Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १६ः आत्मधर्मः १७२
तारामां ज तुं जो..बहारमां कारणोने न शोध, केमके तारा धर्मना कारको बहारमां नथी. पोताना ज छ कारकोने
अनुसरीने परमात्मदशारूपे परिणमी जाय एवी प्रभुता तारामां ज भरी छे, तारी प्रभुताने क्यांय बहार न
शोध.. तारी प्रभुता माटे बाह्य सामग्रीने (–शरीरने. निमित्तने के रागादिने) शोधवानी व्यग्रता न कर. बाह्य
सामग्री विना पोते एकलो पोताना छ कारकोरूप थईने केवळज्ञानरूपे परिणमी जाय एवो स्वयंभू–भगवान
पोते ज छे. अहो! आवी पोतानी प्रभुताने छोडीने परने कोण शोधे? बहारमां साधनोने माटे कोण फांफा
मारे!!
ध्रुवउपादानरूप अने क्षणिकउपादानरूप स्वभाववाळो आत्मा पोते ज छे. ध्रुवउपादान त्रिकाळशुद्ध छे, तेना
आधारे क्षणिकउपादान (–पर्याय) शुद्ध थई जाय छे; ते वखते बीजा योग्य निमित्तो भले हो..पण तेओ खरेखर कारक
नथी, ते निमित्तोने अनुसरीने आत्मा शुद्धतारूपे नथी परिणमतो पण पोताना स्वभावने अनुसरीने ज ते शुद्धतारूपे
परिणमे छे, एवो भगवान आत्मानो स्वभाव छे.
‘भगवान’ के ‘प्रभु’ एवा शब्द आवे त्यां जीवनी नजर बहारमां जाय छे. पण भाई रे! जेओ भगवान
थई गया तेमनी आ वात नथी,–तेमने कांई आ वात नथी समजावता, आ तो तारा आत्मानी वात छे. आ आत्माने
ज अमे ‘भगवान’ कहीए छीए ने आत्माने ज ‘प्रभु’ कहीए छीए. जेओ भगवान अने प्रभु थया तेओ क्यांथी
थया? आत्मामां ताकात छे तेमांथी ज थया छे, अने आ आत्मामां पण एवी ताकात छे; अंतद्रष्टिना बळे ते ताकातने
खोलीने आ आत्मा पण भगवान अने प्रभु थई शके छे. माटे पहेलां तारा स्वभावनी आवी ताकातनो विश्वास कर
अने तेनो महिमा लाव. पछी ते स्वद्रव्यना आश्रये एकाग्र थतां, परना कारकोनी अपेक्षा वगर पोताना ज कारकोथी
तारो आत्मा प्रभुतारूपे परिणमी जशे. तुं पोते भगवान थई जईश. आत्मा पोतानी प्रभुता बीजाने आपतो नथी
अने बीजानी प्रभुताने पोतामां स्वीकारतो नथी तेमज बीजा पासेथी पोतानी प्रभुता लेतो नथी. हे जीव! आवी तारी
प्रभुताने तुं धारण कर,–‘प्रभुता प्रभु! तारी तो खरी’ ...शक्तिरूपे तो बधा आत्मामां प्रभुता छे पण तेनुं सम्यक्
भान करीने पर्यायमां प्रभुता व्यक्त करे तेनी बलिहारी छे. प्रभुताना भान वगर तो ऊंधुंं (–पामरता –दीनतारूप)
परिणमन छे.
‘आवो राग होय तो मने लाभ थाय अने आवा निमित्तो होय तो मने लाभ थाय’–एम राग पासे ने
निमित्त पासे जईने जे पोतानी प्रभुता मांगे छे ते तो दीन–भीखारी छे, तेने प्रभुता क्यांथी मळशे! ‘दीन
भयो प्रभु पद जपै मुगति कहांसे होय?’ प्रभुतानी ताकात तो पोतामां भरी छे तेने ओळखीने तेने भजे–
सेवे तो प्रभुता मळे. अरे जीव! तारा स्वभावमां प्रभुतानुं कल्पवृक्ष पडयुं छे, तेनी छायामां जईने प्रभुता मांग
तो तने तारी प्रभुता मळ्‌या वगर रहे नहि. जेम हाथमां कोलसो के पथरो लईने चिंतवे तो कांई मळे नहि, पण
हाथमां चिंतामणी लईने जे चिंतवे तो बाह्य वैभव मळे; तेम शरीरने के रागरूपी कोलसाने पकडीने चिंतवे तो
तेनी पासेथी कांई आत्मानी प्रभुता न मळे. पण आत्मानो स्वभाव पोते चैतन्य–चिंतामणि छे, ए
चिंतामणिने चिंतवे तो प्रभुता मळे..अर्थात् हुं ज प्रभुताथी भरेलो चैतन्य–चिंतामणि छुं–एम पोताना
आत्मानुं चिंतन करतां आत्मा पोते प्रभु थई जाय छे. आ सिवाय पोतानी प्रभुता बीजा पासेथी जे मांगे ते तो
दीन थईने चार गतिमां रखडे छे, माटे आचार्यदेव आत्मानी प्रभुता बतावे छे के अरे जीव! तारी प्रभुतानां
निधान तने बतावीए, ते एक वार तो देख! तारा निधानने जो तो खरो! पोताना स्वभावनी प्रभुताने
जोवानुं कुतूहल–होंस–उमंग करे तेने प्रभुता मळ्‌या विना रहे ज नहि. निरपेक्षपणे पोताना वीतरागी छ
कारकोरूपे थईने प्रभुतारूपे परिणमवानी क्रिया करे एवी आत्मानी क्रियाशक्ति छे. आवा निरपेक्ष स्वभावनुं
भान थतां स्व–परप्रकाशक सम्यग्ज्ञान खीली जाय छे, अने यथार्थ निमित्तो केवा होय–एवा निमित्त–नैमित्तिक
संबंधरूप सापेक्षताने पण ते ज्ञान यथार्थरूपे जाणे छे. निरपेक्षताने ओळख्या विना एकली सापेक्षतानुं ज्ञान
साचुं थतुं नथी.
विकारदशामां पण आत्मा पोते ज अशुद्ध छ कारकोरूपे थईने परिणमे छे, कोई बीजो तेने परिणमावनार नथी.
परंतु आ शक्तिओमां तो आत्माना शुद्ध स्वभावनुं वर्णन छे एटले अहीं अशुद्धतानी वात न आवे. ३९मी शक्तिमां
आ संबंधी विशेष