उत्तर:– ना; कर्मबंधनथी बंधायेलाने बंधनना विचार ते बंधनथी मुकावानुं कारण नथी. जेम बेडीथी
ज बेडीना बंधनथी छूटवानो उपाय छे, तेम कर्मथी बंधायेलाने ते बंधननो विचार ते बंधनथी छूटवानो उपाय
नथी पण स्वभावसन्मुख थईने बंधननो छेद करवो ते ज तेने बंधनथी छूटवानो उपाय छे.
उत्तर:– मोक्ष माटे रूदन करे तेथी अवश्य मोक्ष थाय–ए वात बराबर नथी; रूदन तो आर्त्तपरिणाम छे,
उत्तर:– आत्मस्वभावनी सन्मुख थईने तेमां एकाग्र थवुं ते ज मोक्षनो उपाय छे.
(२४) प्रश्न:– कर्मबंधनना विचार कर्या करवाथी मोक्ष थई जशे–एम माननारा केवा छे?
उत्तर:– कर्मबंधननो विचार ते शुभ विकल्प छे; ते शुभ विकल्पवडे मोक्ष थई जशे एम जेओ माने छे
सन्मुख थता नथी. एवा मिथ्याद्रष्टि जीवने अहीं समजावे छे के हे भाई! शुभविचारथी मोक्ष थतो नथी.
उत्तर:– आत्मा अने बंध बंनेने भिन्न भिन्न जाणीने, तेमनुं द्विधाकरण करवुं ते ज मोक्षनुं कारण छे.
(२६) प्रश्न:– आ मोक्षनो उपाय कोने समजावे छे?
उत्तर:– मोक्षार्थी जीव जिज्ञासाथी पूछे छे के “प्रभो! बंधने जाणवाथी के बंधना विचार कर्या करवाथी जो
समजावे छे.
उत्तर:– ज्ञानस्वभावी आत्मामां एकाग्र थवाथी कर्मबंधनो छेद थाय छे.
(२८) प्रश्न:– मोक्षनो पुरुषार्थ क्यो छे?
उत्तर:– आत्माना स्वभावने अने बंधना स्वभावने भिन्न भिन्न ओळखीने आत्मस्वभावमां सन्मुख
उत्तर:– केमके, जे जीव शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मा, अने तेनाथी विरुद्ध बंध,–ए बंनेना स्वभावने भिन्न
बंधनुं द्विधाकरण ते ज मोक्षनो उपाय छे–एवो नियम छे.
उत्तर:– ना; शुभराग ते बंधनुं ज कारण छे, ते मोक्षनुं कारण नथी.
(३१) प्रश्न:– आत्मा अने बंधने जुदा करवानुं साधन शुं छे?
उत्तर:– प्रज्ञारूपी छीणी ज तेमने छेदवानुं साधन छे;
प्रज्ञा–छीणी थकी छेदतां बंने जुदा पडी जाय छे. २९४.
उत्तर:– आत्मा तो ज्ञायकस्वरूप छे चैतन्य तेनुं लक्षण छे.
(३३) प्रश्न:– बंध केवो छे? तेनुं लक्षण शुं छे?
उत्तर:– बंध ते आत्माथी विरुद्धभाव छे, तेनुं लक्षण रागादिक छे.