
ते जिनज्ञान प्रभावकर समक्तिद्रष्टि जाणवो. २३६
चेतयिता एटले के सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा विद्यारूपी रथमां आरूढ थयो छे अर्थात् पोताना ज्ञानस्वभावरूपी
मनरूपी रथ–पंथमां एटले के ज्ञानमार्गमां ज भ्रमण करे छे; आ रीते स्वभावरूपी रथमां बेसीने ज्ञानमार्गमां प्रयाण
करतो थको, ज्ञानस्वरूपमां परिणमतो थको, सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा जिनेश्वरना ज्ञाननी प्रभावना करे छे. अंतरमां
ज्ञानस्वभावमां एकाग्रतावडे धर्मीने ज्ञाननो विकास ज थतो जाय छे, ए ज भगवानना मार्गनी खरी प्रभावना छे.
भगवानना मार्ग प्रत्ये अतिशय बहुमान होवाथी तेनो महिमा जगतमां केम वधे–एवो व्यवहारप्रभावनानो भाव
धर्मीने आवे छे. पण, अंतरमां जेणे भगवाननुं अने भगवानना कहेला ज्ञानमार्गनुं खरुं स्वरूप ओळख्युं होय एटले
के ज्ञानस्वभावरूपी रथमां आरूढ थईने पोतामां ज्ञानमार्गनी निश्चय प्रभावना प्रगट करी होय तेने ज साची व्यवहार
प्रभावना! ‘प्र...भावना’ एटले के चैतन्यस्वरूपनी विशेष भावना करी करीने धर्मी जीव पोतानी ज्ञानशक्तिनो
फेलाव करे छे, ए ज प्रभावना छे. ज्ञाननी विशेष भावनारूप प्रभावनावडे धर्मीने निर्जरा ज थती जाय छे. जुओ,
लोकोने जैनधर्मनो महिमा आवे ने ए रीते जैनधर्मनी प्रभावना थाय.–आ तो व्यवहार प्रभावना छे, शुभराग वखते
एवो प्रभावनानो भाव पण धर्मीने आवे छे. अहो! आवो वीतरागी जैनमार्ग! ते लोकमां प्रसिद्ध थाय ने लोको तेनो
महिमा जाणे एवो भाव धर्मात्माने आवे छे. अने निश्चयथी ज्ञानने अंतरना चैतन्यरथमां जोडीने स्वभावनी विशेष
भावनावडे पोताना ज्ञाननी प्रभावना करे छे. ‘हुं ज्ञायक छुं’ एवो जे अनुभव थयो छे तेमां वारंवार उपयोगने
वाळतो धर्मात्मा पोताना आत्माने जिनमार्गमां आगळ वधारे छे, ते निश्चयथी प्रभावना छे. पुण्य–पापना रथमांथी
उतारीने चैतन्यरथमां आत्माने बेसाडवो, अने ए रीते चैतन्यरथमां बेसाडीने आत्माने जिनमार्गे–मोक्षमार्गे लई
जवो ते धर्मनी खरी प्रभावना छे; आवी प्रभावनाथी धर्मीने क्षणे क्षणे निर्जरा थती जाय छे, ने अप्रभावनाकृत बंधन
तेने थतुं नथी.
जे निःशंकता आदि आठ अंगो छे ते परने आश्रित होवाथी व्यवहार छे. अहीं तो निर्जरा अधिकार छे, एटले
निर्जराना कारणरूप निश्चय आठ अंगोनुं वर्णन आचार्यदेवे आठ गाथाओ द्वारा कर्युं छे. आ आठ अंगरूपी तेजस्वी
किरणोथी झगझगता सम्यग्दर्शनरूपी सूर्यनो प्रताप सर्वे कर्मोने भस्म करी नांखे छे.
जयवंतो वर्तो!