मागशरः २४८४ः१७ः
उत्तरः– ते प्रज्ञाछीणी पडतां वेंत ज आत्मा अने बंधनुं विदारण करी नांखे छे, अर्थात् बंनेने भिन्न भिन्न करी नांखे
छे; आत्माने तो ते शुद्ध–ज्ञान–आनंदना प्रवाहमां मग्न करे छे अने बंधने भिन्न करीने तेने अज्ञानभावमां
स्थापे छे. आ रीते आत्माने अने बंधने भिन्न भिन्न करती प्रज्ञाछीणी पडे छे.
(१०६) प्रश्नः– प्रज्ञाछीणी केवी छे?
उत्तरः– प्रज्ञाछीणी एटले ज्ञानस्वरूपबुद्धि, अथवा आत्मामां एकाग्र थयेलुं ज्ञान;–ते आत्माथी अभिन्न छे, अने ते ज
आत्माने मोक्षनुं साधन छे.
(१०७) प्रश्नः– प्रज्ञा ज मोक्षनुं साधन छे ने बीजुं केम नथी?
उत्तरः– केमके, मोक्षनो कर्ता आत्मा छे ने निश्चयथी कर्तानुं साधन तेनाथी भिन्न होतुं नथी, माटे आत्माथी अभिन्न
एवी प्रज्ञा ज मोक्षनुं साधन छे, ने तेनाथी भिन्न बीजुं कोई मोक्षनुं साधन नथी.
(१०८) प्रश्नः– शास्त्रोमां तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने मोक्षनुं कारण कह्युं छे अने अहीं प्रज्ञाछीणीने ज केम मोक्षनुं
साधन कह्युं?
उत्तरः– ए बराबर छे; आ ‘प्रज्ञाछीणी’मां पण ए सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणेय समाई जाय छे, माटे
‘सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र’ने मोक्षमार्ग कहो, के ‘प्रज्ञा’ने मोक्षनुं कारण कहो तेमां कांई विरोध आवतो
नथी.
(१०९) प्रश्नः– मोक्षार्थीए प्रथम शुं करवुं?
उत्तरः– मोक्षार्थीए प्रथम तो, आत्मा अने बंधने तेमनां स्वलक्षणोना ज्ञानथी सर्वथा छेदवा.
(११०) प्रश्नः– पछी शुं करवुं?
उत्तरः– पछी, उपयोग जेनुं लक्षण छे एवा शुद्धात्माने ज ग्रहण करवो; अने रागादिक जेनुं लक्षण छे एवा समस्त
बंधने छोडवो.
(१११) प्रश्नः– पहेलां तो शुभराग करीए, तेनाथी मोक्षमार्ग पमाशे?
उत्तरः– ना; राग तो अनादिथी करी ज रह्यो छे, तेना वडे कदी मोक्षमार्गनी शरूआत थती नथी; आत्मा अने
बंधना भेदज्ञानवडे ज मोक्षमार्गनी शरूआत थाय छे, माटे मोक्षार्थीए पहेलां तो आत्मा अने बंधनुं
भेदज्ञान करवुं.
(११२) प्रश्नः– आत्माने अने बंधने ‘सर्वथा छेदवा’ एटले शुं?
उत्तरः– सर्वथा छेदवा एटले रागना एक अंशथी पण लाभ न मानवो; सर्व प्रकारना बंधभावोने पोताना
ज्ञानस्वभावथी भिन्न जाणवा. कोईपण प्रकारना रागथी मने किंचित् लाभ थशे एवी जेनी बुद्धि छे तेणे
आत्माने अने बंधभावने सर्वथा छेद्या नथी. समस्त प्रकारना बंधभावोने पोताना ज्ञानस्वभावथी भिन्न
जाणीने, ज्ञानस्वभावमां जेणे एकता करी तेणे ज आत्मा अने बंधने सर्वथा छेद्या छे.
(११३) प्रश्नः– जेने तीर्थंकरप्रकृति बंधाणी ते जीव त्रीजा भवे अवश्य मोक्ष पामे,–अने तीर्थंकरप्रकृतिनुं बंधन तो
रागथी ज थाय छे, तो राग ते मोक्षनुं कारण थयुं के नहि?
उत्तरः– ना; राग तो बंधनुं कारण छे, ते मोक्षनुं कारण केम होय? तीर्थंकरप्रकृति जेने बंधाणी ते त्रीजा भवे
अवश्य मोक्ष पामशे,–ए वात बराबर छे, परंतु ते मोक्ष कांई तीर्थंकरप्रकृतिना कारणे नथी पामतो,
तेमज ते रागना कारणे पण मोक्ष नथी पामतो. परंतु तीर्थंकरप्रकृति बांधती वखते साथे जे भेदज्ञान
वर्ती रह्युं छे ते ज मोक्षनुं कारण थाय छे. विचार तो करो के राग ते अंतर्मुखभाव छे के बहिर्मुख?
राग तो बहिर्मुख ज भाव छे, तो जे बहिर्मुख भाव होय तेना वडे अंतरस्वभावमां केम जवाय? न ज
जवाय; माटे राग ते मोक्षनुं कारण नथी. ज्यारे ते रागनो अभाव करशे त्यारे ज केवळज्ञान अने मोक्ष
थशे...
(११४) प्रश्नः– प्रभो! बंधने छोडीने शुद्ध आत्मानुं ग्रहण करवुं–एम आपे फरमाव्युं, तो ते आत्मानुं ग्रहण शा वडे
करवुं?
उत्तरः– जेम प्रज्ञा वडे आत्माने जुदो कर्यो तेम प्रज्ञा वडे ज आत्मानुं ग्रहण करवुं.