उत्तर:– स्वसंवेदनरूप अनुभूतिवडे ज आत्मा निश्चित थाय छे; ए सिवाय रागादिवडे आत्मानो निश्चिय थतो नथी.
(७) प्रश्न:– सम्यग्दर्शन कई रीते थाय छे?
उत्तर:– सम्यग्दर्शन एटले मिथ्यात्वथी मुक्ति; ते सम्यग्दर्शन पण स्वसंवेदनरूप स्वानुभूतिवडे ज प्रगट थाय छे.
(८) प्रश्न:– आगममां मोक्ष माटे शेनुं विधान (फरमान) छे?
उत्तर:– मोक्ष माटे ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूति करवानुं ज आगममां विधान अर्थात् फरमान छे.
कळश १०५मां आचार्यदेव कहे छे के आत्मा ज्ञानस्वरूपे परिणमे ते ज मोक्षनो हेतु छे, ने तेना सिवाय अन्य जे
उत्तर:– स्वरूपना अनुभवनवडे ज मोक्षमार्गनी शरूआत थाय छे. ज्ञानस्वरूप आत्मानी अनुभूतिने ज भगवाने
उत्तर:– सम्यग्ज्ञान ‘सरस’ छे, एटले के सहज परम आनंदरूपी रसथी भरेलुं छे.
(११) प्रश्न:– उत्कृष्ट कोण छे?
उत्तर:– पूर्णरूप सम्यग्ज्ञान ते उत्कृष्ट छे.
(१२) प्रश्न:– कृतकृत्य कोण छे?
उत्तर:– मोक्षना कारणरूप जे पूर्णज्ञान छे ते कृतकृत्य छे, केमके करवा योग्य समस्त कार्य तेणे करी लीधां छे.
(१३) प्रश्न:– करवा योग्य कार्य ते शुं?
उत्तर:– आत्माने अने बंधने सर्वथा जुदा करीने, आत्माने मोक्ष पमाडवो ते ज करवा योग्य कार्य छे. केवळज्ञान
उत्तर:– पुरुषने मोक्ष पमाडतुं पूर्णज्ञान मोक्षमां जयवंत वर्ते छे. आ रीते ज्ञाननुं जयवंतपणुं कहीने, मोक्ष अधिकारनुं
उत्तर:– बंधननो छेद करवाथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे.
(१६) प्रश्न:– बंधनने जाणवाथी मोक्ष थाय छे के नहि?
उत्तर:– ना, बंधना ज्ञानमात्रथी मोक्ष थतो नथी, पण बंधननो छेद करवाथी ज मोक्ष थाय छे.
(१७) प्रश्न:– जीव क्यारे बंधनथी मुकाय छे?
उत्तर:– जीव ज््यारे शुद्ध थाय एटले के शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमे त्यारे ज ते कर्मबंधथी मुकाय छे ने
उत्तर:– जगतमां मोक्षने साधनारा साधक जीवो त्रणे काळे सदाय होय छे.
(१९) प्रश्न:– तीर्थंकरनामकर्म क्यारे बंधाय छे?
उत्तर:– तीर्थंकरनामकर्म साधक अवस्थामां ज बंधाय छे.
(२०) प्रश्न:– तीर्थंकरनामकर्म बांधनारा जीवो क्यारे थाय छे?
उत्तर:– जगतमां तीर्थंकरनामकर्म बांधनारा जीवो त्रणे काळ सदाय विद्यमान होय छे.