
(११प) प्रश्नः– व्यवहारना शुभरागवडे आत्मानुं ग्रहण केम न थाय?
उत्तरः– रागथी आत्मानुं ग्रहण नथी थतुं, केमके रागथी तो आत्माने जुदो कर्यो छे; तो जेनाथी आत्माने जुदो कर्यो
ज बतावी गया छीए.
उत्तरः– ना; शुभराग ते कारण ने स्वरूपस्थिरता तेनुं कार्य एम केम होय? शुभराग तो बंधनुं कारण छे ने स्वरूप–
ते स्वरूपस्थिरतानुं कारण नथी.
उत्तरः– आत्माने ग्रहवो एटले आत्मामां स्थिर थवुं. जेम ज्ञानने अंतर्मुख करीने प्रज्ञावडे भेदज्ञान कर्युं, तेम ज्ञानने
जे चेतनारो ते ज हुं,
बाकी बधा जे भाव ते सौ
मुज थकी पर जाणवुं. २९७
स्वलक्षणोथी लक्ष्य जे आ बाकीना व्यवहाररूप भावो छे ते बधाय, चेतकपणारूपी व्यापकना व्याप्य नहि थता
होवाथी, माराथी अत्यंत भिन्न छे.–आ प्रमाणे प्रज्ञावडे आत्मामां अनुभव करवो. आ ज प्रज्ञावडे आत्माने
ग्रहण करवानी रीत छे. आ सिवाय बीजी कोई रीते (–रागादि व्यवहार भावोना अवलंबने) आत्मानुं
ग्रहण थई शकतुं नथी.
उत्तरः– व्यवहाररूप भावो चैतन्यलक्षणथी भिन्न छे.
(१२१) प्रश्नः– सम्यग्द्रष्टिनो व्यवहार केवो छे?
उत्तरः– सम्यग्द्रष्टिनो शुभरागरूप व्यवहार ते पण चैतन्यलक्षणथी भिन्न छे, ने ते बंधनुं कारण छे.
(१२२) प्रश्नः– शुभरागरूप व्यवहारथी शुं लक्ष्य थाय छे?
उत्तरः– शुभरागरूप व्यवहारथी बंध लक्ष्य थाय छे, तेनाथी आत्मा लक्षित नथी थतो.
(१२३) प्रश्नः– प्रज्ञा कोने अवलंबनारी छे?
उत्तरः– प्रज्ञा आत्माना चैतन्यलक्षणने ज अवलंबनारी छे, रागादिने अवलंबनारी नथी.
(१२४) प्रश्नः– व्यवहारना अवलंबनवडे आत्मानुं ग्रहण केम थतुं नथी.
उत्तरः– केमके व्यवहार तो बंधमार्गने अनुसरे छे, तेथी ते व्यवहारना अवलंबनवडे तो बंधनुं ज ग्रहण थाय छे, पण
उत्तरः– आत्माना स्वभावमां ते रागादि व्यवहाररूप भावोनो अत्यंत अभाव छे.
(१२६) प्रश्नः– न्याय शास्त्रोमां जे प्राक्–प्रध्वंस आदि चार प्रकारना अभाव कह्या छे तेमांथी आ ‘अभाव’ कया