Atmadharma magazine - Ank 168
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४८३ ‘आत्मधर्म’ : १७ :
आवी श्रद्धाना जोरे धर्मीने निर्जरा ज थती जाय छे, बंधन थतुं नथी. सर्वभावो प्रत्ये क्यांय पण तेने विपरीत
द्रष्टि थती नथी माटे धर्मीनी द्रष्टिमां मुंझवणनो अभाव छे.
जेम कोई साहूकार पासे लाखो–करोडो रूा.नी मूडी होय, ने कोई बीजा माणसो तेनी पेढी उपर लखी
जाय के “आ माणसे देवाळुं काढ्युं,” एम अनेक माणसो भेगा थईने कदाच प्रचार करे, तो पण ते साहूकार
मूंझातो नथी; ते निःशंक जाणे छे के मारी बधी मूडी मारी पासे सलामत पडी छे, लोको भलेने बोले, पण मारुं
हृदय ने मारी मूडी तो हुं जाणुं छुं. आ रीते ते साहूकारने मूंझवण थती नथी.
तेम सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा निःशंक जाणे छे के मारा चैतन्यनी ऋद्धि मारी पासे मारा अंतरमां छे; बाह्यद्रष्टि
लोको भले अनेक प्रकारे विपरीत कहे के निंदा करे पण धर्मीने पोताना अंर्त स्वभावनी प्रतीतमां मूंझवण थती
नथी. लोको भले गमे तेम बोले पण मारी स्वभावनी प्रतीतनुं वेदन हुं जाणुं छुं, मारा स्वभावनी श्रद्धा
निःशंकरूपे सलामत पडी छे, मारुं वेदन–मारा चैतन्यनी मूडी–तो हुं जाणुं छुं; आ रीते धर्मी जीवने पोताना
स्वरूपमां कदी मूंझवण थती नथी; तेथी मूढताकृत बंधन तेने थतुं नथी पण निर्जरा ज थाय छे.
[आ लेखनो बीजो सुंदर भाग आवता अंकमां वांचो]
मोक्षना साधन संबंधी प्रश्नोत्तर
(मोक्षअधिकार उपरना प्रवचनोमांथी : वीर सं. २४८३ श्रावण सुद १ थी शरू.)
जिज्ञासुओने समजवामां सुगमता पडे ते माटे आ विषय
प्रश्नोत्तररूपे रजाू करवामां आव्यो छे.



(१) प्रश्न:– मोक्षअधिकारनी शरूआतमां कोने नमस्कार कर्या छे?
उत्तर:– जेओ समस्त कर्मबंधने कापीने मोक्ष पाम्या, एवा सिद्ध परमात्माने आ मोक्षअधिकारनी
शरूआतमां नमस्कार कर्या छे.
(२) प्रश्न:– आचार्यदेवे कई रीते मांगळिक कर्युं छे?
उत्तर:– “पूर्ण ज्ञान जयवंत वर्ते छे” एम कहीने सम्यग्ज्ञानना महिमारूप मांगळिक कर्युं छे.
(३) प्रश्न:– मोक्ष शुं छे?
उत्तर:– मोक्ष एटले आत्मानी पूर्ण शुद्ध पर्याय; ते पण आत्मानो एक स्वांग छे. अथवा आत्मा अने
बंधने सर्वथा जुदा करवा ते मोक्ष छे.
(४) प्रश्न:– आत्मा अने बंधने कई रीते जुदा कराय छे?
उत्तर:– प्रज्ञारूपी करवतवडे आत्मा अने बंधने जुदा कराय छे.
(५) प्रश्न:– प्रज्ञारूपी करवत एटले शुं?