Atmadharma magazine - Ank 169
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः१०ः आत्मधर्मः १६९
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
(३प–३६)
भाव–अभावशक्ति अने अभाव–भावशक्ति
“आत्मामां भवता (वर्तता) पर्यायना व्ययरूप भाव–अभाव शक्ति छे;” तेमज “नहि भवता पर्यायना
उदयरूप अभाव–भावशक्ति छे.” आत्मामां पहेला समये जे पर्याय विद्यमान होय तेनो बीजा समये अभाव थई
जाय छे अने पहेला समये जे पर्याय अविद्यमान होय तेनो बीजे समये भाव (उत्पाद) थाय छे; आ रीते दरेक समये
एक पर्यायनो व्यय ने बीजी पर्यायनो उत्पाद अनादिअनंत थया ज करे छे एवो ज वस्तुनो स्वभाव छे, कोई बीजाना
कारणे पर्यायना उत्पाद–व्यय थता नथी.
‘भावनो अभाव’ अने ‘अभावनो भाव’ ए बंनेनो एक ज समय छे. जुदा जुदा समय नथी. जेमके
साधकने केवळज्ञान प्रगटयुं त्यां, पहेलां जे साधक दशा हती तेनो अभाव थयो ते ‘भावनो अभाव’ छे, अने पहेलां
जे केवळज्ञानदशा न हती ते प्रगटी तेनुं नाम ‘अभावनो भाव’ छे. आ रीते भाव–अभावशक्ति अने
अभावभावशक्ति ए बंने शक्तिओ एक ज समयमां कार्य करी रही छे. जो भावनो अभाव न थाय तो केवळज्ञान
थवा छतां पण छद्मस्थ–साधकदशा टळे नहि; अने जो अभावनो भाव न थाय तो साधकदशा टळवा छतां केवळज्ञाननी
उत्पत्ति न थाय,–एटले के कोई पर्याय ज न रहे, ने पर्याय विना द्रव्यनो पण अभाव ज थाय. माटे आ बंने शक्तिथी
पोतानुं स्वरूप समजवुं जोईए.
दरेक आत्मामां समये समये आ प्रमाणे बनी ज रह्युं छे, तेनी आ वात छे. द्रव्यपणे आत्मा सळंग विद्यमान
रहे छे, ने तेनी हालतो स्वयमेव बदलती रहे छे, पहेला समये जे हालत विद्यमान होय तेनो बीजा समये अभाव थई
जाय छे, अने पहेला समये जे हालत न होय ते बीजा समये नवी उत्पन्न थाय छे. जूनी पर्याय लंबाईने बीजा समये
पण चालु रहे–एम कदी बनतुं नथी, तेमज एक पर्याय टळीने बीजा समये नवी पर्याय उत्पन्न न थाय एम पण कदी
बनतुं नथी.
अहो! अभावरूप पर्यायनो बीजे समये भाव थाय एवो पोतानो स्वभाव ज छे, तो पछी सम्यग्दर्शन के
केवळज्ञान वगेरे पर्याय प्रगटाववा माटे बहार जोवानुं क्यां रह्युं? बहार तो जोवानुं न रह्युं, पण