तेमांथी निर्मळ पर्यायनी परंपरारूप हारमाळा नीकळे छे; चक्रवर्तीनो य चक्रवर्ती एवो आ चैतन्यभगवान, तेना
भंडारमां सम्यग्दर्शन–मुनिदशा–केवळज्ञान–सिद्धदशा वगेरे निर्मळरत्नोनी हारमाळा गूंथायेली पडी छे, तेने
भंडार खोलीने बहार काढवानी आ रीत आचार्यभगवाने बतावी छे. अरे जीव! अंतर्मुख थईने एक वार
तारी चैतन्य शक्तिना भंडारने खोल. तारी चैतन्यशक्ति एवी छे के तेने खोलतां तेमांथी निर्मळपर्यायो
नीकळशे पण तेमांथी विकार नहीं नीकळे; विकारथी ते शून्य छे.
परिणमनमां तेनो पण अभाव छे. अभावशक्तिनुं भान थतां विकारना अभावरूप परिणमन थाय छे.
अज्ञानी जीवमां पण आ बधी शक्तिओ होवा छतां तेनो अस्वीकार करीने अने विकारनो ज स्वीकार करीने ते
रखडे छे. आत्माना बधा गुणमां निर्मळ अवस्थारूपे वर्तवानी ‘भावशक्ति’ छे, पण तेनो आश्रय करे तेने तेवुं
परिणमन थाय छे.
विकारनो संबंध सहेजे छूटी जाय छे. शुद्धस्वभाव तरफनुं जेटलुं जोर आपे तेटलो विकारनो अभाव थई जाय
छे.–आमां परमार्थ, व्रत, तप, त्याग वगेरे बधा धर्मो समाई जाय छे. त्रिकाळ स्वभावनी शुद्धता उपर जोर न
आपतां, तेनाथी विरुद्ध एवा विकार उपर के निमित्त उपर जे जोर आपे छे तेनी पर्यायमां स्वभावनुं
परिणमन नथी थतुं पण विकारनुं ज परिणमन थाय छे, ने ते अधर्म छे. चिदानंद स्वभावनी सन्मुख थईने
तेनी सम्यक्श्रद्धा करी, ते श्रद्धामां मिथ्यात्वनो त्याग छे, तेना सम्यग्ज्ञानमां अज्ञाननो त्याग छे, ने तेमां
लीनतामां अव्रतनो त्याग छे. आ सिवाय धर्म थवानो ने अधर्मना त्यागनो बीजो कोई उपाय नथी; बीजा
कथन होय ते बधा निमित्तना व्यवहारना कथन छे, आत्मस्वभावमां एकता थतां केवा केवा निमित्तनो संबंध
छूटयो तेनुं ज्ञान कराववा व्यवहार कथन छे के आत्मा ए आ छोड्युं.
अमारी मूडी’ एम माने छे, पण ज्यां तेनुं सगपण करे के तरत तेना अभिप्राय बदली जाय छे के पितानुं घर के
पितानी मूडी मारी नहि, पण पतिनुं घर ने पतिनी मूडी ते मारी. –हजी पिताना घरे रहेली होवा छतां तेनो
अभिप्राय पलटी जाय छे, तेम अज्ञानीए अनादि संसारथी ‘देह अने राग ते हुं’ एम मान्युं छे, पण ज्यां
चैतन्यस्वभावनी द्रष्टि करीने सिद्धदशा साथे संबंध बांध्यो त्यां तेनी द्रष्टि पलटी गई छे के सिद्ध भगवान जेवी
मूडीवाळो स्वभाव ते हुं, ने राग–देहादि हुं नहि. हजी अल्प रागादि तथा देहादिनो संबंध होवा छतां तेनो
अभिप्राय पलटी गयो छे. अने अभिप्राय पलटतां ते अभिप्राय अनुसार परिणमन पण पलटी गयुं छे, एटले
के सिद्धदशा तरफनुं शुद्ध परिणमन थवा मांड्युं छे ने संसार तरफनुं शुद्ध परिणमन छूटवा मांड्युं छे. भले गमे
तेटला व्रत–तप–त्याग करे, हजारो राणीओ छोडीने वैराग्यथी द्रव्यलिंगी मुनि थाय, परंतु आ रीते शुद्धस्वभाव
साथेनो संबंध जोडीने विकार साथेनो संबंध न तोडे त्यां सुधी किंचित् पण धर्म थतो नथी, ते अनादि
संसाररूपी पीयरमां ज रहे छे.
विकार नथी. आ रीते आत्मस्वभावमां विकारनो अभाव छे एवी प्रतीतवडे साधकने क्रमक्रमे विकारनो