: आसो : २४८३ ‘आत्मधर्म’ : २१ :
(५१) प्रश्न:– रागादिक ते आत्माथी भिन्न छे के अभिन्न छे?
उत्तर:– रागादिक ते खरेखर आत्माथी भिन्न छे, केम के ते राग विना पण आत्मानी प्राप्ति संभवे छे.
ज्ञानने अंतरमां एकाग्र करतां त्यां रागनी उत्पत्ति संभवती नथी पण रागरहित आत्मानी प्राप्ति थाय छे; आ
रीते राग अने आत्मानी भिन्नता सिद्ध थाय छे.
(५२) प्रश्न:– राग अने आत्मा जुदा थई शके छे?
उत्तर:– हा; प्रज्ञा–छीणीवडे छेदवामां आवतां तेओ जरूर जुदा पडी जाय छे.
(५३) प्रश्न:– मोक्षमार्गमां रागनी अपेक्षा छे के उपेक्षा छे?
उत्तर:– मोक्षमार्गमां रागनी उपेक्षा छे.
(५४) प्रश्न:– रागनी उपेक्षा कोण करी शके?
उत्तर:– रागने जे पोताना स्वभावथी भिन्न जाणे ते ज तेनी उपेक्षा करीने अंतरमां वळे; पण जे रागथी
लाभ माने ते तेनी उपेक्षा केम करे?
(५५) प्रश्न:– राग ते मोक्षनुं साधन केम नथी?
उत्तर:– राग ते तो बहिर्मुखवृत्ति छे, ने मोक्षमार्ग तो अंतर्मुखी छे; बहिर्मुखवृत्ति ते अंतर्मुख थवानुं
साधन केम थाय? न ज थाय; माटे राग ते मोक्षनुं साधन नथी.
(५६) प्रश्न:– मोक्षमार्ग ते केवो छे?
उत्तर:– मोक्षमार्ग तो ‘अमृत’ छे.
(५७) प्रश्न:– राग केवो छे?
उत्तर:– राग तो ‘झेर’ छे.
(५८) प्रश्न:– राग ते बंधमार्ग छे के मोक्षमार्ग?
उत्तर:– राग ते बंधमार्ग छे. मोक्षमार्ग तो वीतराग भावरूप छे, तेनुं साधन राग केम होय?
(५९) प्रश्न:– शुभरागवडे बंधनो छेद थाय के न थाय?
उत्तर:– न थाय केमके राग पोते बंधस्वरूप छे, तो तेना वडे बंधनो छेद केम थाय? वीतरागी प्रज्ञावडे ज
बंधनो छेद थाय छे, माटे आ भगवती प्रज्ञा ज मोक्षनुं साधन छे.
(६०) प्रश्न:– मोक्षनुं साधन तो भले भगवती प्रज्ञा ज हो, पण त्यार पहेलांं सम्यग्दर्शननुं साधन तो
बीजुं (रागादि) छे ने?
उत्तर:– ना; जेम मोक्षनुं साधन भगवती प्रज्ञा ज छे, तेम पहेलेथी–मोक्षमार्गनी शरूआतथी पण
भगवती–प्रज्ञा एक ज साधन छे. सम्यग्दर्शननुं पण ते ज साधन छे; ए सिवाय रागादि ते साधन नथी.
(६१) प्रश्न:– आत्मा केवो छे ने बंध केवो छे?
उत्तर:– आत्मा चेतक छे; ने बंध ते चेत्य छे, चेतक नथी.
(६२) प्रश्न:– आत्मा अने बंध एक छे के भिन्न छे?
उत्तर:– आत्मा चेतक छे, ने बंध चेत्य छे, ते बंने निश्चयथी भिन्न छे, परंतु अज्ञानी जीवने तेमना
भेदज्ञानना अभावने लीधे, रागादि बंध भावो पण जाणे आत्मा ज होय, एम तेमनुं एकपणुं लागे छे.
(६३) प्रश्न:– हवे मोक्षार्थी शिष्य भेदज्ञान माटेनी तीव्र झंखनाथी पूछे छे के प्रभो! आत्मा अने बंधनी
एकता अज्ञानथी ज भासे छे ने खरेखर तेओ जुदा ज छे–एम आप कहो छो, तो तेओ प्रज्ञावडे खरेखर
कई रीते जुदा पाडी शकाय?–ते समजावो.
उत्तर:– जिज्ञासु शिष्यने आचार्यदेव समजावे छे के हे भव्य! आत्मा अने बंध बंनेना लक्षणो भिन्न
भिन्न जाणीने, तेना सूक्ष्म सांधनी वच्चे, पुरुषार्थपूर्वक सावधान थईने–एकाग्रता वडे–प्रज्ञा–छीणीने पटकवाथी
तेमने छेदी शकाय छे, एम अमे जाणीए छीए. (चालु)