Atmadharma magazine - Ank 171
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 25

background image
पोषः २४८४ः ९ः
छे! पोताने जरीक शुभ राग वर्ते छे तेनोय बचाव नथी करता...स्पष्ट कहे छे के अरे! अमने पण जे राग छे ते कलंक
छे. अमे मोक्षार्थी छीए..आटलो राग पण अरे! अमारा मोक्षने अटकावनार होवाथी कलंक छे. बचाव कोने माटे?
अमे तो अमारा मोक्षने ज इच्छीए छीए, रागने नथी इच्छता.
–आवा भगवान आचार्य मोक्षेच्छु जीवने कहे छेः
बापु! रागनी होंस करीश नहि. ‘होंसीडा, होंस मत कीजे’–हे मोक्षना होंसीडा! तुं रागनी होंस करीश नहि.
अमे तो संयमना वीतरागी अमृतने पीनारा, तेमां राग तो कडवो विष जेवो छे. शास्त्र लखाय छे ने ते तरफनो जरा
विकल्प ऊठे छे, पण ते विकल्पमां अमारी होंस नथी; जो तेमां अमारी होंस कल्पो तो मोक्षमार्गमां वर्तती अमारी
शुद्धपर्यायने तमे अन्याय आपो छो, माटे आ रागनी वृत्तिने अमारी होंस तरीके न स्वीकारशो.–ए तो कलंक छे!
अहा! साक्षात् तीर्थंकरभगवान जेटली जेमना कथननी प्रमाणता..अने जेमना सूत्रनो आधार मोटा मोटा आचार्यो
पण आदरपूर्वक आपे..एवा भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव आ कहे छेः “मार्गनी प्रभावना अर्थे अमे आ कहीए छीए, पण
विकल्पमां अमारो उत्साह नथी, उत्साह तो स्वरूपमां ज छे. अमारा आत्मामां वीतराग परिणतिनी उत्कृष्टता थाय ते
ज खरेखर मार्गनी प्र–भावना छे. विकल्प छे ते व्यवहार छे, ते विकल्पमां अमारो उत्साह नथी, व्यवहारमां अमारो
उत्साह नथी.
मोक्षमार्गमां वर्तता मुनिओने निश्चय–व्यवहारनी संधि केवी होय ते आचार्यदेव टीकामां बतावशे; पण तेमांय
कर्तव्य तो वीतरागभाव ज छे, अंश–मात्र राग मोक्षेच्छुए कर्तव्य नथी. राग करवानुं भगवाननुं फरमान नथी,
वीतराग भगवाननुं विधान तो वीतरागी अनुभूति करवानुं ज छे. रागादि उदयभावनी भरतीरूप जे भवसागर, तेने
वीतरागभावरूप नाव वडे भव्य जीव तरे छे.
– आ बार अंगनो सार छे. आचार्यदेव आमोद–प्रमोदमां आवीने कहे छे के विस्तारथी बस थाओ. जयवंत
वर्तो आ वीतरागता, के जे साक्षात् मोक्षमार्गनो सार होवाथी समस्त शास्त्रोना तात्पर्यभूत छे.
* * *
प्रवचन पूरुं थतां ज, वीतरागमार्ग अने तेना उपासक संतोना जयजयकारथी सभा गूंजी ऊठी हती...आ
गाथाना प्रवचनो दरमियान वारंवार आवा जयनाद करीने पू. बेनश्री–बेन पोतानो विशिष्ट प्रमोद व्यक्त करता हता.
तेमां आपणे पण साद पुरावीए–
वीतरागी मोक्षमार्गनो जय हो.
वीतरागमार्गी आचार्यभगवंतोनो जय हो.
वीतरागमार्ग उपासक अने दर्शक गुरुदेवनो जय हो.
* * *
गाथानुं वांचन जेम जेम आगळ चालतुं हतुं तेम तेम गुरुदेव वधु ने वधु खीलता जता हता. छठ्ठना
प्रवचनमां कह्युंः अहा, जुओ तो खरा! आचार्यदेव आम हाथमां लईने साक्षात् मोक्षमार्ग देखाडी रह्या छे. सिद्धपदना
पूर्णानंदनी प्राप्तिरूप जे मोक्ष, तेना मार्गमां अग्रेसर–नेता कोण छे?–के वीतरागभाव; वच्चे राग आवे ने मोक्षमार्गमां
अग्रेसर नथी–मुख्य नथी, गौण छे; गौण छे एटले व्यवहार छे, ने व्यवहार तो अभूतार्थ होवाथी हेय छे. मोक्षमार्गमां
वीतरागता ज अग्रेसर छे एटले के मुख्य छे, ने ते ज निश्चय मोक्षमार्ग होवाथी उपादेय छे. वीतरागभाव ज
मोक्षमार्गनो नेता–एटले के मोक्षमार्गे लई जनार छे, राग ते मोक्षमार्गे लई जनार नथी.
आचार्य भगवान प्रमोदथी कहे छे के–
जयवंत वर्तो आ साक्षात् वीतरागता..के जे मोक्षमार्गनो सार छे..ने जे समस्त शास्त्रनुं तात्पर्य छे. भगवान
सर्वज्ञपरमेश्वरे जेटला शास्त्रो कह्या छे तेनो सार आ वीतरागता ज छे.–ते वीतरागता जयवंत वर्तो..ते ए
वीतरागमार्गना प्रकाशक संतो जगतमां जयवंत वर्तो!
* * *
आवो वीतरागमार्ग जे समजे तेने ते समजावनारा संतो प्रत्ये केटलो विनय होय!–केटलुं बहुमान होय!! रागमां
वर्ततो होवा छतां जेने वीतरागी पंचपरमेष्ठी भगवंतो प्रत्ये विनय अने बहुमाननो आदरभाव नथी उल्लसतो तेने तो
वीतरागमार्गनी श्रद्धा पण थती नथी. वीतरागभावनी भावनावाळाने, साक्षात् वीतरागता न थाय त्यां सुधी, वीतरागी पुरुषो