Atmadharma magazine - Ank 168
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : ‘आत्मधर्म’ २४८३: आसो :
पूर्ण अभाव थईने सिद्धपद प्रगटे छे. विकारना अभावरूप स्वभावनी प्रतीत करे तेने पर्यायमां विकारनो
अभाव थया विना रहे नहि. पर्यायबुद्धिथी ज आत्मा विकारी भासे छे, स्वभावबुद्धिथी जोतां आत्माना द्रव्य–
गुण–पर्याय त्रणे विकारथी शून्य छे. संसार तेनामां छे ज नहि. संसार कोनो? के जे पोतानो माने तेनो; एटले
के विकारमां जेनी बुद्धि छे, तेने ज संसार छे. स्वभावनी बुद्धिवाळा साधक तो कहे छे के मारामां संसार छे ज
नहि–आवा शुद्धात्मानी द्रष्टि करवी ते ज संसारथी छूटीने सिद्ध थवानो उपाय छे.
आत्मानो एवो अभाव स्वभाव छे के ते परथी अने विकारथी शून्य छे. ज्ञान–आनंद वगेरे
निजभावथी भरेलो छे, ने रागादि परभावोथी ते खाली छे. अभावशक्तिने लीधे परनो ने विकारनो
आत्मस्वभावमां अभाव छे, परंतु अभावशक्ति पोते कांई आत्मामां अभावरूप नथी, अभावशक्ति पोते तो
आत्माना स्वभावरूप छे. परना अभावरूप भाव ते पण आत्मानो स्वभाव छे.
आत्मामां परनो अभाव छे, तेनो तो कदी भाव थतो नथी. आत्माना स्वभावमां विकारनो अभाव छे
तेनो पण कदी भाव थतो नथी. पण आत्मानी भविष्यनी केवळज्ञानादि पर्यायो जे अत्यारे अभावरूप छे तेनो
भाव थाय छे.–साधकने पोताना आवा आत्मस्वभावनी प्रतीत छे, केवळज्ञाननी पण प्रतीत छे, विकारना
अभावनी पण प्रतीत छे, तेने वर्तमान निर्मळता वर्ते छे ने अल्पकाळमां विकारनो सर्वथा अभाव थईने
झळहळतुं केवळज्ञान खीली जवानुं छे.
जय हो ते केवळज्ञाननो.
– ३३मी भावशक्तिनुं तथा ३४मी अभावशक्तिनुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं.
हाजर छतां गेरहाजर
सभामां हाजर होवा छतां क्यो श्रोता गेरहाजर छे?
सभामां हाजर होवा छतां, जे श्रोतानो उपयोग श्रवणमां नथी जोडातो ने बीजे
बहारमां उपयोग भमे छे ते श्रोतानो आत्मा गेरहाजर छे. तेनुं शरीर अहीं बेठुं छे पण
आत्मानो उपयोग तो बीजे भमे छे, तेथी ते हाजर छतां गेरहाजर छे.
ज्ञानुं बहुमान
जेने श्रुतज्ञाननो प्रेम होय एटले आत्मा समजवानी दरकार होय, तेने तेना श्रवणमां
पण उत्साह जोईए. उत्साह विना श्रवण करे ते परिणमे नहि. श्रवण वखते बेदरकारी राखे के
झोलां खाय तो तेमां श्रुतज्ञाननो अविनय थाय ने तेने श्रुतज्ञान समजाय नहि. ज्ञान समजवा
माटे तेनुं घणुं बहुमान अने विनय जोईए; श्रवण करतां, “अहो! आ तो मारा अपूर्व हितनी
वात छे”–एम अंतरमां उत्साह आववो जोईए.