
उत्तरः– जे जीव परथी भिन्न शुद्ध आत्माना अनुभव सहित छे, ने परद्रव्यने जरा पण पोतानुं मानतो नथी ते
उत्तरः– ‘उपयोग ज जेनुं एक लक्षण छे एवो एक शुद्ध आत्मा ज हुं छुं’–एम निश्चय करीने, ते निरपराधी जीव शुद्ध
ज छे. अने, शुद्ध आत्माना अनुभवने लीधे, ‘मने बंधन थशे’ एवी शंका तेने पडती नथी; आ रीते
निरपराधी जीव निःशंक होय छे, के ‘हुं नहि बंधाउं, अल्पकाळमां ज हुं मोक्षपद पामीश.’
उत्तरः– धर्मी जीव पोताना ज्ञानस्वभावने ज स्पर्शे छे.
(१४९) प्रश्नः– ते सम्यग्द्रष्टि धर्मी जीव कोने स्पर्शतो नथी?
उत्तरः– धर्मी जीव बंधने जरा पण स्पर्शतो नथी.
(१प०) प्रश्नः– स्पर्शवुं एटले शुं?
उत्तरः– स्पर्शवुं एटले सेववुं–अनुभववुं; धर्मी जीव पोताना ज्ञानस्वभावने ज सेवे छे, तेने ज पोताना स्वभाव तरीके
नथी, पण पोताना स्वभावथी भिन्न जाणे छे.
उत्तरः– अज्ञानी जीव पोताना ज्ञानस्वभावने स्पर्शतो नथी, तेने सेवतो नथी, तेने अनुभवतो नथी.
(१प२) प्रश्नः– तो ते अज्ञानी कोने स्पर्शे छे?
उत्तरः– ते अज्ञानी बंधभावने ज स्पर्शे छे, बंधभावने ज सेवे छे, बंधभावने पोतानी साथे एकमेकपणे अनुभवे छे.
(१प३) प्रश्नः– जीवने लक्ष्मी के कुटुंब ते शरणरूप छे के नहि?
उत्तरः– लक्ष्मी, कुटुंब के शरीर ते कोई चीज जीवने शरणरूप नथी.
(१प४) प्रश्नः– शुभरागरूप पुण्य ते जीवने शरणरूप छे के नहि?
उत्तरः– शुभराग पण जीवने अशरणरूप छे. ते रागना शरणे जीवने शांति, धर्म के मुक्ति थती नथी.
(१पप) प्रश्नः– तो जीवने शरणरूप कोण छे?
उत्तरः– पोतानो शुद्ध आत्मा ज जीवने शरणरूप छे, तेना ज आश्रये जीवने धर्म, शांति के मुक्ति थाय छे.
(१प६) प्रश्नः– अरहंत–सिद्ध–साधु अने केवली प्ररूपित धर्म–ए चारने शरणरूप कह्या छे ने?
उत्तरः– ते चारमांथी अरहंत–सिद्ध अने साधु ए त्रण तो शुद्धताने पामेला आत्मा छे, तेमनुं व्यवहारथी शरण छे ने
आत्मानो शुद्धस्वभाव ज छे; अथवा केवळी भगवाने धर्मनी प्ररूपणामां शुद्ध आत्माना आश्रये ज धर्म थवानुं
कह्युं छे, माटे शुद्ध आत्मा ज जीवने शरणरूप छे.
उत्तरः– जीवे अनादिथी पोताना शुद्ध आत्मानुं स्पर्शन कर्युं नथी, तेमां रस लीधो नथी, तेनी गंध अंतरमां बेसाडी
उत्तरः– शुद्ध आत्मानुं श्रवण करी, तेमां रस लई (अर्थात् तेनी प्रीति करी), आत्मामां तेनी गंध बेसाडी, वारंवार
अनुभवन करवुं, ते जीवनुं कर्तव्य छे, ने ते ज मोक्षनो हेतु छे.