Atmadharma magazine - Ank 168
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : ‘आत्मधर्म’ २४८३ : आसो:
– परम शांति दातारी –
अध्यात्म भावना
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य सद्गुरुदेवश्री
कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना–भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(७)
[वीर सं. २४८२ वैशाख वद अगियारस. समाधिशतक गा. ७–८–९]

आ समाधिशतक छे; तेमां आत्माने समाधि केम थाय? ते बतावे छे. समाधि ते स्वाधीन छे–आत्माने
आधीन छे, बहारने आधीन नथी. देहादिथी भिन्न, अनंत ज्ञान–आनंद–संपन्न मारुं अस्तित्व छे एवा
भानपूर्वक आत्मामां एकाग्रत रहे तेनुं नाम समाधि छे. पण देहादिथी भिन्न आत्माने भूलीने, शरीर वगेरे
परद्रव्योने ज जे ‘आत्मा’ माने तेने बाह्यविषयोमांथी एकाग्रता छूटे नहि ने आत्मामां एकाग्रता थाय नहि
एटले तेने समाधि न थाय, तेना आत्मामां तो असमाधिनुं तंत्र रहे छे. मिथ्यात्वादिभाव ते असमाधि छे.
चैतन्यस्वभावनी सन्मुखताथी सम्यक्त्वादिभाव प्रगटे ते समाधि छे.
बहिरात्मा जीव ईन्द्रियद्वारा ज ज्ञाननी प्रवृत्ति करे छे एटले तेनुं ज्ञान एकला बाह्य पदार्थोमां ज प्रवर्ते
छे पण आत्मज्ञानसन्मुख वर्ततुं नथी; आत्माथी पराङ्मुख थईने ईन्द्रियद्वारा एकला देहादि पदार्थोने ग्रहण
करीने ‘ते ज हुं’ एम अज्ञानी माने छे. शरीरथी भिन्न अतीन्द्रिय आत्मा तो तेने ईन्द्रियद्वारा भासतो नथी.
जीवस्वरूपनुं ज्ञान तो अतीन्द्रिय–अंतर्मुख ज्ञानथी ज थाय छे, बहिर्मुख–ईन्द्रियज्ञानथी थतुं नथी.
अज्ञानी पोताना ज्ञानस्वभावने जाणतो नथी, पण ईन्द्रियोने ज ज्ञाननुं साधन माने छे, एटले ईन्द्रियद्वारा
जणाता आ देहादिने ज पोतानुं स्वरूप माने छे. देहादिक तो जड छे, ते कांई आत्मा नथी, आत्माथी अत्यंत
भिन्न छे. पण अज्ञानीने ईन्द्रियज्ञानद्वारा देहथी जुदो आत्मा देखातो नथी; तेथी देहना अस्तित्वमां ज पोतानुं
अस्तित्व माने छे. शरीरनी क्रियाओ ते जाणे के आत्मानुं ज कार्य होय–एम अज्ञानीने भ्रमणा छे; ईन्द्रियोथी ज
हुं जाणुं छुं एटले ईन्द्रियो ते ज आत्मा छे–एम तेने भ्रमणा छे. आ रीते अज्ञानी जीव पोताना देहने ज आत्मा
माने छे. तेमज परमां पण देहने ज आत्मा माने छे. देहथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप पोताना आत्माने नथी
ओळखतो तेथी बीजा आत्माने पण तेवा स्वरूपे ओळखतो नथी. पोते पोताना आत्मज्ञानथी पराङ्मुख वर्ततो
होवाथी, अने ईन्द्रियज्ञानद्वारा एकली बहिर्मुख प्रवृत्ति ज करतो होवाथी अज्ञानी जीव देहादिने ज आत्मा माने
छे, देहथी भिन्न चैतन्यस्वरूप आत्माने ते जाणतो नथी.
जुओ, अज्ञानीने बहिरात्मपणु छे, ते बहिरात्मपणुं कर्म वगेरे परना कारणे नथी, पण पोते ज पोताना
आत्माथी विमुख थईने, ईन्द्रियद्वारा बाह्य पदार्थोने ज ग्रहण करे छे तेथी ते देहादिने ज आत्मा माने छे,–माटे ते
बहिरात्मा छे. ज्ञानने अंतर्मुख