Atmadharma magazine - Ank 167
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 25

background image
: १० : आत्मधर्म : भादरवो : २४८३ :
व्यापे एवुं ज मारा आत्मद्रव्यनुं खरुं स्वरूप छे. मारो आत्मा परमां रहेलो नथी, मारो आत्मा रागमां रहेलो
नथी, मारो आत्मा तो उपयोगमां रहेलो छे. अशुद्ध पर्यायमां शुद्ध द्रव्य कई रीते व्यापे? अशुध्धता साथे शुद्ध
द्रव्यनी एकता थई शके नहि; माटे रागमां आत्मा नथी आवतो. आत्मा तरफ वळवा माटे राग काम नथी
आवतो, रागनो तो अभाव करीने उपयोग अंर्तमुख थतां तेमां आत्मा आवे छे––आत्मानो अनुभव थाय
छे. आ रीते आ एकत्वशक्ति के अनेकत्वशक्तिथी आत्मानो निर्णय करतां पण पर्याय स्व तरफ ज वळी जाय
छे; ने शक्तिओनुं शुद्ध परिणमन थईने एक आत्मा पोतानी अनेक निर्मळ पर्यायोमां व्यापे छे. अज्ञानदशामां
पर्यायमां एकलो विकार व्यापतो ते अशुद्ध परिणमन हतुं, ने हवे स्वाश्रये शुद्ध परिणमन थतां पर्यायमां आखो
भगवान आत्मा पोते व्याप्यो छे. आवुं अनेकान्तमूर्ति आत्मानी ओळखाणनुं फळ छे.
*
परमात्मानी
वाणी..
ने... धर्मनो क्रम
परमात्मानी वाणी परमात्मा थवा माटे छे;
वीतरागनी वाणी वीतरागतानी ज पोषक
होय; रागने जे पोषे ते वाणी वीतरागनी नहि.
देव–गुरु–शास्त्र ज जेनां खोटा छे तेने
आत्माना ज्ञानस्वभावनी के क्रमबद्ध पर्यायनी
साची श्रद्धा होती नथी.
मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय ने योग–ए
पांच बंधना कारणो छे; ते टाळवानो क्रम एवो छे
के पहेलांं मिथ्यात्व टळे; मिथ्यात्व टळ्‌या पछी ज
अव्रत, प्रमाद, कषाय ने योग अनुकमे टळे. ––आ
ज धर्मनो क्रम छे. जे जीव सम्यग्दर्शन वगर
मुनिपणुं वगेरे माने छे ते धर्मना क्रमने जाणतो
नथी.
सर्वज्ञनी जेने प्रतीत नथी तेने तो देवनी ज
ओळखाण नथी, मोक्षतत्त्वने पण ते जाणतो नथी
ने आत्माना ज्ञानस्वभावने पण ते जाणतो नथी;
एवा जीवने सम्यग्दर्शन के मुनिपणुं होतुं नथी.
धर्मना क्रममां सौथी पहेलुं सम्यग्दर्शन छे.