Atmadharma magazine - Ank 171
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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पोषः २४८४ः १३ः
कारको अनुसार जे क्रिया तेनाथी रहित भवनमात्रमयी (–होवामात्रमयी, थवामात्रमयी) भावशक्ति छे. पहेलां ३३मा
बोलमां भावशक्ति कही हती त्यां तो अवस्थानी विद्यमानता बतावी हती; ने आ भावशक्ति जुदी छे, आ
भावशक्तिमां भेदरूप कारकोथी निरपेक्षपणुं बतावे छे.
दुःख टाळीने सुखी थवा माटे सुख क्यां शोधवुं तेनी आ वात छे. भाई, तारुं सुख तारामां छे, ने तारो आत्मा
ज स्वयं छ कारकरूप थईने सुखरूप परिणमवाना सामर्थ्यवाळो छे. परने कारक बनावीने तेनी पासेथी सुख लेवा
मांगशे तो कदी सुख नहि मळे. पोताना सुखादि भावोने माटे परने कारक बनावे एवो आत्मानो स्वभाव नथी. कर्ता–
कर्म आदि भिन्न भिन्न कारको अनुसार जे क्रिया थाय ते रूपे परिणमवानो आत्मानो स्वभाव नथी, पण तेनाथी
रहित परिणमवानो आत्मानो स्वभाव छे. आत्मानुं द्रव्यगुण के पर्याय पोताथी भिन्न बीजा कोई कारकोना आधारे
टके एवो आत्मानो पराधीन स्वभाव नथी; पण अन्य कारकोथी रहित पोते स्वयं पोताना भावरूपे परिणमे एवो
तेनो स्वभाव छे. जो आवा स्वभावमां शोधे तो ज सुख मळे तेम छे. पण बीजा कारणोमां सुख शोधे तो सुख मळे
तेम नथी.
हीरानो हार पोतानी डोकमां पहेर्यो होय ते पोतानी डोकमां जुए तो मळे, पण बहावरो बनीने बहार
बीजे शोधे तो ते हार मळे नहि ने मुंझवण टळे नहि. तेम सुख पोतामां ज्यां भर्युं छे त्यां शोधे तो मळे.
आत्मामां सुखस्वभाव भर्यो छे तेमां अंर्तमुख थईने सुख शोधे तो मळे, पण बाह्य वृत्तिथी बहावरानी जेम
बहारमां शोधे तो सुख मळे नहि ने दुःख टळे नहि. सुख अने सुखना कारक आत्मामां ज छे, बहारमां नथी;
तेथी वास्तविक सुख अने आनंदमय साचुं जीवन जेणे जीववुं होय तेणे अंतर्मुख थईने आत्मामां शोधवानुं
छे. परमां सुख नथी, रागमां सुख नथी माटे परमां के रागमां शोधे तो सुख मळे तेवुं नथी. आत्मामां सुख
भरपूर छे तेमां अंतर्मुख थईने शोधे तो सुखनो अनुभव थाय. सुख, प्रभुता, सर्वज्ञता वगेरे बधी शक्तिओ
आत्मामां पडी छे तेमां शोधे तो मळे तेम छे.
–माटे शुं करवुं? के संतोना उपदेशथी आत्मानी शक्तिओने ओळखीने प्रतीत करवी, अंतर्मुख थईने तेमां
एकाग्र थवुं; तेमां एकाग्रताथी ज्ञान–आनंद–प्रभुता प्रगटे छे...आत्मा पोते परमात्मा बनी जाय छे.
अंर्तद्रष्टिथी ज्यां चैतन्यस्वभावनुं सेवन कर्युं त्यां चैतन्यभगवान प्रसन्न थईने कहे छे के माग...माग!! तारे
शुं जोईए छे? जे जोईए ते माग! केवळज्ञान अने अतीन्द्रिय आनंद आपवानी ताकात मारामां छे. जे जोईतुं होय ते
आत्मानी शक्तिमां भर्युं ज छे. माटे आत्मानी शक्तिनो विश्वास करीने जे जोईए ते तेनी पासेथी मांग...आत्मामां
एकाग्र था...बहार न शोध...सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीना बधाय पद आपवानी ताकात आ चैतन्यराजा
पासे छे माटे ते चैतन्यराजानुं सेवन करीने तेने ज प्रसन्न कर...बीजा पासे भीख न मांग, बहार फांफा न मार..
अंर्त–अवलोकन कर.
आत्मा क्यां छे? ज्यां आत्मा छे त्यां ज गोत तो मळे. आत्मा पोताथी बहार क्यांय नथी, माटे बहार क्यांय
शोध्ये आत्माना गुणो मळे तेम नथी. आत्माना गुणो आत्माथी बहार नथी, आत्मामां ज छे. भाई! तारी प्रभुता
तारामां छे...बहार न शोध...तारी प्रभुता माटे बाह्य सामग्रीने शोधवानी व्यग्रता न कर, केम के तारी प्रभुता
बाह्यसामग्रीमांथी आवे तेम नथी. बाह्य सामग्रीथी निरपेक्षपणे पोते एकलो ज छ कारक रूप (कर्ता–कर्म–करण वगेरे)
थईने केवळज्ञान अने अतीन्द्रिय आनंदरूपे परिणमी जाय एवो स्वयंभू भगवान आ आत्मा छे. आत्माने ज ‘प्रभु’
कह्यो छे, आत्माने ज ‘भगवान’ कह्यो छे. अहो! पोतानी प्रभुताने छोडीने परने कोण शोधे? आवो स्पष्ट स्वभाव
होवा छतां पामर जीवो पोतानी प्रभुताने परमां शोधे छे. तेने आचार्य भगवान समजावे छे के अरे जीव! तारी
प्रभुता तारामां ज भरी छे...अंर्तअवलोकन करीने तेने शोध. अंतर्मुख थईने तारी प्रभुताने धारण कर, ने
पामरबुद्धि छोड.
अहो! पोतानी प्रभुताने भूलेला पामर जीवो निमित्त पासे ने राग पासे जईने पोतानी प्रभुतानी भीख मांगे
छे, ने भीखारीपणे चोरासी लाख योनीना अव–