अंतरमां नजर करीने तारी प्रभुताने देख! नजर करतां ज न्याल करी द्ये एवो तारो स्वभाव छे. तुं तारा स्वभावनी
प्रभुतानो विश्वास राखीने तेना आधारे शुद्धभावरूप परिणमवानी क्रिया कर, अने बीजो कोई साधन थईने तने
परिणमावी देशे एवी व्यर्थ आशा छोडी दे. अरे, पोतानी ज पोताने खबर न होय ते सुखी केम थाय? पोताने ज
भूलीने बहारमां फांफां मारे तेने सुख क्यांथी मळे? माटे अंतरमां मारो आत्मा शुं चीज छे के जेनामां मारुं सुख भर्युं
छे!–एम अंर्तशोध करीने आत्मानो पत्तो मेळववो जोईए. आत्मानी सत्ता सिवाय बीजे तो क्यांय सुखनुं अस्तित्व
छे ज नहि.
अद्भुत वर्णन कर्युं छे. अंतरना अनुभवनी आ चीज छे. आत्माना हित माटे वीतरागी संतोए आ जे मार्ग
बताव्यो छे ते ज परम सत्य छे; आ सिवाय बीजुं माने तो ते जीव वीतरागी संतोने के तेमना कहेलां वीतरागी
शास्त्रोने मानतो नथी, भगवानने के भगवानना मार्गने ते जाणतो नथी, आत्माना वीतरागी ज्ञानस्वभावनी
तेने खबर नथी. एकेक आत्मामां रहेली अनंतशक्तिओनुं आवुं वर्णन सर्वज्ञना वीतरागशासन सिवाय बीजे
क्यां छे? अनेकान्त ते सर्वज्ञभगवानना शासननुं अमोघ लांछन छे. ते अनेकान्त वडे ज आत्मानुं खरूं स्वरूप
जणाय छे. एकेक शक्तिना वर्णनमां घणुं रहस्य आवी जाय छे. एक पण शक्तिने यथार्थ ओळखे तो तेमां
शक्तिमान एवुं द्रव्य मान्युं, द्रव्यना गुणो मान्या, तेनी पर्याय मानी, विकार मान्यो, परिणमन मान्युं, विकार
रहित थवानो स्वभाव छे एम पण मान्युं, दरेक आत्मा जुदा छे एम मान्युं, परवस्तुओ पण छे, ते आत्माथी
भिन्न छे, तेनो आत्मा अकर्ता छे,–ए बधुं रहस्य आमां समाई जाय छे. अनेकान्त वगर एक पण वस्तुनुं
साचुं ज्ञान थतुं नथी. अनेकान्तशासन अर्थात् सर्वज्ञनुं शासन–जैनशासन–वस्तुस्वभावनुं शासन,–ते सिवाय
बीजे क्यांय आ वात नथी. कुंदकुंदाचार्यदेवे समयसारनी ४१प गाथामां तो आत्मस्वभावनो वैभव भरी दीधो
छे, ने अमृतचंद्राचार्यदेवे तेनुं दोहन करीने तेनां रहस्यो खोल्यां छे, तेओ पोते कुंदकुंदप्रभुना गणधर समान छे;
कुंदकुंदाचार्यदेवे तीर्थंकर जेवां काम कर्यां छे, ने अमृतचंद्राचार्यदेवे गणधर जेवां काम कर्यां छे. अहो! आ काळे ते
संतोनो महा उपकार छे. संतोए दांडी पीटीने वस्तुस्वरूप जगतने जाहेर कर्युं छे.
अभेद छे. अभेद स्वभाव उपर द्रष्टि जतां आत्मा पोते निर्मळ पर्यायरूपे परिणमी जाय छे, तेमां छए कारको
पोताना ज छे; कर्ता पोते, कर्म पोते, साधन पोते, संप्रदान पोते, अपादान पोते अने अधिकरण पण पोते ज छे;
माटे हे जीव! तारा धर्मने माटे