
उत्तरः– आत्मा अने बंधनुं भेदज्ञान करीने, शुद्ध आत्माना ग्रहणथी अने बंधना त्यागथी आत्मानी मुक्ति थाय छे.
(१२८) प्रश्नः– मोक्षार्थीए शुं जाणवुं?
उत्तरः– मोक्षार्थीए एम जाणवुं के एक चैतन्यमय भाव ज हुं छुं ने ते ज मारे ग्रहण करवा योग्य छे; ए सिवाय बीजा
उत्तरः– हा, केम के शुद्ध चैतन्य स्वभावमां ते भाव नथी, माटे ते परनो भाव छे. शुद्ध चैतन्यस्वभावमां जे अभेद छे
उत्तरः– ग्रहण करवो एटले अनुभववो, तेमां एकाग्र थवुं.
(१३१) प्रश्नः– व्यवहार रत्नत्रयनो शुभ राग छे ते केवो छे?
उत्तरः– मोक्षने माटे व्यवहार रत्नत्रयनो शुभ राग पण सर्वथा हेय छे. आचार्य भगवान स्पष्ट कहे छे के–
भाव ज ग्रहण करवा योग्य छे, बीजा भावो सर्वथा छोडवा योग्य छे.
उत्तरः– केम के ज्यां अंतरमां चैतन्यस्वभावमां सन्मुख थईने एकाग्र थयो त्यां मोक्षार्थीने शुद्ध चैतन्यस्वभाव सिवाय
बहिर्मुखभावो सहेजे छूटी ज जाय छे. ज्यां अंतर्मुख थईने शुद्ध चैतन्यभावनुं ग्रहण कर्युं त्यां बहिर्मुख
परभावोनुं ग्रहण केम होय? अंतर्मुख थईने स्वभावनुं ग्रहण करतां बहिर्मुख परभावो छूटी ज जाय छे; माटे
मोक्षार्थीने ते परभावो सर्वथा हेय ज छे, ने एक शुद्ध चैतन्य स्वभाव ज सर्वथा उपादेय छे,–एम जाणवुं.
जाण्या छे, ते ज्ञानी परभावोने पोताना स्वभावमां केम भेळवे? रागादिथी ते लाभ केम माने?–न ज माने.
उत्तरः– जेम आर्य माणस के जेने स्वप्नेय मांसभक्षणनो भाव न होय ते, “मांसभक्षण करवा जेवुं छे”–एम वाणीमां
एवां ज्ञानी धर्मात्मा रागादि परभावोने पोताना स्वभावमां केम भेळवे?–न ज भेळवे; अने ते ज्ञानीना
वचनमां ‘रागथी लाभ थाय’ एवुं प्रतिपादन पण केम आवे?–न ज आवे.
उत्तरः– केमके निश्चयथी आत्माना स्वभावने अने रागादि परभावोने स्व–स्वामीसंबंधनो असंभव छे; माटे शुद्ध