Atmadharma magazine - Ank 167
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४८३ : आत्मधर्म : ७ :
पर्याय पलटीने बीजी विशेष निर्मळ पर्यायरूपे निर्मळ कोण थाय? अने जो सर्वथा अनेकरूप ज थई जाय तो
पर्याय कोना आश्रये थाय? माटे आत्मामां एकत्व तेमज अनेकत्व एवी बंने शक्तिओ छे.
जो एकत्वशक्ति न होय तो अनेक गुण–पर्यायोमां वस्तु पण अनेक खंडखंडरूप थई जाय, अर्थात् जेटला
गुणो ने जेटली पर्यायो तेटली ज जुदी जुदी वस्तुओ थई जाय, एटले अनंतगुण–पर्यायरूप वस्तु सिद्ध ज न
थाय, माटे, अनंतगुण–पर्यायोमां एकपणे व्यापीने रहेवारूप एकत्व शक्ति छे, ते अनंतगुणपर्यायोमां द्रव्यनी
अखंडता टकावी राखे छे.
ए ज प्रमाणे जो अनेकत्वशक्ति न होय तो एक वस्तुमां अनंतगुणपर्यायो क्यांथी होय? वस्तु एक
होवा छतां गुण–पर्यायो अनंत छे. द्रव्यरूपे एक ज रहीने आत्मा पोते पोताना अनंतगुणपर्यायोमां रह्यो छे.
ए रीते अनेकपणुं पण छे.
एकपणुं के अनेकपणुं ते बंनेमां परथी तो आत्मा जुदो ज छे ने विकारथी पण जुदो छे. एकपणुं तो
द्रव्यथी छे ने अनेकपणुं गुण–पर्यायोथी छे. परने लीधे ते धर्म नथी तेथी परसन्मुखताथी एकतानी के
अनेकतानी ओळखाण थती नथी, एकतारूपे के अनेकतारूपे आत्मा पोते ज छे तेथी आत्मसन्मुखताथी ज तेनी
यथार्थ ओळखाण थाय छे.
एकेक आत्मामां अनंत गुणो, ने ते अनंत गुणोनी अनंत पर्यायो, तेमां आत्मा व्यापक छे, तेथी
आत्मामां अनेकता पण छे. पर्याय ते व्याप्य (रहेवा योग्य) छे अने आत्मा तेमां व्यापक (रहेनार) छे.
आत्माने व्यापवा योग्य पर्याय एक ज नथी पण अनेक पर्यायो छे, ते अनेकपणे थतो होवाथी आत्मा
अनेकरूप छे. स्वभावना आश्रये निर्मळ क्रमबद्धपर्यायो एक पछी एक थाय ते ज आत्मानुं खरुं व्याप्य छे;
रागादि तेनुं खरुं व्याप्य नथी, अने देहादिमां तो आत्मा कदी व्याप्यो ज नथी.
आत्मानी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप निर्मळ पर्यायोमां कोण व्यापे छे? शुं निमित्त तेमां व्यापे छे?
ना; शुं राग तेमां व्यापे छे? ना; शुं पूर्वनी पर्याय तेमां व्यापे छे? ना; शुद्धचैतन्यमूर्ति आत्मा पोते ज
परिणमीने ते सम्यग्दर्शनादि पर्यायोमां व्यापे छे, माटे हे जीव! तारी निर्मळ पर्याय प्रगट करवा माटे तारे तारा
शुद्धआत्मामां ज जोवानुं रह्युं–तेनुं ज अवलंबन करवानुं रह्युं; पण कोई निमित्तनुं, रागनुं के पर्यायनुं अवलंबन
न रह्युं. तारो एक आत्मा ज तारी बधी पर्यायोमां प्रसरी जाय छे एवी तेनी शक्ति छे, एटले तारी पर्याय माटे
तारे बीजा कोई द्रव्योनी सामे जोवानुं रहेतुं नथी; तारा स्वद्रव्यनी ज सन्मुख जोवानुं रहे छे. आत्मानुं आवुं
स्वरूप जे समजे तेने परथी पराड्मुखता अने स्वनी सन्मुखतावडे निर्मळ पर्यायो थाय छे, ए ज धर्म छे.
जेम कडुं–हार–मुगट वगेरे बधी अवस्थाओमां एक सोनुं ज क्रमसर व्यापे छे, पण तेमां कांई सोनी
एरण के हथोडी व्यापता नथी; ए रीते आत्मानी बधी पर्यायोमां पण आत्मा एक ज व्यापे छे, अन्य कोई
तेमां व्यापतुं नथी. उपादान अने निमित्त बंने भेगा थईने कार्य करे एम जे माने छे ते एक पर्यायमां अनेक
द्रव्योने व्यापक माने छे. तेने स्व–परनुं भेदज्ञान नथी. आत्मानी पर्यायमां पर तो व्याप्युं नथी पण जे
पर्यायमां एकला क्रोधादि व्यापे तेने पण आत्मा कहेता नथी. आत्मानी पर्याय तो तेने ज कहेवाय के जेमां
आत्मानो स्वभाव व्यापे. क्रोधादि भावो खरेखर आत्माना स्वभावथी व्यपायेला नथी. ––आवा
आत्मस्वभावने जेणे नक्की कर्यो तेनी पर्यायमां आत्मा व्याप्यो ने क्रोधादि न व्याप्या. क्रोधमां व्यापे ते हुं नहि;
शुद्धतामां व्यापुं ते ज हुं–एम नक्की करतां क्रोध तरफनुं जोर तूटी गयुं ने शुद्धस्वभाव तरफनुं जोर वधी गयुं––
आवी साधकदशा छे, ने ते ज मोक्षमार्ग छे.
जुओ, आत्मानी सम्यक् प्रतीति आवुं फळ लेती प्रगटे छे. जो आवुं फळ न आवे तो आत्मानी खरी
प्रतीति नथी. सम्यक्प्रतीति तो एवी छे के आखा भगवान आत्माने पर्यायमां प्रसिद्ध करे छे. जो पर्यायमां
भगवान आत्मानी प्रसिद्धि न थाय तो त्यां सम्यक्प्रतीति नथी. मारी बधी शुद्धपर्यायोमां मारुं द्रव्य ज व्यापशे,
मारो आत्मा ज अनेक निर्मळ पर्यायोरूपे तन्मय थईने परिणमशे–आम जेणे निश्चय कर्यो तेनी श्रद्धानुं जोर
स्वद्रव्य तरफ वळी गयुं, तेना ज्ञाने शुद्धद्रव्यने स्वज्ञेय कर्युं, तेनो पुरुषार्थ स्वद्रव्य