Atmadharma magazine - Ank 171
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः६ः आत्मधर्मः २४८४
नगरजनोः– अरे, आ नदी कई रीते पार उतराशे!! अहा, राम–लक्ष्मणना तो पुण्ययोगे नदीनां नीर ओछां थई
गया, ने नदीए तेमने मार्ग आपी दीधो..स्वामी! अमने पण पार उतारो..अमे आपनी साथे ज
आवशुं...प्रभो! अमने साथे लई जाओ..
रामः– प्रजाजनो! हवे तमे सौ त्यां ज रोकाई जाओ..अमारो अने तमारो अहीं सुधीनो ज संगाथ हतो..माटे हवे
तमे नगरमां पाछा जाओ. (एम कहीने राम–लक्ष्मण चाल्या जाय छे.)
नगरजनोः– (विलाप करतां कहे छेः) प्रभो! प्रभो! अमने साथे लई जाव..आप तो जैनधर्मना महान उपासक
छो..आपनां महान पुण्यप्रतापे आप तो मोटी नदीने क्षणभरमां पार ऊतरी गया..हे नाथ! अमने पण
पार उतारो, अमने साथे लई जाओ..
(संवादमां अहीं एक स्तवन गवायुं हतुंः “आश धरीने अमे आवीया रे, अमने उतारो भवोदधि पार
रे..” आ आखुं स्तवन संवादना चालु प्रकरणमां लागुं पडतुं नहि होवाथी अहीं आप्युं नथी. आखुं
स्तवन वांचवानी जेमने इच्छा होय तेमणे स्तवनमंजरी पृ. ७९मांथी वांची लेवुं.)
नगरजनोः– अरे..रामचंद्रजी वगर नगरीमां पाछा जईने शुं करीए? अरेरे, संसारनी स्थिति केवी क्षणभंगुर छे?
आवा क्षणभंगुर संसारथी हवे बस थाव..बस थाव! बाजुमां ज महामुनिराज श्री सत्यकेतु आचार्य
बिराजे छे तेमनी पासे जईने हवे तो अमे पण जिनदीक्षा धारण करशुं.
(श्री रामचंद्रजीना देशांतरगमनना आ महावैराग्य प्रसंगे, संसारथी विरक्त थईने अनेक राजाओ ने
प्रजाजनोए जिनदीक्षा धारण करी...अनेक जीवो सम्यग्दर्शन पाम्या..ने अनेक जीवो संसारनी क्षणभंगुरता
जाणीने धर्मसन्मुख थया. पद्मपुराणमां तेनुं अद्भुत वर्णन आवे छे.)
भरतः– अहा, पिताजी वैराग्य पामीने मुनि थया..वडील बंधु रामचंद्रजी विदेश पधार्या..अरे, आ राज्यवैभव
अने आ रत्नजडित सुवर्ण सिंहासन मने रुचता नथी; माथानो दैवीमुकुट के नीलमणिना झबकता
हार मने प्रिय लागता नथी...पिता अने बंधुनो एक साथे वियोग थयो..हा! संयोगो ते अंते तो
संयोगो ज छे,–तेओ कदी चैतन्यमां प्रवेशता नथी, तेओ चैतन्यथी बाह्य ज रहे छे...ने तेनो काळ
पूरो थतां तेनो वियोग थई जाय छे. अरे, केवी विचित्रता छे–एक बाजु तो आ महान साम्राज्यनो
संयोग थाय छे, बीजी बाजु त्यारे ज परम पुरुष श्रीरामचंद्र जेवा बंधुनो वियोग थाय छे! एवी ज
पदार्थोना परिणमननी कोई विचित्र व्यवस्था छे. अहा! जगतनो क्रम केवो व्यवस्थित छे! ! बस, जे
थाय छे ते व्यवस्थित क्रम अनुसार ज थाय छे, जाणनारने तेमां हर्ष शो! शोक शो? अहा.. मारो
आत्मा तो अंदरथी चारित्रना पोकार करे छे..धन्य ते चारित्रदशा..धन्य ते मुनिदशा..ए दशा
अंगीकार करवानो धन्य अवसर क्यारे आवशे?
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे!
क्यारे थईशुं बाह्यांतर निर्ग्रंथ जो..
सर्व संबंधनुं बंधन तीक्षण छेदीने,
विचरशुं कव महत्पुरुषने पंथ जो..
– अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे!
– ए चारित्र दशा सिवाय जीवनी मुक्ति नथी...चारित्र विना परमशांति नथी...अहा..आ
कलेशमय संसारमां एक निर्ग्रंथ मुनिवरो ज महासुखी छे.. मारे माटे पण ए ज एक मार्ग निश्चित छे, ए
ज मारो निर्णय छे. हे भगवान! हुं प्रतिज्ञा करुं छुं के फरीने श्री रामचंद्रजीना दर्शन थतां ज हुं पवित्र
मुनिव्रत धारण करीश..सर्व परिग्रह छोडी, जिनदीक्षा धारण करीने वनवासी–वीतरागी संतोना पंथे
विचरीश ने मारुं आत्मकल्याण साधीश..
* * *
(संवाद अहीं पूरो थयो हतो..ने छेवटे जैन झंडानुं समूहगीत गवायुं हतुं–)