Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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माहः २४८४ः ११ः
उत्तरः– अज्ञानीने राग होय अने ज्ञानीने पण राग होय, परंतु अज्ञानी तो रागथी जुदा ज्ञानस्वभावने
जाणतो ज नथी, रागने ज आत्मा माने छे, एटले तेनुं बधुं जोर रागमां ज वळेलुं छे, तेथी तेनो राग
अनंतानुबंधी छे. अने ज्ञानीने रागथी भिन्न ज्ञानस्वभावनुं भान छे, तेने रागमां एकता थती नथी,
तेनुं जोर ज्ञानस्वभाव तरफ वळी गयुं छे तेथी तेनो राग घणो अल्प छे. अने जे अल्प राग छे तेने
पण ते पोताना स्वभावथी जुदापणे जाणे छे. आ रीते ज्ञानीने रागथी भिन्नपणुं छे ने अज्ञानीने राग
साथे एकपणुं छे. ज्ञानीने ज्ञानमां एकतापणे रागनी उत्पत्ति थती ज नथी.
(८२) प्रश्नः– समकिती चक्रवर्ती छ खंडना राजने अने छन्नुं हजार राणीओने भोगवे छतां ते ज्ञानी; अने मिथ्याद्रष्टि
जीव त्यागी द्रव्यलिंगी साधु थईने ब्रह्मचर्य पाळे–छतां ते अज्ञानी;–तेनुं शुं कारण?
उत्तरः– भाई, ज्ञानी–अज्ञानीपणानुं माप बहारना संयोग उपरथी नथी, एकला राग उपर पण तेनुं माप नथी,
पण ते वखते तेनी बुद्धि क्यां वर्ते छे?–रागमां एकतापणे वर्ते छे के आत्मस्वभावमां एकतापणे वर्ते
छे? ते उपरथी ज्ञानी–अज्ञानीपणानुं माप छे. मिथ्याद्रष्टि जीव मंदराग करीने ब्रह्मचर्यादि पाळतो होवा
छतां ‘आ रागथी मने लाभ थशे–’ एवी राग साथेनी एकत्वबुद्धि ऊंडे ऊंडे तेने पडी छे तेथी ते
अज्ञानी ज छे; जेने राग साथे एकताबुद्धि छे–रागमां सुखबुद्धि छे, तेणे रागना फळने छोडयुं छे–एम
पण खरेखर कहेवातुं नथी, एटले जेने रागनी रुचि छे तेने रागना फळरूप भोगनी रुचि पण पडी ज
छे,–पछी भले ते ब्रह्मचर्यादि पाळतो होय. अने समकिती धर्मात्माने भोग वगेरे अशुभ राग होवा
छतां ते वखते पण रागथी भिन्न चिदानंद स्वभावनुं ज्ञान वर्ते छे, विषयभोगमां स्वप्ने य सुख
मानता नथी, ने राग साथे एकता करता नथी, ज्ञान साथे ज एकतापणे परिणमे छे तेथी ते ज्ञान ज छे.
रागनी ने विषयोनी रुचि तेने छूटी गई छे. अरे! ज्ञानी–अज्ञानीनी ओळखाण पण जगतना जीवोने
दुर्लभ छे.
संयोग मळवो ते तो पुण्यनो ठाठ छे. तीर्थंकर भगवंतोने राग न होवा छतां पुण्यना फळथी
समवसरणना अचिंत्य वैभवनो ठाठ रचाई जाय छे. संयोगना ठाठ उपरथी रागनुं माप नथी. कोई जीव
एक स्त्री परणे माटे तेने राग थोडो ज होय ने समकिती चक्रवर्ती राजा ९६००० राणीओ परणे माटे
तेने राग घणो होय–एवो कोई नियम नथी. नहितर तो जेना शरीरमां झाझा परमाणु होय तेवा जाडा
माणसोने वधारे राग ने जेनुं शरीर पातळुं–नानुं थोडा परमाणुवाळुं होय तेने थोडो राग–एम ठरे. पण
एम नथी. ए ज रीते लक्ष्मी वगेरेमां पण समजवुं.
आ रीते संयोग उपरथी रागनुं माप नथी–ए एक सिद्धांत थयो. तेनाथी सूक्ष्म बीजो सिद्धांत ए
छे के राग उपरथी ज्ञानी–अज्ञानीनुं माप नथी. जेने राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान वर्ते छे ते ज्ञानी ज
छे. तथा जेने राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान नथी पण एकताबुद्धि छे ते अज्ञानी ज छे. आ रीते
रुचिनुं वलण कई तरफ छे ते उपरथी ज ज्ञानी–अज्ञानीनुं माप थाय छे. पोताना वेदनमां जेने
ज्ञान अने रागनी भिन्नता नथी भासती ते बीजा जीवनो यथार्थ निर्णय करी शकशे नहि; केम के
राग अने ज्ञानना भिन्न भिन्न स्वरूपनी तेने खबर नथी, तेथी सामो जीव राग अने ज्ञानने
एकपणे अनुभवे छे के भिन्नपणे–तेनो निर्णय ते कई रीते करी शके? आ रीते पोताना अंतरमां
राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान करे त्यारे ज मार्गनी शरूआत थाय छे ने त्यारे ज ज्ञानीनी खरी
ओळखाण थाय छे.
हुं एक छुं, शुद्ध छुं, परद्रव्य प्रत्ये ममता रहित छुं ने मारा ज्ञानदर्शनस्वभावथी परिपूर्ण छुं–एम धर्मी
पोताना आत्माने जाणे छे.
‘छुं एक शुद्ध ममत्वहीन हुं ज्ञानदर्शनपूर्ण छुं’
ए प्रमाणे पोताना ज्ञानस्वभावने क्रोधादिथी भिन्न अनुभवतो थको ज्ञानी धर्मात्मा क्रोधादिनी
पक्कडबुद्धि छोडी दे छे; एटले आस्रवोथी पाछो वळीने ज्ञानस्वभावमां एकता करे छे; ज्ञानसमुद्रमां लीन
थईने आस्रवोने छोडी दे छे.