माहः २४८४ः १३ः
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
(४०)
क्रियाशक्ति
स्वभावना अवलंबने स्वयं छ कारकरूप थईने पोताना
सम्यग्दर्शनादि निर्मळभावोने करे एवी क्रियाशक्ति आत्मामां
छे; पोताना निर्मळभावरूप क्रिया करवा माटे तेने कोई बहारना
कारकोनो आश्रय लेवो पडतो नथी. अहो! परमात्मा थवानी
ताकात स्वयं पोतामां ज भरी होवा छतां जीवो पोतानी
प्रभुताना निधानने देखता नथी ने बहारमां भटके छे, तेथी
संसारमां रखडे छे. अहीं आचार्यदेव आत्मानी शक्तिओ
वर्णवीने तेनी प्रभुता देखाडे छेः देखो रे देखो! चैतन्यनां
निधान देखो! अरे जीवो! तमारा अंतरनां एवा चैतन्य
निधान देखाडुं के जेने जोतां ज अनादिकाळनी दीनता टळी जाय,
ने आत्मामां अपूर्व आह्लाद जागे..जेनी सन्मुख नजर करतां
ज प्रदेशे प्रदेशे रोमांच ऊछळी जाय के ‘अहो! आवी मारी
प्रभुता!!’ एवी अचिंत्य प्रभुता आत्मामां भरी छे.
ज्ञानस्वरूप आत्मानी शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे. दरेक आत्मामां आ शक्तिओ त्रिकाळ स्वयंसिद्ध छे, आ
शक्तिओ कांई नवी करवी पडती नथी; पण तेनी ओळखाण करीने पर्यायमां ते प्रगट करवानी छे. पोताना आत्मानी
अनंतशक्तिओने ओळखतां पर्यायमां तेनुं व्यक्त वेदन थाय छे तेनुं नाम धर्म छे.
‘कारको अनुसार थवापणारूप जे भाव ते–मयी क्रियाशक्ति आत्मामां छे.’ ३९मी शक्तिमां भेदरूप कारको
अनुसार थती विकारी क्रियाथी रहितपणुं बताव्युं ने आ शक्तिमां अभेदरूप शुद्ध कारको