माटे परने कारक बनावे एवो आत्मानो स्वभाव
नथी...जेणे आनंदमय साचुं जीवन जीववुं होय तेणे अंतर्मुख
थईने आत्मामां शोधवानुं छे...अंर्तद्रष्टिथी ज्यां
चैतन्यस्वभावनुं सेवन कर्युं त्यां चैतन्यभगवान प्रसन्न
थईने कहे छे के माग! माग! जे जोईए ते माग–
सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीना बधाय पद
आपवानी ताकात आ चैतन्यराजा पासे छे; माटे ते
चैतन्यराजानुं सेवन करीने तेने ज प्रसन्न कर, बीजा पासे
न मांग; बहार फांफा न मार, अंर्तअवलोकन कर.
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी अनेक शक्तिओनुं वर्णन घणा घणा प्रकारे अलौकिक रीते आवी गयुं छे. अत्यार
सुधीमां ३८ शक्तिओनुं वर्णन थयुं, हवे नव शक्तिओ बाकी छे. तेमां ३९मी ‘भावशक्ति’ मां विकारी छ कारकोनो
अभाव बतावे छे; पछी ४०मी ‘क्रियाशक्ति’ मां स्वभावरूप छ कारको बतावशे; अने त्यार पछी कर्म–कर्ता–करण–
संप्रदान–अपादान–अधिकरण तथा संबंध ए साते शक्तिओने आत्माना स्वभावरूप वर्णवीने आचार्य भगवान ४७