Atmadharma magazine - Ank 167
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४८३ :
तरफ झूकी गयो, कषायोनुं वेदन छूटीने आत्माना शांतस्वभावनुं तेने वेदन थयुं, अनादिथी पर्यायमां एकलो विकार
व्यापतो तेने बदले हवे अपूर्व निर्मळ पर्यायोमां भगवान आत्मा व्याप्यो, ––आ रीते आखी परिणतिमां नवी
जागृति आवी गई–नवुं वेदन आवी गयुं;–आवी धर्मीनी अपूर्वदशा छे. पहेलांं आवा शुद्धद्रव्यनी खबर न हती त्यारे
पर्याय ते तरफ वळती न हती ने ते पर्यायमां आत्मा व्यापतो न हतो. हवे शुद्ध द्रव्यनो निर्णय करीने पर्याय ते तरफ
वळी ने ते पयायमां भगवान आत्मा व्याप्यो––भगवान आत्मानी प्रसिद्धि थई, आत्मा केवो छे तेनी खरी खबर
पडी. ते जीव हवे भगवानना मार्गमां भळ्‌यो–आवो भगवाननो मार्ग छे.
क्रमबद्ध पर्यायनो निर्णय के सर्वज्ञनो निर्णय पण आवा शुद्धद्रव्यना निर्णयथी ज थाय छे. जो के पर्याय
तो पहेलांं पण क्रमबद्ध ज थती हती पण अज्ञानदशामां तेनो निर्णय न हतो, शुद्धद्रव्यना निर्णयपूर्वक क्रमबद्ध
पर्यायनी प्रतीति यथार्थ थई अने शुद्धतानो क्रम पण तेने शरू थई गयो. शुद्धद्रव्य तरफ वळीने ज्यां क्रमबद्ध
पर्यायनो यथार्थ निर्णय करे त्यां एकली अशुद्धतानो क्रम रहे–एम बने नहि. आ रीते शुद्धद्रव्यनो निर्णय,
स्वसन्मुखद्रष्टि, सर्वज्ञनो निर्णय, क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय, शुद्धपर्यायना क्रमनी शरूआत, अपूर्व पुरुषार्थ–ए
बधुंय एक ज साथे छे.
“मारी पर्यायोमां बीजुं कोई नहि पण मारो शुद्ध आत्मा ज व्यापनार छे” –अहो! आ निर्णयमां तो
आखो द्रष्टिनो पलटो छे; आवो निर्णय करनार जीव हवे क्यांय पण पराश्रयबुद्धिमां न अटकतां, स्वद्रव्यनुं
एकनुं ज अवलंबन करीने शुद्धपर्यायोरूपे परिणम्या करे छे. मारी जे जे पर्याय प्रगटे छे ते मारा आत्म
द्रव्यमांथी ज प्रगटे छे–एम तेने सम्यक् विश्वास थई गयो होवाथी पर्याये पर्याये आत्मद्रव्यनुं ज अवलंबन तेने
वर्ते छे, अने आत्मानो स्वभाव शुद्ध होवाथी तेना अवलंबने परिणमती पर्याय पण शुद्ध ज थाय छे. धर्मीने
बधी पर्यायोमां आत्मानुं ज अवलंबन छे. नियमसारमां कह्युं छे के––
मुज ज्ञानमां आत्मा खरे,
दर्शन चरितमां आत्मा,
पचखाणमां आत्मा ज,
संवर–योगमां पण आतमा. १००
धर्मी जाणे छे के खरेखर मारा ज्ञानमां आत्मा छे, मारा दर्शनमां तथा चारित्रमां आत्मा छे. मारा
प्रत्याख्यानमां आत्मा छे, मारा संवरमां तथा योगमां (शुद्धोपयोगमां) आत्मा छे, ––आ बधी पर्यायोनी वात
छे. धर्मीनी बधी पर्यायो एक शुद्ध आत्माने ज उपादेय करीने परिणमे छे, तेनी पर्यायमां बीजुं कांई उपादेय
नथी. चोथा गुणस्थानकवाळा धर्मीने पण आवी ज द्रष्टि होय छे. आवी दशा वगर सम्यग्दर्शन होतुं नथी.
पर्यायो एक पछी एक क्रमबद्ध थाय छे ने तेमां मारुं शुद्ध द्रव्य ज व्यापे छे. आम जेणे नक्की कर्युं तेना
श्रद्धा–ज्ञाननुं वलण पर तरफथी छूटीने स्वद्रव्य तरफ वळी गयुं ने तेनी पर्यायना क्रममां निर्मळता शरू थई. जो
आम न थाय–रुचि न पलटे ने एकली पर तरफनी ज सावधानी रहे–अने कहे के ‘पर्याय तो क्रमबद्ध थया करे
छे’ –तो ते मात्र परनी ओथे क्रमबद्ध पर्यायनी वातो करे छे, खरेखर तेने क्रमबद्धपर्यायना स्वरूपनो निर्णय
थयो नथी; जो खरो निर्णय होय तो रुचिनुं वलण पलटे ज.
अहो, आचार्यदेवे आ दरेक शक्तिओना वर्णनमां त्रिकाळी स्वभाव अने तेनुं शुद्ध परिणमन–ए बंने
साथे ने साथे ज बताव्या छे. पर्यायमां शुद्ध शक्तिनो स्वीकार थतां पर्याय पण तेमां ज भळी गई, एटले ते
पण शुद्ध थई. आ रीते अपूर्वभावे आत्मानो स्वीकार थतां अपूर्व धर्म थयो. सर्वज्ञ भगवाने जेम कह्युं तेम तेणे
कर्युं तेथी तेणे ज खरेखर सर्वज्ञने मान्या, ए ज रीते गुरुने अने शास्त्रने पण तेणे खरेखर मान्या; भगवान
जे मार्गे मुक्ति पाम्या ते मार्गमां ते भळ्‌यो, ते सर्वज्ञनो नंदन थयो, ––साधक थयो; एने भवनो संदेह टळ्‌यो, ने
ए मोक्षना पंथे चडयो. अने आवी दशा वगर देवनो, गुरुनो, शास्त्रनो क्रमबद्धपर्यायनो द्रव्यनो, गुणनो वगेरे
कोई पण बाबतनो निर्णय खरेखर साचो कहेवाय नहीं, ने यथार्थपणे भवनी शंका तेने टळे नहीं. धर्मीने तो
शुद्ध द्रव्यनो स्वीकार थयो छे ने परिणति ते तरफ वळी छे एटले मुक्ति तरफ ज क्षणे क्षणे परिणमन चाली रह्युं
छे, ते मुक्तिपुरीनो