
जाय छे अने पहेला समये जे पर्याय अविद्यमान होय तेनो बीजे समये भाव (उत्पाद) थाय छे; आ रीते दरेक समये
एक पर्यायनो व्यय ने बीजी पर्यायनो उत्पाद अनादिअनंत थया ज करे छे एवो ज वस्तुनो स्वभाव छे, कोई बीजाना
कारणे पर्यायना उत्पाद–व्यय थता नथी.
जे केवळज्ञानदशा न हती ते प्रगटी तेनुं नाम ‘अभावनो भाव’ छे. आ रीते भाव–अभावशक्ति अने
अभावभावशक्ति ए बंने शक्तिओ एक ज समयमां कार्य करी रही छे. जो भावनो अभाव न थाय तो केवळज्ञान
थवा छतां पण छद्मस्थ–साधकदशा टळे नहि; अने जो अभावनो भाव न थाय तो साधकदशा टळवा छतां केवळज्ञाननी
उत्पत्ति न थाय,–एटले के कोई पर्याय ज न रहे, ने पर्याय विना द्रव्यनो पण अभाव ज थाय. माटे आ बंने शक्तिथी
पोतानुं स्वरूप समजवुं जोईए.
जाय छे, अने पहेला समये जे हालत न होय ते बीजा समये नवी उत्पन्न थाय छे. जूनी पर्याय लंबाईने बीजा समये
पण चालु रहे–एम कदी बनतुं नथी, तेमज एक पर्याय टळीने बीजा समये नवी पर्याय उत्पन्न न थाय एम पण कदी
बनतुं नथी.