होय ते सिवायनी बीजी बधी अवस्थाओ अविद्यमानरूप छे एवी अभावशक्ति छे. जो वर्तमान अवस्था
विद्यमान न होय तो वस्तु ज न होय अने जो पहेलांं–पछीनी अवस्थाओनो वर्तमान अभाव न होय तो पूर्वनुं
अज्ञान कदी (ज्ञानदशामां पण) टळे नहि, तेमज साधकपणामां ज भविष्यनी केवळज्ञानदशा थई जाय; पण
एम नथी. वर्तमानपणे एक अवस्था वर्ते छे ते भावशक्तिनुं कार्य छे, ने ते अवस्थामां बीजी अवस्थाओ
अविद्यमान छे–ते अभावशक्तिनुं कार्य छे. जुओ, आमां पर्यायबुद्धि ऊडी जाय छे, केम के एकेक पर्यायमां आखुं
द्रव्य साथे ने साथे वर्ते छे, पण एक पर्यायमां बीजी पर्याय वर्तती नथी. अने आवी द्रष्टिथी ज्यां आत्मा पोते
निर्मळभावरूपे परिणम्यो त्यां ते निर्मळभावमां विकारनो अभाव छे. पर्यायमां विकारनुं विद्यमानपणुं ज भासे,
विकारनो अभाव न भासे तो तेणे खरेखर आत्मानी भाव–अभावशक्तिने जाणी नथी.
भाई! पूर्वनी पर्यायोनो वर्तमानमां अभाव छे, पछीनी पर्यायो पण वर्तमानमां अविद्यमान छे, आवी तारी
अभावशक्ति छे, माटे पूर्वनी पर्यायोने न जो, पछीनी पर्यायोनो न जो, वर्तमान पर्यायने वर्तमान वर्तता द्रव्य
साथे जोड; तो ते पर्यायमां निर्मळतानो भाव अने मलिनतानो अभाव छे. अहीं भावशक्तिना परिणमनमां
निर्मळ अवस्थानुं विद्यमानपणुं लेवुं छे, केमके जेणे आवी शक्तिवाळा आत्माने लक्षमां लीधो तेने वर्तमान
पर्याय निर्मळपणे वर्ते छे.
वर्तवापणुं ते ‘भाव’ ने बीजी पर्यायोनुं नहि वर्तवापणुं ते ‘अभाव’–आवी बंने शक्तिओ आत्मामां एक
साथे वर्ते छे.
थई जाय. जडमां पण आवो स्वभाव छे एटले जडनी अवस्थानुं विद्यमानपणुं पण तेना पोताथी ज छे.
केमके ते अवस्थामां आत्मानो स्वीकार नथी.
भूतकाळनी अज्ञानदशा के भविष्यनी सिद्धदशा तेनो वर्तमान साधकदशामां अभाव छे. अज्ञानदशा भूतकाळमां
हती, सिद्धदशा भविष्यमां थवानी छे छतां वर्तमानमां ते बंनेनो अभाव छे,–एवी अभावशक्ति आत्मामां छे.