तो ज्ञानानंदस्वरूपमां एकत्वपणे वर्तता थका क्षणे
क्षणे कर्मोथी छूटता ज जाय छे.
ज्ञानीने बहारनी क्रियाना संयोगमां उभेला देखीने ‘ते संयोगने लीधे ज्ञानीने बंधन थतुं हशे,’ एम
अज्ञानी कल्पे छे; पण ते वखते य ज्ञानी तो संयोगथी पार पोताना ज्ञानस्वभावनी द्रष्टिथी ज्ञानभावपणे
परिणमता थका कर्मोथी छूटता ज जाय छे. ए ज्ञानभावनी ओळखाण अज्ञानीने नथी. संयोग घटया माटे बंधन
घटयुं अने संयोग वध्या माटे बंधन वध्युं एम अज्ञानीओ ज बाह्यद्रष्टिथी देखे छे, पण वस्तु स्थिति एम नथी.
हाथमां तलवारनो संयोग होय माटे ज्ञानीनुं ज्ञान पलटीने अज्ञानरूप थई जाय–एम नथी अने लाखो वर्ष
सुधी द्रव्यलिंग धारण करीने शुभरागमां वर्ते तेथी कांई अज्ञानीनुं अज्ञान छूटीने ज्ञान थई जाय–एम नथी. स्वयं
अंतर्मुख थईने ज्ञानरूपे परिणमता ज्ञानीने अज्ञानरूप करवा कोई परद्रव्यनी ताकात नथी; अने स्वयं
अज्ञानभावरूपे वर्तता अज्ञानीने ज्ञानरूप करवा कोई परद्रव्य समर्थ नथी.
जेम धोळो शंख पण ज्यारे पोतानी मेळे धोळाश छोडीने काळाशरूपे परिणमे त्यारे ते स्वयं काळो थाय छे;
भले ते वखते काळी चीज खातो होय के न
श्रावणः २४८३
ः ७ः