Atmadharma magazine - Ank 167
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 25

background image
: १८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४८३ :
जेम लींडीपीपरमां ६४ पहोरी तीखासनी ताकात छे, ते ज प्रयोगथी प्रगटे छे. तेम सर्वज्ञपद अने
सिद्धपद प्रगटवानी ताकात आत्मामां ज छे, ते साची समजणना प्रयोगवडे प्रगटे छे. मारो आनंद मारामां ज
छे, एम ओळखाण करतां आनंदरूपी मंगळनी प्राप्ति थाय छे अने ममकाररूपी पापनो नाश थाय छे. आ रीते
धर्म ज उत्कृष्ट मंगळ छे. बाकी लौकिकमां लग्न थाय के पुत्रजन्म थाय के दुकान मांडे–तेने मंगळ कहेवाय छे, पण
ते खरुं मंगळ नथी; आत्मानुं ज्ञान करतां अविनाशी सुख मळे छे ने दुःख टळे छे–ते ज खरुं मांगलिक छे.
हे जीवो! आ आयुष्यनी शीशी फूटी तो पछी फरीने रेणथी सांधी शकाशे नहि; आयुष्य अल्प छे ने
मनुष्य जीवन दुर्लभ छे, माटे तमे प्रमाद न करो. आत्मानुं हित केम थाय? ते धर्म समजवानो प्रयत्न करो. कया
भावथी स्वर्ग–नरक मळे? कया भावथी तिर्यंच के मनुष्य अवतार मळे? तेनी पण जेने हजी खबर न होय,
तेने मुक्ति कया भावे थशे एनी तो क्यांथी खबर होय?
आ आत्मामां सर्वज्ञ परमात्मा थवानी ताकात छे. आ देह तो जड ढींगलुं छे, तेमां क्यांय आत्मानी
शांति के सुख नथी. सुख–शांति अने ज्ञान तो आत्मामां भर्यां छे. पण जीवने पोताना स्वभावनो भरोसो नथी
आवतो. मारामां प्रभुता भरी छे–एम तेने विश्वास नथी आवतो, ने बहारमां ज सुख शोधे छे. संतो समजावे
छे के भाई! तारा चैतन्य तत्त्वमां ज अतीन्द्रिय आनंदनो रस पड्यो छे, तेने एक वार जाण तो खरो! हरडे
वगेरेना गुणो जाणे छे के सम्मेदशिखरनी हरडे बहु ऊंची! पण आ भगवान आत्मामां ऊंची सर्वज्ञतानी
ताकात भरी छे, तेने ओळखतो नथी. आत्मामांथी परिपूर्ण शक्ति प्रगट करीने जीवो सर्वज्ञ परमात्मा थया;
एवा सर्वज्ञ परमात्मानी वाणीमां धर्मनो उपदेश आवे छे, ते धर्मनुं श्रवण करवा माटे स्वर्गना देवो अने ईन्द्रो
पण तलसे छे, ने तेमना स्वर्गमांथी आ मनुष्यलोकमां ऊतरीने भगवाननी वाणीमां धर्मनुं श्रवण करे छे, तो हे
भाई! देवो पण जे धर्मनुं श्रवण करवा माटे स्वर्ग छोडीने अहीं आवे छे, एवा धर्मनुं श्रवण करवा माटे तुं
निवृत्ति ले ने सत्समागम कर. आ देह तो क्षणभंगुर छे भाई! एक वार ऊठ्यो ते राते पाछो नहि सूए; अने
एक वार सूतो ते पाछो सवारे नहि ऊठे;–आवो क्षणभंगुर आ अवतार छे; तेमां आत्माना हितनो उपाय कर,
भाई! मोटो राजा पण तुं अनंतवार थयो, परंतु ते कांई अपूर्व नथी. अपूर्व तो आत्मानुं ज्ञान करीने भवनो
अंत लाववो ते ज छे. आत्मानुं ज्ञान करे तो अंदरथी पोताने एवी साक्षी आवी जाय के हवे अल्प काळमां
मारी मुक्ति थई जशे, हवे आ संसारमां झाझा भव करवाना नथी, पण ते माटे घणी पात्रता अने घणी
धगशथी सत्समागमे आत्माना हितनो विचार करवो जोईए के––
हुं कोण छुं? क्यांथी थयो? शुं स्वरूप छे मारुं खरुं!
कोना संबंधे वळगणा छे! राखुं के ए परिहरुं!
एना विचार विवेकपूर्वक शांतभावे जो कर्यां,
तो सर्व आत्मिकज्ञाननां सिद्धांततत्त्वो अनुभव्यां.
(अहीं घणी वैराग्यभरेली वाणीथी गुरुदेव कहे छे के:) अरे! धर्म समजवा माटे धर्मात्मा कोण छे?
धर्मनुं शुं स्वरूप तेओ कहे छे? तेनो विचार तो करो. अनंतकाळनुं परिभ्रमण मटाडवानो वात संतो–ज्ञानीओ
समजावे छे–ते शुं छे? तेने लक्षमां तो ल्यो! विचार तो करो के–अरेरे! अनंतअनंतकाळथी मारो आत्मा आ
अवतारमां रझळी रह्यो छे, तो हवे मारुं आ रझळवानुं केम टळे? मारुं वास्तविक स्वरूप शुं छे के जे
समजवाथी मारुं परिभ्रमण टळे ने मने शांति थाय!! –आम अंतरमां विचार करीने जो आत्मानुं स्वरूप
ओळखे तो आत्माने एवो आनंद आवे के स्वर्गमां पण जेनी गंध नथी... अनंतकाळमां जे आनंदनो स्वाद
स्वर्गमां पण जीवे नहोतो चाख्यो एवा अपूर्व आनंदनो अनुभव जीवने धर्म समजतां ज थाय छे अने तेने
भवना अंतनी तैयारी थाय छे. आवा धर्मनुं स्वरूप शुं छे? ते हवे कहेवाशे.