Atmadharma magazine - Ank 170
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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मागशरः २४८४ः१पः
रूप ज थाय, आनंदनुं परिणमन आनंदरूप ज थाय; ए रीते बधाय गुणो पोतपोताना भावरूपे रहीने ज परिणमे
एवो स्वभाव छे.–आवो आत्मा ते लक्ष्य छे; ने लक्ष्यना लक्षे निर्मळ पर्याय ज थया करे छे. ज्ञान अज्ञानरूप परिणमे
के श्रद्धा मिथ्यात्वरूप परिणमे के आनंद दुःखरूप परिणमे,–तो ते परिणमन लक्ष्यना लक्षे थयेलुं नथी. गुण साथे एकत्व
थईने निर्मळ परिणति थाय तेने ज खरेखर गुणनुं परिणमन कहेवाय. विकार ते खरेखर गुणनी परिणति नथी.
विकार तो अद्धरथी (ध्रुवना आधार विना.) थयेल क्षणिक परिणाम छे. अहीं तो कहे छे के ध्रुवना आधारे जे निर्मळ
परिणमन थाय ते ज खरुं भावनुं भवन छे. शक्तिवान शुद्ध आत्मानी सन्मुख परिणमन थतां ध्रुव उपादान अने
क्षणिक उपादान बंने शुद्धरूप परिणमे छे–बंनेनी एकता थाय छे, ने वच्चेथी विकारनी आडश नीकळी जाय छे.
ध्रुवउपादान अने क्षणिक उपादान ए बंनेरूप वस्तुस्वभाव छे.
आत्मा ध्रुव रहीने वर्तमान–वर्तमान निर्मळ भावरूप परिणमे एवी भावभावशक्ति छे, तथा त्रिकाळमां अने
वर्तमानमां बंनेमां परनो तथा विकारनो अभाव ज राखे एवी अभाव–अभावशक्ति छे. आ बंने शक्तिओ
ज्ञानस्वरूप आत्मामां एक साथे वर्ते छे. एम आ ३७ तथा ३८ मी शक्तिमां बताव्युं.
आ रीते ३३–३४, ३प–३६ तथा ३७–३८ ए छ शक्तिओमां भाव–अभाव संबंधी कुल छ बोल कह्या.
मिथ्यात्वनो अभाव थईने वर्तमान सम्यक्त्व पर्याय प्रगटे छे तेमां आ छ बोल नीचे प्रमाणे लागु पडे छे–
(१) सम्यक्त्व पर्याय वर्तमान विद्यमान वर्ते छे ते ‘भाव.” (३३)
(२) वर्तमान सम्यक्त्व पर्यायमां पूर्वनी मिथ्यात्व पर्याय अविद्यमान छे, तेमज भविष्यनी केवळज्ञान
पर्याय पण अविद्यमान छे, ते “अभाव.” (३४)
(३) पहेला समये मिथ्यात्व भावरूप हतुं ते वर्तमानमां अभावरूप थयुं ते “भाव–अभाव” (अथवा जे
सम्यग्दर्शन पर्याय वर्तमान भावरूप छे ते बीजा समये अभावरूप थई जशे ते “भाव–अभाव.”
(३प)
(४) पूर्व समये सम्यक्त्वनो अभाव हतो ने वर्तमान समये ते प्रगटयुं ते “अभाव–भाव.” (अथवा
बीजा समयनी सम्यक्त्व पर्याय वर्तमान अभावरूप छे ते बीजा समये भावरूप थशे–ते “अभाव–
भाव.” (३६)
(प) श्रद्धागुण श्रद्धाभावरूपे कायम रहीने सम्यक्त्व पर्यायना भावरूप थयो छे ते “भावभाव.” (३७)
(६) श्रद्धाना
सम्यक् परिणमनमां परनो तथा मिथ्यात्वादिनो अभाव छे ने अभाव ज रहेशे, ते “अभाव–
अभाव.” (३८)
ए प्रमाणे ज्ञानस्वरूप आत्माना परिणमनमां ते छए धर्मो एक साथे ज वर्ते छे. आ ज रीते
सम्यक्त्वपर्यायनी जेम केवळज्ञान–सिद्धदशा वगेरेमां पण ए छए प्रकार एक साथे लागु पडे छे ते समजी लेवा.
‘अभाव–भाव’ कहेतां वर्तमान जे पर्याय थई ते पहेलां अभावरूप हती, ए रीते तेमां ‘प्राक्–अभाव’
आवी जाय छे. तेमज ‘भाव–अभाव’ कहेतां वर्तमान जे पर्याय विद्यमान छे ते पछीना समयोमां अभावरूप थई
जशे, ए रीते तेमां ‘प्रध्वंस–अभाव’ आवी जाय छे. ‘अभाव–अभाव’ कहेतां जीवमां पोताथी भिन्न एवा द्रव्य–
गुण–पर्यायनो त्रणेकाळ अभाव ज छे, ए रीते तेमां ‘अत्यंतअभाव’ पण आवी जाय छे. अने ‘अन्योन्य–अभाव’
तो पुद्गलनी पर्यायोमां ज परस्पर लागु पडे छे.
भाव–अभाव संबंधी जे छ शक्तिओ कीधी ते एक सरखी नथी पण दरेकमां फेर छे.
प्रश्नः– ३३मी ‘भाव’ शक्ति कीधी ने ३७ मी ‘भावभाव’ शक्ति कीधी. ते बंनेमां शुं फेर छे?
उत्तरः– ‘भावशक्ति’ मां तो वर्तमान पर्यायनी वात हती, ते तो भविष्यमां अभावरूप थई जशे; ज्यारे
‘भावभावशक्ति’ मां तो. जे ज्ञानादिभाव छे ते त्रिकाळ ज्ञानादिभावरूपे ज रहे छे, तेनो कदी अभाव थतो नथी–ए
वात छे. ए रीते बंनेमां फेर छे.
प्रश्नः– ३४ मी ‘अभाव’ शक्ति कीधी अने ३८ मी ‘अभाव–अभाव’ शक्ति कीधी, ते बंनेमां शुं फेर छे?