करवानो छे. जे जीवो सत्य समजे तेनी बलिहारी छे... तेना संसारनो एक बे भवमां अंत आवी जशे. बाकी
जगतमां तो संसार चाल्या ज करवानो छे... ने संसारमां रखडवानो योग्य परिणामवाळा जीवो पण रह्या ज
करवाना छे... जगतना बधाय जीवो सत्य समजीने मोक्ष पामी जाय–एम कदी बनवानुं नथी, माटे आ तो पोते
सत्य समजीने पोतानुं हित साधी लेवा जेवुं छे. अज्ञानीओ पोकार करे तो करो... पण तेथी कांई वस्तुनुं स्वरूप
तो फरी नहि जाय. वस्तुस्वरूप न समजतां जेओ विरोध करे छे तेमना उपर ज्ञानीने करुणा आवे छे.
भावना नथी के अमारो विरोध करे छे माटे तेने निगोदमां मोकलवो, परंतु वस्तुस्थिति ज एवी छे के मिथ्यात्व
सेवनार जीव पोताना ऊंधा परिणामने लीधे निगोदमां जाय छे... एम बतावीने आचार्यदेव करुणाबुद्धिथी
जीवोने मिथ्यात्वथी छोडाववा मांगे छे... अरे जीव! मुनिदशानुं वास्तविक स्वरूप ओळख अने साची श्रद्धा कर,
के जेथी आ संसारना दुःखोथी तारो आत्मा छूटे ने मोक्षसुख पामे.
रह्या छे, परंतु वास्तविक मोक्षमार्गने ओळखता नथी; एवा जीवोने जोईने करुणा आवे छे.
क्रियाथी धर्म थाय के रागथी धर्म थाय एवी मिथ्या श्रद्धानुं फळ घोर संसार छे, माटे जेओ दुःखथी छूटवा मांगता
होय तेओ एवी मिथ्यामान्यता छोडो ने आत्मानुं रागरहित–देहथी भिन्न वास्तविक ज्ञानानंद स्वरूप समजो,
एम ज्ञानीओनो उपदेश छे.
बाह्य विषयोथी रहित अंतरमां चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदने जाणीने तेने जे साधे छे ते अंतरात्मा छे.
अने आत्मानो परिपूर्णआनंद जेमने प्रगटी गयो छे ते परमात्मा छे. ते परमात्मा परिपूर्ण ज्ञानसहित
अलोकाकाशने पण प्रत्यक्षपणे परिपूर्ण जाणे छे एवुं ज दिव्यज्ञाननुं कोई अचिंत्य सामर्थ्य छे. ज्ञाने
अनादिअनंत काळने के अनंत आकाशने प्रत्यक्ष जाणी लीधुं माटे ज्ञानमां तेनो छेडो आवी गयो–एम कांई नथी;
जो छेडो आवी जाय तो अनादि–अनंतपणुं क्यां रह्युं? माटे ज्ञाने तो अनादिअनंतने अनादिअनंतरूपे ज जेम
छे तेम जाण्युं छे. –आ ज्ञाननो कोई अचिंत्य महिमा छे. अज्ञानीने अनादिअनंतकाळनी महानता भासे छे, पण
ज्ञानसामर्थ्यमां तेना करतां अनंतगणी महानता छे ते तेने भासती नथी, अने ज्ञानस्वभावनो महिमा
प्रतीतमां आव्या वगर आ वातनुं कोई रीते समाधान थाय तेम नथी. काळनुं अनादिअनंतपणुं तेने मोटुं लागे
छे पण ज्ञाननुं अनंतसामर्थ्य तेने मोटुं नथी लागतुं, एटले ज ‘अनादिअनंतने ज्ञान कई रीते जाणे? ’ एम
तेने शंका पडे छे, तेमां खरेखर तो ज्ञानसामर्थ्यनी ज शंका छे. काळना अनादिअनंतपणा करतां ज्ञानसामर्थ्य
मोटुं छे,