Atmadharma magazine - Ank 170
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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मागशरः २४८४ः११ः
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
(३७–३८)
भाव–अभावशक्ति अने अभाव–भावशक्ति
आ ज्ञानस्वरूप आत्मामां अनंतशक्तिओ छे तेनुं वर्णन चाले छे.
आत्मामां कोईपण एक अवस्था विद्यमान वर्ते छे–एम ‘भावशक्ति’ मां कह्युं (३३)
आत्मामां वर्तमानः जे अवस्था वर्ते छे ते सिवायनी आगळ–पाछळनी अवस्थाओ तेमां अविद्यमान छे–एम
‘अभावशक्ति’ मां कह्युं छे. (३४)
वर्तमान जे अवस्था वर्ते छे ते बीजा समये अभावरूप थई जाय छे–एम ‘भाव–अभाव’ शक्तिमां कह्युं
(३प)
बीजा समयनी जे अवस्था वर्तमान अविद्यमान छे ते बीजा समये प्रगटे छे–एम ‘अभाव–भाव’ शक्तिमां
कह्युं. (३६)
हवे, त्रिकाळी भावने आधारे वर्तमान भावनुं होवापणुं ‘भाव–भाव’ शक्तिमां कहे छे; तेमां त्रिकाळीना
आधारे वर्तमान कहीने द्रव्य–पर्यायनी एकता बतावे छे. (३७)
अने, द्रव्य–पर्यायनी जे एकता थई तेमां परनो ने विकारनो अत्यंत अभाव छे, ते ‘अभाव–अभाव’
शक्तिमां बतावे छे. (३८)
ज्ञान स्वरूप आत्मामां “भवता पर्यायना भवनरूप भाव–भावशक्ति छे;” तेमज “नहि भवता पर्यायना
अभवनरूप अभाव–अभाव शक्ति छे.”
एकेक शक्तिना वर्णनमां अमृतचंद्राचार्यदेवे ‘समयसार’ नो भंडार भरी दीधो छे, दरेक शक्तिमां शुद्ध
आत्मानो रस नीतरी रह्यो छे. कोईपण शक्तिथी जो आत्माना स्वरूपने ओळखवा जाय तो अनंतगुणना भंडार एवा
भगवान आत्मानी सन्मुखता थईने अपूर्व आनंदरसनो अनुभव थाय छे.
मारो स्वभाव अनंत गुणनो भंडार छे–एवुं ज्यां ज्ञान थयुं त्यां त्रिकाळी शुद्धभावना आश्रये पर्यायमां
सम्यक्स्वसंवेदन भाव वर्ते छे, तेनुं नाम ‘भाव–भाव’ छे. त्रिकाळभाव अने वर्तमानभाव बंने एक थईने वर्ते