Atmadharma magazine - Ank 171
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः आत्मधर्मः १७१
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
(३९)
भावशक्ति
आत्मा ज स्वयं छ कारणरूप थईने सुखरूप
परिणमवाना सामर्थ्यवाळो छे. पोताना सुखादि भावोने
माटे परने कारक बनावे एवो आत्मानो स्वभाव
नथी...जेणे आनंदमय साचुं जीवन जीववुं होय तेणे अंतर्मुख
थईने आत्मामां शोधवानुं छे...अंर्तद्रष्टिथी ज्यां
चैतन्यस्वभावनुं सेवन कर्युं त्यां चैतन्यभगवान प्रसन्न
थईने कहे छे के माग! माग! जे जोईए ते माग–
सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीना बधाय पद
आपवानी ताकात आ चैतन्यराजा पासे छे; माटे ते
चैतन्यराजानुं सेवन करीने तेने ज प्रसन्न कर, बीजा पासे
न मांग; बहार फांफा न मार, अंर्तअवलोकन कर.
आत्मामां अनंत शक्तिओ छे, तेनुं आ वर्णन चाले छे. आत्मा ज्ञानलक्षणथी प्रसिद्ध थाय छे, छतां ते एकांत
ज्ञानस्वरूप ज नथी, ज्ञान साथे बीजी अनंत शक्तिओ रहेली छे तेथी भगवान आत्मा अनेकान्त स्वरूप छे.
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी अनेक शक्तिओनुं वर्णन घणा घणा प्रकारे अलौकिक रीते आवी गयुं छे. अत्यार
सुधीमां ३८ शक्तिओनुं वर्णन थयुं, हवे नव शक्तिओ बाकी छे. तेमां ३९मी ‘भावशक्ति’ मां विकारी छ कारकोनो
अभाव बतावे छे; पछी ४०मी ‘क्रियाशक्ति’ मां स्वभावरूप छ कारको बतावशे; अने त्यार पछी कर्म–कर्ता–करण–
संप्रदान–अपादान–अधिकरण तथा संबंध ए साते शक्तिओने आत्माना स्वभावरूप वर्णवीने आचार्य भगवान ४७
शक्तिओनुं कथन पूरुं करशे.
केवी छे आत्मानी भावशक्ति? कर्ता–कर्म आदि