उत्तर:– आत्मा अने बंधना भिन्न भिन्न लक्षणोनी सूक्ष्म अंर्तसंधिमां प्रज्ञा–छीणीने सावधान थईने मारवाथी तेओ
उत्तर:– प्रज्ञा एटले भेदज्ञानरूप बुद्धि;
(३६) प्रश्न:– ते प्रज्ञा केवी छे?
उत्तर:– ते प्रज्ञा ‘भगवती’ छे, महिमावंत छे.
(३७) प्रश्न:– आत्मा अने बंधने छेदवा माटे आ भगवती प्रज्ञा ज एक साधन छे ने बीजुं साधन केम नथी?
उत्तर:– केमके निश्चये पोताथी भिन्न साधननो अभाव होवाथी भगवती प्रज्ञा ज छेदनात्मक साधन छे.
(३८) प्रश्न:– देहनी क्रिया आत्मा अने बंधने जुदा करवानुं साधन छे के नहि?
उत्तर:– ना; देहनी क्रिया ते साधन नथी, केमके ते पोताथी भिन्न छे; अने मोक्ष माटे पोताथी भिन्न साधननो अभाव छे.
(३९) प्रश्न:– शुभराग ते मोक्षनुं साधन छे के नथी?
उत्तर:– ना; शुभराग ते खरेखर मोक्षनुं साधन नथी, केमके ते पण खरेखर आत्माना स्वभावथी भिन्न छे; अने मोक्ष
उत्तर:– अंतर्मुख थईने एकाग्र थयेलुं ज्ञान ते ‘भगवती प्रज्ञा’ छे; आत्मा साथे अभिन्न वर्तती थकी ते प्रज्ञा ज
उत्तर:– आत्मा अने बंधने भिन्न करवा ते अहीं कार्य छे.
(४२) प्रश्न:– ते कार्यनो कर्ता कोण छे?
उत्तर:– मोक्षर्थी जीव ते कार्यनो कर्ता छे.
(४३) प्रश्न:– ते कर्तानुं साधन शुं छे?
उत्तर:– मोक्षरूपी कार्य करवामां आत्माना साधननी ‘मीमांसा’ करवामां आवतां भगवती प्रज्ञा ज तेनुं साधन छे,
उत्तर:– मीमांसा एटले ऊंडी तपास, ऊंडी विचारणा; आत्मामां ऊतरीने ऊंडी तपास करतां भगवतीप्रज्ञा ज
उत्तर:– ज्ञानी अंतरमां ज्ञानने एकाग्र करता थका, ने रागने पोताथी भिन्न जाणता थका मोक्षना पंथे चडेला छे.
(४६) प्रश्न:– अज्ञानी कया पथे पडेलो छे?
उत्तर:– रागथी धर्म माननार अज्ञानी संसारना पंथे पडेलो छे.
(४७) प्रश्न:– नव तत्त्वमां जीवतत्त्व केवुं छे?
उत्तर:– ज्ञान जेनो परम स्वभाव छे एवुं जीवतत्त्व छे, ते रागादिथी खरेखर भिन्न छे.
(४८) प्रश्न:– राग ते कयुं तत्त्व छे?
उत्तर:– राग ते बंधतत्त्वमां समाय छे.
(४९) प्रश्न:– आत्मा अने बंधनी सूक्ष्मसंधिमां प्रज्ञा–छीणीने पटकवी एटले शुं?
उत्तर:– राग अने आत्मा बंनेना भिन्नभिन्न लक्षणो ओळखीने, राग साथे ज्ञाननी एकता न करवी, ने ज्ञानने
उपाय छे.
उत्तर:– प्रज्ञा–छीणी एटले अंतरमां एकाग्र थयेलुं ज्ञान, ते खरेखर आत्मा साथे अभेद होवाथी आत्माथी अभिन्न छे.