Atmadharma magazine - Ank 169
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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कारतकः २४८४ः ११ः
पर्याय सन्मुख जोवानुं पण न रह्युं. केमके जे पर्यायमां केवळज्ञाननो अभाव छे ते अभावमांथी कांई
केवळज्ञान नथी थतुं. पहेला समये केवळज्ञाननो अभाव छे तो बीजा समये केवळज्ञाननो भाव क्यांथी थशे?
–द्रव्यमांथी ज ते अभावनो भाव थशे, अभावनो भाव करवानी ताकात द्रव्यना स्वभावमां छे; तेथी ते
स्वभावसन्मुख जोवाथी ज, पहेलां अविद्यमान एवी निर्मळ पर्याय प्रगटी जाय छे. जे जीव द्रव्यसन्मुख द्रष्टि
नथी करतो तेने पण समये समये ‘अभावनो भाव’ तो थया ज करे छे, परंतु अभाव–भाव तेने विकाररूपे
ज थया करे छे. साधकने तो स्वभावना अवलंबने निर्मळपणे अभाव–भाव थया करे छे, समये समये विशेष–
विशेष निर्मळ पर्याय थया करे छे. सिद्ध भगवानने जो के हवे पर्यायनी निर्मळता वधवानुं बाकी नथी रह्युं,
छतां तेमणे पण शुद्धपर्यायना भाव–अभाव तेमज अभाव–भाव थया ज करे छे; सिद्धने एकने एक पर्याय
नथी रहेती, परंतु पहेला समयनी शुद्ध पर्यायनो बीजा समये अभाव (भाव–अभाव), अने पहेला समये
अविद्यमान एवी शुद्ध पर्यायनो बीजा समये उत्पाद (अभाव–भाव) ए प्रमाणे पर्यायमां भाव–अभाव अने
अभाव–भाव तेमने पण थया ज करे छे.
रागादि मलिनता ते तो आत्मानो स्वभाव नथी तेथी ते तो आत्मानी साथे कायम न ज रहे; परंतु
आत्माना स्वभावना आश्रये जे निर्मळ पर्याय प्रगटी ते पर्याय पण बीजे समये नथी रहेती, बीजे समये
तेनो अभाव थईने बीजी नवी निर्मळ पर्याय प्रगटे छे. ए रीते निर्मळ पर्यायमां पण समये समये जुदो जुदो
अनुभव छे. जे पर्याय उत्पन्न थई तेनो बीजे समये विनाश, अने जे पर्याय अविद्यमान हती तेनो उत्पाद ए
रीते पर्यायनुं परिवर्तन सदाय थया ज करे छे. साधकनुं ज्ञान एक एक समयनी पर्यायने जुदी पाडीने पकडी न
शके, पण वस्तुस्वभाव आवो छे–एम तेनी प्रतीतमां आवी जाय छेः अने ए प्रतीतना जोरे तेनी पर्यायोनुं
परिणमन स्वभावने अवलंबीने निर्मळ–निर्मळपणे थया करे छे.
प्रवचनसार गा. ११३मां कहे छे के “पर्यायो पर्यायभूत स्वव्यतिरेक व्यक्तिना काळे ज सत् होवाने लीधे
तेनाथी अन्य काळोमां असत् ज छे.” तेमज पर्यायोनो ‘क्रमानुपाती स्वकाळे उत्पाद थाय छे.’ जुओ, आमां घणो
सरस सिद्धांत छे. पर्याय पोताना काळ सिवाय बीजा काळे असत् छे, एटले कोई पण पर्याय पोताना समयने छोडीने
पहेलां के पछीना आघापाछा समयमां थती नथी, ए रीते दरेक द्रव्यनी पर्यायोनो क्रमानुपाती स्वकाळे उत्पाद थाय छे.
शरीर हाले–चाले–बोले के न हाले, न चाले, न बोले, ते बधामां परमाणुओनो स्वकाळे उत्पाद छे, जीवनी हाजरी के
गेरहाजरीने कारणे तेमां कांई थतुं नथी.
दरेक द्रव्यमां, दरेक समये एक पर्यायनो व्यय अने बीजी पर्यायनी उत्पत्ति थया ज करे छे. हती ते पर्याय गई,
अने नहोती ते थई, एमां भाव–अभाव अने अभाव–भाव बंने आवी जाय छे. भावनो अभाव अने अभावनो
भाव–एवा परिणमननी अत्रूटधारा दरेक वस्तुमां चाली रही छे. जेओ वस्तुना आवा परिणमनने ज नथी मानता
तेओ तो गृहीतमिथ्याद्रष्टि छे, तेओने तो मिथ्यात्वना अभावरूप ने सम्यक्त्वना भावरूप परिणमन थतुं नथी. द्रव्य–
गुण तो त्रिकाळ भावरूप रहे छे, ने पर्याय तो एक समयना ज भावरूप छे, बीजे समये तेनो अभाव थईने बीजो
नवो भाव प्रगटे छे. त्यां त्रिकाळी भावना आश्रये साधकने पर्यायमां निर्मळतानो भाव वधतो जाय छे ने मलिनतानो
अभाव थतो जाय छे. आवा परिणमन वगर अज्ञानदशा टळीने साधकदशा, के साधकदशा टळीने सिद्धदशा थई शके
नहीं.
अहीं जेटली शक्तिओ वर्णवे छे ते बधी शक्तिओ एकेक आत्मामां रहेली छे; अनंतशक्तिनो धारक एक
आत्मा छे; ज्यां एक शक्ति छे त्यां ज बीजी अनंतशक्तिओ भेगी ज रहेली छे. तेथी जो एक पण शक्तिवडे
आत्मस्वभावने जाणे तो अनंतशक्तिवाळो चैतन्यमूर्ति आत्मा प्रतीतमां आवी जाय छे.
प्रश्नः– आवुं झीणुं झीणुं समजवानुं शुं काम छे? अंते तो क्रोधादि घटाडवा छे ने! भलेने अणसमजु भरवाड
जेवो होय छतां आ समज्या वगर पण क्रोधादि घटाडे एटले धर्म थई जशे?
उत्तरः– अरे भाई! संसारना काममां तो तुं बुद्धि होंसथी चलावे छे, अने अहीं भरवाडनो दाखलो लईने तारे
समज्या वगर धर्म करवो छे, ए तो तने धर्मनी अरुचि ज छे. आत्मानो स्वभाव समज्या