Atmadharma magazine - Ank 171
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १७१
ज.
आत्मा ज्ञानादि अनंत गुणोनी प्रभुतावाळो छे; अहीं विधविध शक्ति द्वारा तेनी प्रभुता बतावे छे. जो आ
शक्तिओ द्वारा आत्मानुं स्वरूप यथार्थ समजे तो परथी नीराळुं आखुं परिपूर्ण स्वरूप प्रतीतमां आवी जाय. आत्मानी
जुदी जुदी शक्तिओनुं जे वर्णन कर्युं छे ते दरेक शक्तिना वर्णनमां विविधता छे. आत्मानी अनंत शक्तिओ परस्पर
विलक्षण एटले के भिन्नभिन्न लक्षणवाळी छे; एटले बधी शक्तिओमां एकने एक वात नथी पण नवी नवी वात छे.
जेने आत्मानी विशाळता तरफ लक्ष न होय ने ज्ञाननो रस न होय तेने नवा नवा पडखांथी समजवामां कंटाळो आवे
छे, पण जो अनेक पडखांथी समजे तो ज्ञाननी निर्मळता ने द्रढता वधती जाय, ने अंदर चैतन्य प्रत्ये रस तथा उल्लास
आवे; तथा पोताने ख्याल आवे के मारी पर्यायमां नवा नवा भावो प्रगटता जाय छे ने सूक्ष्मता वधती जाय छे.
अंतरमां जेम जेम ऊंडो ऊतरे तेम तेम सूक्ष्म रहस्य समजाय, अने जेम जेम समजाय तेम तेम रस वधतो जाय, ने
रस वधतां वधतां आत्मानुं कार्य सिद्ध थाय, माटे अंतरमां आ वातनी अपूर्वता लावीने समजवा माटे अपूर्व प्रयत्न
करवा जेवो छे.
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी अनेक शक्तिओमांथी अत्यारे ३९मी भावशक्तिनुं वर्णन चाले छे. कर्ता–
कर्म आदि कारको अनुसार थती क्रियाथी रहित शुद्ध भावरूप थाय एवी आत्मानी भावशक्ति छे. राग–द्वेषने
अनुसरीने आत्मा शुद्ध भावरूप थाय–एवो तेनो स्वभाव नथी. आत्मानो जे शुद्धभाव थयो तेनो राग कर्ता नथी,
राग कर्म नथी, राग करण नथी, राग संप्रदान नथी, राग अपादान नथी, के राग अधिकरण नथी, ए रीते कारको
अनुसार थती क्रियाथी ते रहित छे. तेमज आत्मा पोते पण स्वभावथी रागनो कर्ता नथी, रागनुं कर्म नथी, करण
नथी, संप्रदान नथी, अपादान नथी, तेमज अधिकरण पण नथी. तेमज रागने अने स्वभावने स्व–स्वामीत्वरूप संबंध
पण नथी. राग करे ने तेना फळने भोगवे–एवुं आत्माना स्वभावमां छे ज नहि. आत्मानो स्वभाव तो ज्ञान–
आनंदमय छे, आनंदनो भोगवटो करे एवो तेनो स्वभाव छे. परना के विकारना कारकोने अनुसरे एवो तेनो
स्वभाव नथी.
‘शुभ राग के शरीरादिनी क्रिया ते कोई रीते आत्माना धर्मनां कारण छे?–कोई रीते तेनो आधार
छे?’–तो कहे छे के ना; ते रागादिनी क्रियाने अनुसार न थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे. पर्यायमां एक समय
पूरती विकारनी योग्यता होय तेने आत्मानी त्रिकाळी शक्ति न कहेवाय. त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिए तो
आत्मामां विकाररूप थवानी लायकात पण नथी, एम समजाववुं छे. आत्मानी कोई शक्तिना स्वभावमां
रागादिनुं कर्ता–कर्म–करण–संप्रदान–अपादान के अधिकरणपणुं नथी; अने ते त्रिकाळी स्वभावने अनुसरीने जे
निर्मळ भाव थयो ते भाव पण रागादि कारकोने अनुसरतो नथी. ए रीते कारको अनुसार थती रागादि क्रियाथी
रहित परिणमवानो आत्मानो स्वभाव छे.
प्रश्नः– राग–द्वेष अने अज्ञानभावरूपे पण आत्मा परिणमे छे तो खरो?
उत्तरः– एक समय पूरती अवस्थाना विकारने पोताना कार्य तरीके अज्ञानी ज स्वीकारे छे, अने तेनुं फळ
संसार छे. ते आत्मानो स्वभाव नथी तो तेने आत्मा केम कहेवाय? आत्मानी कोई शक्ति एवी नथी के पर
साथे कारकोनो संबंध राखे! परने अनुसरतां विकार थाय छे, ते आत्मानो स्वभाव नथी, माटे तेने आत्मा
कहेता नथी. समय समय करतां अनंतकाळ विकार परिणमनमां वीत्यो, छतां बे समयनो विकार आत्मामां भेगो
नथी थयो, तेमज एक समय पूरतो जे विकार छे ते पण आत्माना स्वभाव रूप थई गयो नथी, माटे स्वभाव
द्रष्टिमां रागने आत्मा