केम होय? ज्ञानीने तो एवी सहज करुणा आवे छे के अरेरे! आ जीवो बीचारा पोताना स्वरूपने भूली जईने
अज्ञानने लीधे महान दुःखमां डुबेलां छे, एनाथी छूटवाना उपायनी पण तेमने खबर नथी! हुं जे परिपूर्ण
सुखने प्राप्त करवा चाहुं छुं ते सुख बीजा जीवो पण पामे–एम ज्ञानीने तो अनुमोदना छे. उपदेशमां तो ज्ञानी–
धर्मात्मा के वीतरागी संतमुनिओ पण एम कहे के “जे जीवो धर्मनो तीव्र विरोध करशे के तीव्र पापभावो करशे
ते जीवो मिथ्यात्वना सेवनथी नरक–निगोदमां रखडशे ने अनंत दुःख पामशे” –आम कहेवामां ज्ञानी–संतोने
कांई कोई व्यक्ति प्रत्ये द्वेषबुद्धि नथी, तेमज तेमने कांई कोई जीवने नरक–निगोदमां मोकलवानी भावना नथी;
परंतु उलटी करुणाबुद्धि छे–हितबुद्धि छे, एटले यथार्थ वस्तुस्थिति बतावीने जीवोने मिथ्यात्वथी छोडाववा मांगे
छे. हे भाई! मिथ्यात्वनुं आवुं आकरुं फळ छे, एम जाणीने तुं ते मिथ्यात्वनुं सेवन छोडी दे, ने आत्मानुं स्वरूप
समज–जेथी तारुं हित थाय! आम हित माटे ज ज्ञानीनो उपदेश छे–पण शुं थाय!! अरेरे, आ काळ! जीवो
हितनी वात सांभळतां पण