
केवळज्ञान नथी थतुं. पहेला समये केवळज्ञाननो अभाव छे तो बीजा समये केवळज्ञाननो भाव क्यांथी थशे?
–द्रव्यमांथी ज ते अभावनो भाव थशे, अभावनो भाव करवानी ताकात द्रव्यना स्वभावमां छे; तेथी ते
स्वभावसन्मुख जोवाथी ज, पहेलां अविद्यमान एवी निर्मळ पर्याय प्रगटी जाय छे. जे जीव द्रव्यसन्मुख द्रष्टि
नथी करतो तेने पण समये समये ‘अभावनो भाव’ तो थया ज करे छे, परंतु अभाव–भाव तेने विकाररूपे
ज थया करे छे. साधकने तो स्वभावना अवलंबने निर्मळपणे अभाव–भाव थया करे छे, समये समये विशेष–
विशेष निर्मळ पर्याय थया करे छे. सिद्ध भगवानने जो के हवे पर्यायनी निर्मळता वधवानुं बाकी नथी रह्युं,
छतां तेमणे पण शुद्धपर्यायना भाव–अभाव तेमज अभाव–भाव थया ज करे छे; सिद्धने एकने एक पर्याय
नथी रहेती, परंतु पहेला समयनी शुद्ध पर्यायनो बीजा समये अभाव (भाव–अभाव), अने पहेला समये
अविद्यमान एवी शुद्ध पर्यायनो बीजा समये उत्पाद (अभाव–भाव) ए प्रमाणे पर्यायमां भाव–अभाव अने
अभाव–भाव तेमने पण थया ज करे छे.
तेनो अभाव थईने बीजी नवी निर्मळ पर्याय प्रगटे छे. ए रीते निर्मळ पर्यायमां पण समये समये जुदो जुदो
अनुभव छे. जे पर्याय उत्पन्न थई तेनो बीजे समये विनाश, अने जे पर्याय अविद्यमान हती तेनो उत्पाद ए
रीते पर्यायनुं परिवर्तन सदाय थया ज करे छे. साधकनुं ज्ञान एक एक समयनी पर्यायने जुदी पाडीने पकडी न
शके, पण वस्तुस्वभाव आवो छे–एम तेनी प्रतीतमां आवी जाय छेः अने ए प्रतीतना जोरे तेनी पर्यायोनुं
परिणमन स्वभावने अवलंबीने निर्मळ–निर्मळपणे थया करे छे.
सरस सिद्धांत छे. पर्याय पोताना काळ सिवाय बीजा काळे असत् छे, एटले कोई पण पर्याय पोताना समयने छोडीने
पहेलां के पछीना आघापाछा समयमां थती नथी, ए रीते दरेक द्रव्यनी पर्यायोनो क्रमानुपाती स्वकाळे उत्पाद थाय छे.
शरीर हाले–चाले–बोले के न हाले, न चाले, न बोले, ते बधामां परमाणुओनो स्वकाळे उत्पाद छे, जीवनी हाजरी के
गेरहाजरीने कारणे तेमां कांई थतुं नथी.
भाव–एवा परिणमननी अत्रूटधारा दरेक वस्तुमां चाली रही छे. जेओ वस्तुना आवा परिणमनने ज नथी मानता
तेओ तो गृहीतमिथ्याद्रष्टि छे, तेओने तो मिथ्यात्वना अभावरूप ने सम्यक्त्वना भावरूप परिणमन थतुं नथी. द्रव्य–
गुण तो त्रिकाळ भावरूप रहे छे, ने पर्याय तो एक समयना ज भावरूप छे, बीजे समये तेनो अभाव थईने बीजो
नवो भाव प्रगटे छे. त्यां त्रिकाळी भावना आश्रये साधकने पर्यायमां निर्मळतानो भाव वधतो जाय छे ने मलिनतानो
अभाव थतो जाय छे. आवा परिणमन वगर अज्ञानदशा टळीने साधकदशा, के साधकदशा टळीने सिद्धदशा थई शके
नहीं.
आत्मस्वभावने जाणे तो अनंतशक्तिवाळो चैतन्यमूर्ति आत्मा प्रतीतमां आवी जाय छे.