Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १७२
अनुसार थती निर्मळक्रिया सहितपणुं बतावे छे, पोताना स्वभावने ज अनुसरीने निर्मळ भावरूपे थाय एवी
क्रियाशक्ति आत्मामां छे, पण आत्मा परनी क्रिया करे के परने अनुसरीने क्रिया करे एवी तेनी क्रियाशक्ति नथी.
पोताना स्वभावनुं ज अवलंबन राखीने एक अवस्थामांथी बीजी निर्मळ अवस्थारूपे परिणमे–एवी क्रियाशक्तिवाळो
आत्मा छे. पण आत्मा पलटीने परभावरूप थई जाय एवी तेनी शक्ति नथी.
प्रश्नः– पर्यायमां विकारी भावरूपे पण आत्मा परिणमे छे तो खरो?
उत्तरः– आ आत्मानी शक्तिनुं वर्णन छे; शक्ति एटले आत्मानो वैभव; तेमां विकारनी वात केम आवे?
विकार तो दीनता छे, आत्माना वैभवमां ते दीनतानो अभाव छे. शक्ति सामे जोनारने पोतानी परिपूर्णता ज भासे
छे, ने परिपूर्णतारूप आत्मवैभवना आधारे पर्यायमांथी विकाररूपी दीनता छूटी जाय छे. पर्यायमां विकार होवा छतां
ते शक्तिना आधारे थयेलो नथी, तेमज आत्मानी शक्तिओमां एवी कोई पण शक्ति नथी के ते विकारनो कर्ता थाय.
शुद्धभावना छ कारकरूप थईने स्वयं परिणमे एवी आत्मानी क्रियाशक्ति छे. आत्मा स्वयमेव छ कारकरूप थईने
केवळज्ञानादिरूपे परिणमवाना स्वभाववाळो छे–ए बाबतमां पूर्वे (३९मी शक्तिना वर्णनमां, प्रवचनसार वगेरेनो
आधार आपीने) घणुं कहेवाई गयुं छे.
पहेलां तो, आत्मानो स्वभाव शुं छे तेनुं सत्समागमे वारंवार श्रवण करीने–तेनो उल्लास लावीने, तेनुं
ग्रहण अने धारण करीने, द्रढ निर्णय करवो जोईए. यथार्थ निर्णय कर्या वगर प्रयत्ननुं जोर अंतरमां वळे नहि.
आत्माना स्वभावनो निर्णय करीने तेमां अंतर्मुख थतां सम्यग्दर्शनादि निर्मळ भावो प्रगटे छे. आवा निर्मळ
भावोने स्वयं छ कारकरूप थईने करे एवी आत्मानी क्रियाशक्ति छे. आत्माने पोताना निर्मळ भावरूप क्रिया
करवा माटे कोई बहारना कारकोनो आश्रय लेवो पडतो नथी, तेमज आत्मा कारक थईने जडनी के रागनी क्रिया
करे एवो पण तेनो स्वभाव नथी. पोताना ज कारकोने अनुसरीने पोताना वीतरागभावरूप परिणमवानी ज
क्रिया करे एवो आत्मानो स्वभाव छे. जुओ, आमां एकली स्वभावद्रष्टि ज थाय छे, ने बहारमां कोईना आश्रये
लाभ थाय–व्यवहारना आश्रये लाभ थाय–ए द्रष्टिनो भूक्को ऊडी जाय छे. पोताना स्वभावना आश्रये ज
पोतानी परमात्मदशा प्रगटे छे, आत्माने पोतानी परमात्मदशा प्रगट करवा माटे कोई बीजानो आश्रय लेवो पडे
के कोई बीजो तेने मदद करे–एम छे ज नहि.
अत्यार सुधीमां अनंता जीवो परमात्मा थई गया; जेओ भगवान परमात्मा थया तेओ बधाय पोताना
स्वभावना कारकोने अनुसरीने परिणमीने ज परमात्मा थया छे; आत्मा सिवाय बाह्य पदार्थोने कर्ता बनाव्या विना
ज तेओ परमात्मा थया छे. बाह्य पदार्थोने साधन बनाव्या विना ज तेओ परमात्मा थया छे, बाह्य पदार्थोने संप्रदान
के अपादान बनाव्या विना ज तेओ परमात्मा थया छे, बाह्य पदार्थोनो आधार लीधा विना ज तेओ परमात्मा थया
छे, ने बाह्य पदार्थो साथेना संबंध विना ज तेओ परमात्मा थया छे. अल्पज्ञतानो नाश करीने परमात्म दशारूपे
परिणमवारूप जे क्रिया थई तेना स्वयं पोते ज कर्ता छे, पोतानो आत्मा ज तेनुं साधन छे, पोतानो आत्मा ज तेनुं
संप्रदान ने अपादान छे, पोतानो आत्मा ज ते परमात्मदशानो आधार छे, ने पोताना स्वभाव साथे ज तेनो संबंध
छे. आ रीते बाह्यना छ कारको विना, पोताना ज कारको अनुसार शुद्धभावरूपे स्वतः परिणमवानी क्रिया करे एवो
आत्मानो स्वभाव छे.
अहो! परमात्मा थवानी ताकात स्वतः पोतामां ज भरी होवा छतां जीवो पोतानी प्रभुताना निधानने
देखता नथी, ने बहारमां भटके छे, तेथी संसारमां रखडे छे. अहीं आचार्यदेव आत्मानी शक्तिओ वर्णवीने तेनी
प्रभुता देखाडे छे. देखो रे देखो! चैतन्यनां निधान देखो! अरे जीवो! तमारा अंतरना एवा चैतन्य निधान
देखाडुं के जेने जोतां ज अनादिकाळनी दीनता टळी जाय ने आत्मामां अपूर्व आह्लाद जागे..जेनी सन्मुख नजर
करतां ज प्रदेशे प्रदेशे रोमांच उछळी जाय के ‘अहो! आवी मारी प्रभुता!? एवी अचिंत्य प्रभुता आत्मामां
भरी छे.
भाई! तारा आत्मामां एवी प्रभुता छे के जगतमां बीजा कोईनी पण सहाय विना स्वतः एकलो