: ४ : ‘आत्मधर्म’ २४८३ : आसो :
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
[३ – ३४]
भावशक्ति अने अभावशक्ति
चक्रवर्तीनो य चक्रवर्ती एवो आ चैतन्य भगवान तेना भंडारमां सम्यग्दर्शन,
मुनिदशा, केवळज्ञान, सिद्धदशा वगेरे निर्मळ रत्नोनी हारमाळा गुंथायेली पडी छे;
तेने भंडार खोलीने बहार काढवानी रीत अहीं आचार्यभगवाने बतावी छे. अरे
जीव! अंतर्मुख थईने एक वार तारा चैतन्यभंडारने खोल, तारी चैतन्यशक्ति एवी
छे के तेने खोलतां तेमांथी निर्मळ पर्यायो नीकळशे, पण तेमांथी विकार नहि नीकळे.
ज्ञानस्वरूप आत्मा अनंत शक्तिवाळो छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. तेमां जीवत्वशक्तिथी शरू करीने
अनेकत्वशक्ति सुधीनी ३२ शक्तिओनुं वर्णन थयुं छे. हवे ‘भाव’ अने ‘अभाव’ वगेरेना जोडकांरूप छ
शक्तिओ कहे छे–
(३३–३४) भावशक्ति अने अभावशक्ति;
(३५–३६) भाव–अभावशक्ति अने अभाव–भावशक्ति;
(३७–३८) भाव–भावशक्ति अने अभाव–अभावशक्ति.
तेमांथी पहलां भावशक्ति तथा अभावशक्तिनुं वर्णन चाले छे. “ज्ञानस्वरूप आत्मामां विद्यमान
अवस्थावाळापणारूप भावशक्ति छे; तेम ज शून्य–अविद्यमानअवस्थावाळापणारूप अभावशक्ति छे.” आत्मा
त्रिकाळ टकनार वस्तु छे–ने तेनामां कोई ने कोई अवस्था वर्तमान वर्तती होय ज छे. पोतानी ज एवी शक्ति
छे के दरेक समये कोई अवस्था विद्यमान होय