Atmadharma magazine - Ank 167
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४८३ :
एम जो विश्वास आवे तो ज तेने अनादिअनंतनुं ज्ञान कई रीते थाय छे ते ख्यालमां आवे, अहा! अचिंत्य
ज्ञानसामर्थ्यमां अनादिअनंतकाळ तो क्यांय समाई जाय छे, ने काळ करतां य अनंतगणुं आकाश पण तेमां
परिपूर्ण जणाई जाय छे. आवुं ज्ञान अने अतीन्द्रिय आनंद जेमने परिपूर्ण प्रगटी गया छे एवा परमात्माने
केवली कहो, शुद्ध कहो, जिन कहो, ईश्वर कहो, बुद्ध कहो, महावीर कहो, सीमंधर कहो, ‘समयसार’ कहो–ईत्यादि
अनेक नामोथी कहेवाय छे.
ते परमात्मा क्षुधा–तृषा–रोगादि दोषोथी रहित छे तेथी तेमने ‘निर्दोष’ पण कहेवाय छे. भगवानने
परिपूर्ण ज्ञानप्रकाश प्रगटी गयो छे तेथी तेमने ‘परमज्योति’ अथवा ‘चैतन्यसूर्य’ पण कहेवाय छे. वळी
भगवानने ‘शास्ता’ एटले के ‘शासक’ (शासन करनारा) पण कहेवाय छे, केमके मोक्षमार्गरूप उत्कृष्ट
शासनना भगवान नायक छे. शासन एटले उपदेश–शिखामण; मोक्षमार्गनो उत्कृष्ट उपदेश देनारा होवाथी
भगवान शासक छे. वळी मोक्षमार्गनुं विधान (प्रतिपादन) करनारा होवाथी भगवानने ‘विधाता’ पण कहे छे.
‘छो मोक्षमार्ग विधि धारणथी ज धाता’ एम भक्तामरस्तुतिमां पण कह्युं छे. कोई विधाता आवीने लेख लखी
जाय छे, ए वात तो खोटी छे. एवो कोई आ जगतमां विधाता नथी, पण सर्वज्ञपरमात्माना ज्ञानमां क्यारे शुं
थयुं–शुं थाय छे ने शुं थशे? ते बधुं लखाई (जणाई) गयुं छे तेथी तेओ ज विधाता छे. पोते मोक्षमार्गनी विधि
(अर्थात् सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने) धारण करीने मुक्ति पाम्या ने बीजा जीवोने पण ते मुक्तिमार्गनुं विधान
कर्युं तेथी हे परमात्मा! आप ज अमारा विधाता छो.
आ प्रमाणे, सर्वज्ञता अने परिपूर्ण आनंदने पामेला परमात्मानुं स्वरूप ओळखीने, तेमना जुदा जुदा
अनेक गुणोनी अपेक्षाथी तेमने जुदा जुदा अनेक नामोथी कहेवामां आवे छे. ए खास ध्यान राखवुं के जेओ
परिपूर्ण ज्ञान ने आनंदने पामेला होय एवा परमात्मानी ज आ वात छे. बाकी जगतमां मिथ्याद्रष्टि जीवो
परमात्मानुं स्वरूप अनेक प्रकारे विपरीतपणे मानी रह्या छे, ते बधाय साचा छे एम न समजवुं.
बहिरात्मा, अंतरात्मा अने परमात्मानुं वास्तविक स्वरूप जे ओळखे छे, ते तो बहिरात्मपणुं छोडीने,
।। ६।।
हवे बहिरात्मपणुं छोडाववा माटे आचार्यदेव तेनुं स्वरूप स्पष्टपणे ओळखावे छे; तेमां पहेलांं ए
बतावे छे के बहिरात्माने देहमां ज आत्मबुद्धि केम थई गई छे? –
बहिरात्मेन्द्रियद्वारैरात्म ज्ञानपराङ्मुखः।
स्फुरितः स्वात्मनो देहमात्मत्वेनाध्यवस्यति।।७।।
बहिरात्मा पोताना आत्मज्ञानथी परांग्मुख वर्ततो थको, ईन्द्रियो द्वारा शरीरादि बाह्य पदार्थोने ज
जाणवामां तत्पर छे, आत्माने तो ते देखतो नथी, तेथी ते शरीरने ज आत्मा तरीके मानी ल्ये छे, तेने देहाध्यास
थई गयो छे, तेथी देहथी पोतानुं जुदापणुं तेने भासतुं ज नथी. ज्ञानने आम–बहारमां ज जोडे छे, ––पण
अंदरमां वाळतो नथी. बहारमां ईन्द्रियोना अवलंबने तो जड देखाय, कांई आत्मा न देखाय; तेथी ते
बहिरात्माने शरीरथी पृथक् आत्मानुं अस्तित्व भासतुं ज नथी, ते तो शरीरने ज आत्मा माने छे. आहा! केवी
भ्रमणा!! के पोतानुं अस्तित्व ज पोते भूली गयो! ने जडमां ज पोतानुं अस्तित्व मानी बेठो! ––एने समाधि
क्यांथी थाय?
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