Atmadharma magazine - Ank 171
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 25

background image
पोषः २४८४ः ११ः
जेम कोई माणस अनेक प्रकारनी आडीअवळी वातो करतो होय त्यां बीजो तेने कहे छे के भाई, ए बधुं ठीक पण तारा
हृदयमां शुं छे ते कही देने! तेम शास्त्रमां निश्चयनी, व्यवहारनी, निमित्तनी, कर्मनी वगेरे अनेक प्रकारनी वात भरी छे
पण तेनुं हृदय शुं छे? संतो, शास्त्रनुं हृदय खोलीने बोले छे के शास्त्रनुं हृदय तो परम वीतरागता करवी ते ज छे. “
परम वीतरागता” मां बधाय शास्त्रोना हृदयनुं रहस्य आवी जाय छे, ए ज सर्व शास्त्रोनुं फरमान छे, ए ज संतोना
हृदयनी वात छे, ने ए ज मोक्षनो मार्ग छे.
जयवंतो वर्तो ए वीतरागता..
“वीतरागमार्ग बतावनार..सेवकने तारनार..गुरुदेवनो जय हो”
आ तो हजु नमूनो छे...थोडा ज समयमां श्री पंचास्तिकाय परमागम गुजराती भाषांतर सहित प्रसिद्ध थवानुं
होवाथी, ते शास्त्रना महिमानो जिज्ञासुओने ख्याल आवे ते माटे अहीं ते शास्त्र उपरना प्रवचनोमांथी थोडोक नमूनो
आपवामां आव्यो छे.
– ब्र. हरिलाल जैन
* * *
तुं ज्यां छो त्यां ज तारुं सुख छे
सुख ते आत्मानुं प्रयोजन छे. दरेक जीव सुख
इच्छे छे...ने...सुखने ज माटे झांवा नांखे छे. अहीं
आचार्य भगवान समजावे छे केः
हे जीव! तारा आत्मामां सुखशक्ति
होवाथी आत्मा ज स्वयं सुखरूप थाय छे.
आत्मानुं सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र
ते त्रणे सुखरूप छे; आत्मानो धर्म सुखरूप छे,
दुःखरूप नथी. हे जीव! तारी सुखशक्तिमांथी ज
तने सुख मळशे, बीजे क्यांयथी सुख तने नहि
मळे. केमके–
तुं ज्यां छो त्यां ज तारुं सुख छे.
हे जीव! तारी सुखशक्ति एवी छे के ज्यां
दुःख कदी प्रवेशी शकतुं नथी, माटे आत्मामां डुबकी
मारीने तारी सुखशक्तिने ऊछाळ,–ऊछाळ एटले के
पर्यायमां परिणमाव;–जेथी तारा सुखनो प्रगट
अनुभव तने थशे.
– पांचमी शक्तिना प्रवचनमांथी