
भावनुं भवन छे. अने पररूपे आत्मा कदी थतो नथी, परनो आत्मामां अभाव छे ने ते सदाय अभावपणे ज
रहे छे एवी अभाव–अभावशक्ति छे. आ रीते आ शक्तिओ आत्मानुं स्वमां एकत्व ने परथी विभक्तपणुं
बतावे छे. ‘भाव–भाव’ एटले गुणनो भाव अने पर्यायनो भाव एवा बंने भाव सहित आत्मा वर्ते छे;
अने ‘अभाव–अभाव’ एटले पोताथी भिन्न एवा पर द्रव्य–गुण–पर्यायो सदा पोतामां अभावपणे ज वर्ते
छे;–आवी बंने शक्तिओ आत्मामां छे. ‘आत्मज्ञान स्वरूप छे’ एम लक्षमां लेतां तेमां आ बधी शक्तिओ
भेगी आवी ज जाय छे.
पर्यायरूप निर्मळभाव वर्ते छे अने हवे गुणना परिणमनमां तेवो ज भाव वर्त्या करशे. साधकने शुद्धतानी वृद्धि थाय छे
ते जुदी वात छे, पण हवे निर्मळभावमां वच्चे बीजो विकारी भाव नहि आवे, गुणनुं एवुं ने एवुं निर्मळ परिणमन
थता करशे,–एवी आ वात छे.
आनंद सदाय आनंदभावरूपे रहीने वर्तमान–वर्तमानरूपे परिणमे छे; वीर्य त्रिकाळ वीर्यशक्तिरूपे रहीने
वर्तमान–वर्तमानपणे परिणमे छे; आम बधा गुण पोतपोताना त्रिकाळभावरूपे रहीने पोतपोतानी पर्यायना
वर्तमान भावरूपे परिणमे छे. पण ज्ञान परिणमीने बीजा गुणरूप थई जाय के बीजा गुणो परिणमीने
ज्ञानादिरूप थई जाय–एम बनतुं नथी. ‘भावनुं भवन छे’ एटले त्रिकाळपणे रहीने वर्तमानपणे परिणमे छे.
आ रीते त्रिकाळभावरूप अने वर्तमानभावरूप एवो वस्तुनो स्वभाव छे, तेनुं नाम ‘भावभावशक्ति’ छे.
अहो! मारा ज्ञानदर्शन वगेरेना त्रिकाळभावो जे पहेला वर्त्या ते ज वर्त्या करशे, शक्तिरूप भाव छे तेमांथी
व्यक्ति प्रगटशे, ज्ञानदर्शनना भावो त्रिकाळ ज्ञानदर्शनपणे टकीने पोतपोताना पर्यायमां परिणमशे.–आवा
स्वभावनी जेणे प्रतीत करी तेने हवे ज्ञान–दर्शनस्वभावना आधारे ज्ञान–दर्शनमय निर्मळ परिणमन ज थया
करशे, वच्चे अज्ञानभाव आवे ने रखडवुं पडे–एम बनतुं नथी. वर्तमान जे जाणे छे ते पछी पण जाणनारपणे
ज रहेशे, वर्तमान श्रद्धा करे छे ते पछी पण श्रद्धशे, केम के ज्ञानादिनुं जे वर्तमान छे ते ‘त्रिकाळनुं वर्तमान’
छे. त्रिकाळभावना आश्रये जे परिणमन थयुं ते त्रिकाळभावनी जातनुं शुद्ध ज थाय छे. अने परनो आत्मामां
अत्यंत अभाव छे ते सदाय अभावरूप ज रहे छे; रागादिनो पण त्रिकाळस्वभावमां अभाव छे ने ते
स्वभावना आश्रये वर्तमानमां पण ते रागना अभावरूप परिणमन थई जाय छे. आवी आत्मानी ‘अभाव–
अभावशक्ति’ छे. रागने जाणतां ज्ञान पोते रागरूप थई जतुं नथी, ज्ञान तो ज्ञानरूप ज रहे छे.
प्राप्ति थाय छे. अने शरीरादि जड छे तेनी सन्मुखताथी विकारनी उत्पत्ति थाय छे. भाई! तारा आत्मानी शक्तिने
ओळख तो तेमांथी निर्मळतानी प्राप्ति थाय.
परिणमवाथी वस्तुस्वभावमां कांई फेरफार थई जतो नथी, के तेमां ओछा–वधतापणुं थतुं नथी. त्रिकाळ एकरूप
स्वभावे आत्मा वर्ते छे, अने ते त्रिकाळ एकरूप स्वभावनी साथे एकता करीने वर्तमान भाव पण एकरूपे
(–शुद्धतारूपे) ज वर्ते छे. ज्यां शुद्धस्वभावनो आश्रय वर्ते छे त्यां एवी शंका नथी के मने अशुद्धता थशे के हुं पाछो
पडी जईश. केम के आत्माना स्वभावमां विकार नथी एटले आत्माना स्वभावना आश्रये जेनुं परिणमन छे तेने
विकार थवानी शंका थती नथी. आ रीते सम्यग्द्रष्टिने शुद्ध