Atmadharma magazine - Ank 167
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४८३ : आत्मधर्म : १७ :
आत्मानो धर्म
[श्री पद्मनंदी पच्चीसी : एकत्व अधिकार]
पालेज नगरीमां मागशर शुद
पांचम ने शुक्रवारना रोज पू. गुरुदेवनुं प्रवचन
आत्मा देहथी भिन्न शुं तत्त्व छे तेना भानवगर जीवने धर्म थतो नथी; अने धर्म वगर अनंत–
अनंतकाळथी जीव चार गतिमां रझळी रह्यो छे. संतो करुणाबुध्धिथी तेने धर्मनुं स्वरूप समजावे छे, पण आखी
जिंदगी वेपार–धंधा अने संसारनी लोहवाट आडे जीवने धर्म सांभळवानी दरकार थती नथी. धर्म समज्या
वगर स्वर्ग–नरक–तिर्यंच तेमज मनुष्य चार गतिना अवतार अनंतवार जीवे कर्या छे, तेमां धर्मनुं श्रवण पण
जीवने बहु दुर्लभ छे.
संतो अने महापुरुषो आत्मानुं हित थाय एवो धर्म करुणाबुद्धिथी समजावे छे, पण मोहने लीधे जीव ते
मानतो नथी अने सांभळतो पण नथी. भाई! तुं विचार तो कर के आ देह छूटी जतां तारुं शुं थशे? अहीं
जिंदगी सुधीना २प–प० वर्ष सुधी बधी जातनी अनुकूळता रहे ने कांई प्रतिकूळता न आवे तेनो केटलो विचार
करे छे? तो हे जीव! आ देह छूटी जतां बीजी ज क्षणे बीजो नवो देह मळशे, आ देह अने संयोगो पलटीने
बीजो ज अवतार मळशे, तो ते आखा अवतारमां सुख थाय ने दुःख न थाय––तेने माटे तें कांई उपाय कर्यो?
जो आ भव पछी बीजा भवनो विचार करे तो कांईक हितनो उपाय करे. भाई, आ देह जेटलो ज शुं तारो
आत्मा छे? के आत्मा पछी रहेवानो छे? आत्मा तो कायम रहेवानो छे. आ देह छूटतां तरत ज बीजो अवतार
शरू थई जशे; तो बीजा अवतारमां आत्मानुं शुं थशे? तेनो तो विचार कर.
ज्यां सुधी आत्मानी मुक्ति अने परमात्मदशा न थाय त्यां सुधी तेने अवतार थया ज करे छे.
भूतकाळमां नजर नांखतां क्यांय जेनो आरो नथी एटला अनंत अनंत अवतार जीव अज्ञानभावथी करी
चूक्यो छे.
आत्मज्ञान वगर तीव्र हिंसादि पाप करनार, मांस खानार, शिकार–चोरी करनार–एवा तीव्र पाप
सेवनारा जीवो नीचे नरकमां जाय छे. जेओ तीव्र माया–कपट, लोहवाट करे छे तेओ तिर्यंच थाय छे. कंईक दया–
दानादिना परिणाम करीने पुण्य बांधनार जीव स्वर्गमां जाय छे. स्वर्गमां पण जीव अनंतवार जई आव्यो.
मनुष्य अवतार तो अनंतकाळे बहु दुर्लभ छे, तेमां संतोनो उपदेश छे के हवे आत्मानुं भान करीने
संसारचक्रमांथी बहार नीकळो. जेम नदीमां कोई रमतो होय ने पाछळ मोटुं घोडापूर आवतुं होय, त्यां कोई
शिखामण आपे के– ‘भाई, झट बहार नीकळी जाओ, नहि तो पाछळ मोटुं पूर आवे छे तेमां तणाई जशो’...
छतां जो न नीकळे तो शुं थाय? तणाईने दरिया भेगो थाय ने डूबी जाय. तेम अनंतअनंतकाळे मनुष्य अवतार
मळ्‌यो, तेमां पाछळ मृत्युरूपी घोडापूर चाल्युं आवे छे... संतोनो उपदेश छे के अरे जीवो! आ अल्पजीवनमां
आत्माने ओळखो. सत्–समागमे जो आत्मानुं भान न कर्युं ने एम ने एम धंधावेपारमां जीवन गुमाव्युं तो
आयुष्य पूरुं थतां आत्मा चार गतिना दरियामां डूबी जशे; माटे सत्समागमे आत्माना धर्मनुं श्रवण–मनन
करवुं जोईए.