इन्द्रियविषयोमां गृद्धता होती नथी, पुण्यना ठाठ होय तेमां सुखबुद्धि थती नथी, ने प्रतिकूळता होय तेने दुःखनुं
कारण मानता नथी. संयोगथी जुदो हुं तो ज्ञानानंदस्वरूप छुं–एम धर्मी जाणे छे. अल्प हर्ष–शोक थाय पण ते
कोई संयोगने पोताना मानीने हर्ष–शोक थता नथी. अज्ञानी चैतन्यस्वरूपने चूकीने आ जड शरीरने ज पोतानुं
माने छे. आ शरीर तो जड–कलेवर–मडदुं छे, अज्ञानी ते मडदाने ज पोतानुं स्वरूप मानीने अनादिकाळथी
मडदाने साथे लईने फरे छे,–पण ‘आ शरीर तो जड मडदुं छे ने हुं चिदानंदस्वरूप जीवतो जीव छुं’–एम भान
करीने जड–मडदानी मूर्छा छोडतो नथी; तेने शरीर वहालुं लागे छे, पण चैतन्य भगवान वहालो लागतो नथी.
ज्ञानीने तो एक पोतानो चैतन्य भगवान ज वहालो छे. ए सिवाय समस्त बाह्य पदार्थोने पोताथी भिन्न जाणे
छे, तेमां क्यांय मूर्छाता नथी.
पुत्रो (लव–अंकुश) आवीने पिताजीने पगे लागीने दीक्षा लेवा चाल्या जाय छे, पण राम तो लक्ष्मणनी प्रीति आडे
कांई बोलता नथी. लक्ष्मणना मडदाने खवराववा–पीवराववा–नवराववानी चेष्टा करे छे.–त्यां बाह्यद्रष्टिवाळाने तो
एम ज शंका थाय के शुं आ ज्ञानी!! पण तेने ज्ञानीनी द्रष्टिनी खबर नथी. खभे लक्ष्मणनुं मडदुं पडयुं छे त्यारे पण
द्रष्टि चिदानंदस्वरूप उपर ज पडी छे, अमे तो चिदानंदस्वरूप आत्मा छीए. आ शरीर पण अमे नथी तो पछी बीजानी
शी वात!! अने आ राग पण अमारुं वास्तविक स्वरूप नथी. अमे तो अनंत ज्ञानआनंदनी शक्तिस्वरूप ज छीए.–
आवुं अंर्तभान ज्ञानीने निरंतर वर्ते छे.
तें क्यांय मारी जानकीने जोई!–एम पहाडने पूछे छे, पण पर्वत कांई बोले?–छतां आ प्रसंगेय अंतरमां देहथी
पार ने शोकथी पार चिदानंदस्वरूपनुं भान तेमने वर्ते छे. अज्ञानी तो पोताना शरीरने आत्मा माने छे, ने
बीजामां पण शरीरने ज आत्मा तरीके देखे छे, पण शरीरथी भिन्न चैतन्यस्वरूप आत्माने ते जाणतो नथी.
आत्मा तो सदा ज्ञान– आनंदस्वरूप ज छे–एम पोताना अंर्तवेदनथी ज जणाय छे. आत्मा पोते अंतर ज्ञान–
आनंदस्वरूप परिणम्यो ते पछी अचलपणे स्थिर रहे छे, तेमांथी कदी च्यूत थतो नथी. माटे ज्ञान–आनंदस्वरूप
आत्मा जाणवा जेवो छे. .. ८–९..
एम अज्ञानी माने छे; अने बीजामां पण बीजाना शरीरने ज आत्मा माने छे तथा ते आत्माथी अधिष्ठित एवा
अचेतन शरीरनी चेष्टाओने आत्मानी ज चेष्टा माने छे, पण देह तो चेतनरहित छे ने आत्मा चेतन सहित छे–तेने
अज्ञानी जाणतो नथी;–ए वात हवे दसमी गाथामां कहे छे–
परात्माधिष्ठितं मूढः परत्वेनाध्यवस्यति।।१०।।
अचेतन शरीरने देखीने तेने पण ते बीजाना आत्मा ज माने छे. ए रीते मूढ जीव पोतामां ने परमां अचेतन शरीरने
ज आत्मा माने छे; देहथी भिन्न आत्माने ते देखतो नथी.
ज्ञानी तो जाणे छे के हुं चैतन्य–