ते जगमाहीं सहज वैरागी।
ज्ञानी मगन विषयसुखमाहीं
यह विपरीत संभवे नाहीं।।
मग्न थाय, एवुं विपरीतपणुं कदी संभवतुं नथी. ज्ञानी ज्ञानस्वभावमां मग्न छे, राग के बाह्य विषयो होवा छतां
तेमां ते मग्न नथी, माटे ज्ञानी कर्मथी लेपाता नथी, तेने नवां कर्मो बंधाता नथी पण जूनां कर्मो निर्जरता ज
जाय छे अज्ञानीने तो ज्ञानस्वभावनुं भान नथी, ते रागमां तथा विषयोमां ज लीनपणे वर्ते छे तेथी ते कर्मोथी
बंधाय छे. ज्ञानीनो स्वभाव, सोनानी जेम कर्मपंकथी अलिप्त रहेवानो छे, ने अज्ञानीनो स्वभाव, लोढानी जेम
कर्मपंकथी लेपावानो छे.
ज परिणमे छे, ने ज्ञानभावनुं परिणमन तो बंधनुं कारण नथी, तेथी धर्मीने बंधन थतुं नथी.
थतुं नथी. कर्मफळना संयोगमां ऊभो होवा छतां ते संयोग देखीने ज्ञानीने शंका पडती नथी के आ मने बंधनुं
कारण थशे... ते तो निःशंकपणे पोताना ज्ञानमय भावमां ज वर्ते छे. अनुकूळताना ढगला हो के प्रतिकूळताना
गंज हो, छतां ज्ञानीनुं ज्ञान कदी अज्ञानरूप थई जतुं नथी. केमके ज्ञानी पोताना स्वभावथी ज ज्ञानभावरूपे
परिणमे छे, कोई परवस्तु तेना स्वभावने अन्यथा करी शकती नथी. परने लीधे बंधन थाय एवी शंका ज्ञानीने
कदी पडती नथी. आवी ज्ञानस्वभावनी प्रतीत करीने निःशंकपणे ज्ञानभावमां परिणमवुं ते निर्जरानो उपाय छे,
ने ते ज धर्म छे.
साधन थवानी ताकात छे. ए सिवाय बहारना शास्त्रोमां पण एवी ताकात
नथी के आत्मानुं साधन थाय.
सांभळ्या; पण शुद्ध चिद्रूप आत्माने में कदी न जाण्यो तेथी मारुं परिभ्रमण
थयुं. बहारमां में आत्माने शोध्यो पण अंतर्मुख थईने कदी में मारा आत्माने