Atmadharma magazine - Ank 168
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : ‘आत्मधर्म’ २४८३ : आसो :
उत्तर:– प्रज्ञा एटले आत्मा अने बंधनुं भेदज्ञान; ते भेदज्ञाननो वारंवार अभ्यास करवाथी आत्मा अने बंध जुदा
पडी जाय छे. भेदज्ञान सिवाय बीजा कोई– (रागादि ना अभ्यासवडे कदी मोक्ष थतो नथी.
(६) प्रश्न:– आ आत्मा कई रीते निश्चित थाय छे?
उत्तर:– स्वसंवेदनरूप अनुभूतिवडे ज आत्मा निश्चित थाय छे; ए सिवाय रागादिवडे आत्मानो निश्चिय थतो नथी.
(७) प्रश्न:– सम्यग्दर्शन कई रीते थाय छे?
उत्तर:– सम्यग्दर्शन एटले मिथ्यात्वथी मुक्ति; ते सम्यग्दर्शन पण स्वसंवेदनरूप स्वानुभूतिवडे ज प्रगट थाय छे.
(८) प्रश्न:– आगममां मोक्ष माटे शेनुं विधान (फरमान) छे?
उत्तर:– मोक्ष माटे ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूति करवानुं ज आगममां विधान अर्थात् फरमान छे.
कळश १०५मां आचार्यदेव कहे छे के आत्मा ज्ञानस्वरूपे परिणमे ते ज मोक्षनो हेतु छे, ने तेना सिवाय अन्य जे
कांई छे ते बंधनो हेतु छे.
“ ततो ज्ञानात्मत्वं भवनमनुभूतिर्हि विहितम् ”
माटे ज्ञानस्वरूप थवानुं एटले के अनुभूति करवानुं ज आगममां विधान छे. जुओ, आ जिनागमनो हुकम! जिनागमनी
आज्ञा! आ जिनागमनो प्रसिद्ध ढंढेरो छे के मोक्ष माटे आ ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूति करो.
(९) प्रश्न:– मोक्षमार्गनी शरूआत कई रीते थाय छे?
उत्तर:– स्वरूपना अनुभवनवडे ज मोक्षमार्गनी शरूआत थाय छे. ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूतिने ज भगवाने
मोक्षनुं कारण फरमाव्युं छे.
(१०) प्रश्न:– मोक्षना कारणरूप सम्यग्ज्ञान केवुं छे?
उत्तर:– सम्यग्ज्ञान ‘सरस’ छे, एटले के सहज परम आनंदरूपी रसथी भरेलुं छे.
(११) प्रश्न:– उत्कृष्ट कोण छे?
उत्तर:– पूर्णरूप सम्यग्ज्ञान ते उत्कृष्ट छे.
(१२) प्रश्न:– कृतकृत्य कोण छे?
उत्तर:– मोक्षना कारणरूप जे पूर्णज्ञान छे ते कृतकृत्य छे, केमके करवा योग्य समस्त कार्य तेणे करी लीधां छे.
(१३) प्रश्न:– करवा योग्य कार्य ते शुं?
उत्तर:– आत्माने अने बंधने सर्वथा जुदा करीने, आत्माने मोक्ष पमाडवो ते ज करवा योग्य कार्य छे. केवळज्ञान
आत्माने मोक्ष पमाडतुं होवाथी कृतकृत्य छे.
(१४) प्रश्न:– मोक्षमां कोण जयवंत वर्ते छे?
उत्तर:– पुरुषने मोक्ष पमाडतुं पूर्णज्ञान मोक्षमां जयवंत वर्ते छे. आ रीते ज्ञाननुं जयवंतपणुं कहीने, मोक्ष अधिकारनुं
मंगळ कर्युं.
(१५) प्रश्न:– मोक्षनी प्राप्ति कई रीते थाय छे?
उत्तर:– बंधननो छेद करवाथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे.
(१६) प्रश्न:– बंधनने जाणवाथी मोक्ष थाय छे के नहि?
उत्तर:– ना, बंधना ज्ञानमात्रथी मोक्ष थतो नथी, पण बंधननो छेद करवाथी ज मोक्ष थाय छे.
(१७) प्रश्न:– जीव क्यारे बंधनथी मुकाय छे?
उत्तर:– जीव ज््यारे शुद्ध थाय एटले के शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमे त्यारे ज ते कर्मबंधथी मुकाय छे ने
मोक्ष पामे छे. आ रीते शुद्धतारूप परिणमन ते ज मोक्षनुं कारण छे.
(१८) प्रश्न:– मोक्षने साधनारा जीवो क्यारे थाय छे?
उत्तर:– जगतमां मोक्षने साधनारा साधक जीवो त्रणे काळे सदाय होय छे.
(१९) प्रश्न:– तीर्थंकरनामकर्म क्यारे बंधाय छे?
उत्तर:– तीर्थंकरनामकर्म साधक अवस्थामां ज बंधाय छे.
(२०) प्रश्न:– तीर्थंकरनामकर्म बांधनारा जीवो क्यारे थाय छे?
उत्तर:– जगतमां तीर्थंकरनामकर्म बांधनारा जीवो त्रणे काळ सदाय विद्यमान होय छे.
[ए ज प्रमाणे आहारक शरीर
अने आहारक अंगोपांगनी मध्यम स्थिति बांधनारा जीवो पण जगतमां सदाय विद्यमान होय छे–एम श्री कषायप्राभूत पु. ३,
पृष्ठ २४३मां कह्युं