जेम कोई माणस अनेक प्रकारनी आडीअवळी वातो करतो होय त्यां बीजो तेने कहे छे के भाई, ए बधुं ठीक पण तारा
हृदयमां शुं छे ते कही देने! तेम शास्त्रमां निश्चयनी, व्यवहारनी, निमित्तनी, कर्मनी वगेरे अनेक प्रकारनी वात भरी छे
पण तेनुं हृदय शुं छे? संतो, शास्त्रनुं हृदय खोलीने बोले छे के शास्त्रनुं हृदय तो परम वीतरागता करवी ते ज छे. “
परम वीतरागता” मां बधाय शास्त्रोना हृदयनुं रहस्य आवी जाय छे, ए ज सर्व शास्त्रोनुं फरमान छे, ए ज संतोना
हृदयनी वात छे, ने ए ज मोक्षनो मार्ग छे.
आपवामां आव्यो छे.
आचार्य भगवान समजावे छे केः
आत्मानुं सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र
ते त्रणे सुखरूप छे; आत्मानो धर्म सुखरूप छे,
दुःखरूप नथी. हे जीव! तारी सुखशक्तिमांथी ज
तने सुख मळशे, बीजे क्यांयथी सुख तने नहि
मळे. केमके–
मारीने तारी सुखशक्तिने ऊछाळ,–ऊछाळ एटले के
पर्यायमां परिणमाव;–जेथी तारा सुखनो प्रगट
अनुभव तने थशे.