Atmadharma magazine - Ank 168
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४८३ ‘आत्मधर्म’ : १९ :
छे. आहारक शरीर अने आहारक अंगोपांग–ए प्रकृतिओ साधकअवस्थामां वर्तता मुनिओने ज बंधाय छे.]
(२१) प्रश्न:– कर्मबंधनना प्रदेश–प्रकृति वगेरेनो विचार कर्या करवो ते बंधनथी छूटवानुं कारण छे के नहि?
उत्तर:– ना; कर्मबंधनथी बंधायेलाने बंधनना विचार ते बंधनथी मुकावानुं कारण नथी. जेम बेडीथी
बंधायेलाने बेडीना बंधन वगेरेनो विचार ते बंधनथी छूटवानुं कारण नथी पण बेडीना बंधननो छेद करवो ते
ज बेडीना बंधनथी छूटवानो उपाय छे, तेम कर्मथी बंधायेलाने ते बंधननो विचार ते बंधनथी छूटवानो उपाय
नथी पण स्वभावसन्मुख थईने बंधननो छेद करवो ते ज तेने बंधनथी छूटवानो उपाय छे.
(२२) प्रश्न:– मोक्ष माटे रूदन करे ने झूरे तो अवश्य मुक्ति थाय–ए वात साची?
उत्तर:– मोक्ष माटे रूदन करे तेथी अवश्य मोक्ष थाय–ए वात बराबर नथी; रूदन तो आर्त्तपरिणाम छे,
ते मोक्षनो उपाय नथी.
(२३) प्रश्न:– मोक्ष कई रीते थाय छे?
उत्तर:– आत्मस्वभावनी सन्मुख थईने तेमां एकाग्र थवुं ते ज मोक्षनो उपाय छे.
(२४) प्रश्न:– कर्मबंधनना विचार कर्या करवाथी मोक्ष थई जशे–एम माननारा केवा छे?
उत्तर:– कर्मबंधननो विचार ते शुभ विकल्प छे; ते शुभ विकल्पवडे मोक्ष थई जशे एम जेओ माने छे
तेमनी बुद्धि शुभरागना ध्यानवडे अंध थई गई छे; तेओ शुभ रागमां ज लीन वर्ते छे पण आत्मस्वभावनी
सन्मुख थता नथी. एवा मिथ्याद्रष्टि जीवने अहीं समजावे छे के हे भाई! शुभविचारथी मोक्ष थतो नथी.
(२५) प्रश्न:– तो मोक्षनुं कारण शुं छे?
उत्तर:– आत्मा अने बंध बंनेने भिन्न भिन्न जाणीने, तेमनुं द्विधाकरण करवुं ते ज मोक्षनुं कारण छे.
(२६) प्रश्न:– आ मोक्षनो उपाय कोने समजावे छे?
उत्तर:– मोक्षार्थी जीव जिज्ञासाथी पूछे छे के “प्रभो! बंधने जाणवाथी के बंधना विचार कर्या करवाथी जो
मोक्ष थतो नथी, तो कई रीते मोक्ष थाय छे?”–एम पूछनार जिज्ञासु शिष्यने अहीं आचार्यदेव मोक्षनो उपाय
समजावे छे.
(२७) प्रश्न:– कर्मबंधनो छेद कई रीते थाय?
उत्तर:– ज्ञानस्वभावी आत्मामां एकाग्र थवाथी कर्मबंधनो छेद थाय छे.
(२८) प्रश्न:– मोक्षनो पुरुषार्थ क्यो छे?
उत्तर:– आत्माना स्वभावने अने बंधना स्वभावने भिन्न भिन्न ओळखीने आत्मस्वभावमां सन्मुख
थवुं, ने बंधभावथी विरक्त थवुं ते ज मोक्षनो पुरुषार्थ छे.–आवो पुरुषार्थ ते ज मोक्षनुं कारण छे.
(२९) प्रश्न:– मात्र आ ज मोक्षनुं कारण केम छे?
उत्तर:– केमके, जे जीव शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मा, अने तेनाथी विरुद्ध बंध,–ए बंनेना स्वभावने भिन्न
भिन्न जाणीने, आत्मस्वभावमां एकाग्र थाय छे ने बंधथी विरमे छे ते ज मोक्ष पामे छे; माटे आत्मा अने
बंधनुं द्विधाकरण ते ज मोक्षनो उपाय छे–एवो नियम छे.
(३०) प्रश्न:– शुभराग ते मोक्षनुं कारण छे के नथी?
उत्तर:– ना; शुभराग ते बंधनुं ज कारण छे, ते मोक्षनुं कारण नथी.
(३१) प्रश्न:– आत्मा अने बंधने जुदा करवानुं साधन शुं छे?
उत्तर:– प्रज्ञारूपी छीणी ज तेमने छेदवानुं साधन छे;
जीव बंध बंने, नियत निज निज लक्षणे छेदाय छे
प्रज्ञा–छीणी थकी छेदतां बंने जुदा पडी जाय छे. २९४.
(३२) प्रश्न:– आत्मा केवो छे? तेनुं लक्षण शुं छे?
उत्तर:– आत्मा तो ज्ञायकस्वरूप छे चैतन्य तेनुं लक्षण छे.
(३३) प्रश्न:– बंध केवो छे? तेनुं लक्षण शुं छे?
उत्तर:– बंध ते आत्माथी विरुद्धभाव छे, तेनुं लक्षण रागादिक छे.