Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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माहः २४८४ः १७ः
खुलासो आवी गयो छे. अहा तो आत्मा पोताना स्वभावनुं स्वसंवेदन करीने शुद्धतारूपे परिणमे–एवी ज वात छे.
प्रश्नः– घणा कहे छे के आत्मा अरूपी छे माटे ते स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष न थई शके?
उत्तरः– ए वात खोटी छे. आत्मा अरूपी होवाथी ते इन्द्रियो द्वारा प्रत्यक्ष न थई शके ए खरूं, परंतु
अतीन्द्रियज्ञानथी तो आत्मा स्वसंवेदन प्रत्यक्ष थाय छे. मति–श्रुतज्ञान पण ज्यारे अंतरमां वळे छे त्यारे तेने
अतीन्द्रियपणुं छे, ने ते मति–श्रुतज्ञानमां पण आत्मा स्वसंवेदन प्रत्यक्ष थाय छे, अने पोताने तेनी खबर पडे छे. जो
पोताने पोताना स्वसंवेदननी निःशंक खबर न पडे तो निःशंकता वगर साधक शेनो? अने ते आत्माने साधशे कई
रीते? साधक जीव (चोथा गुणस्थानवाळा अविरत समकिती पण) पोताना ज्ञानने अंतरमां वाळीने स्वसंवेदन
प्रत्यक्षथी आत्माने जाणी शके छे. आम जे नथी मानतो तेणे आत्माने जाण्यो ज नथी. आत्मामां ज ‘स्वयं’
प्रकाशमान विशद–स्पष्ट स्वसंवेदनमयी प्रकाशशक्ति’ छे, एटले आत्मा पोते पोताना ज्ञानथी ज पोतानो स्पष्ट–
प्रत्यक्ष स्वानुभव करे एवो तेनो स्वभाव छे. (–आ प्रकाशशक्तिना विशेष विवेचन माटे जुओ “आत्मधर्म” अंक
१०९)
स्वयं–पोताना ज छ कारको वडे, इन्द्रिय वगेरे कारकोनी सहाय विना, ज्ञातासन्मुख थईने पोते पोतानुं प्रत्यक्ष
–स्पष्ट स्वसंवेदन करे एवो आत्मानो स्वभाव छे, परोक्ष रहेवानो तेनो स्वभाव नथी. प्रत्यक्ष थवानो स्वभाव छे ते
स्वभावना लक्षे स्वसंवेदन प्रत्यक्षतानुं परिणमन थई जाय छे.
स्वभावनुं सम्यक् परिणमन क्यारे थाय?–के ज्यारे तेमां पर्यायनी एकता थाय त्यारे.
ते एकता क्यारे थाय?–के ते स्वभाव उपर ज्यारे नजर पडे त्यारे.
शुद्ध स्वभावमां नजर करे तो तेमां एकता थाय अने स्वभावनी शक्तिओनुं सम्यक् परिणमन थाय. आनुं
नाम धर्म छे, ने आ ज मोक्षनो मार्ग छे.
पोताना स्वभावना कारकोने अनुसरीने शुद्धभावरूप थवानी क्रिया करे एवी आत्मानी शक्ति छे; तेथी
आत्माना बधाय गुणो पण ए ज रीते पोताना स्वभावना कारको अनुसार निर्मळपणे परिणमे एवा स्वभाववाळा
छे; कोई पण गुणनो एवो स्वभाव नथी के पोताना निर्मळ परिणमनने माटे परना कारकोने अनुसरे; तेम ज परने
अनुसरीने विकारपणे के हीनपणे परिणमे ते पण गुणनुं खरूं स्वरूप नथी, ते तो उपाधिभाव छे, स्वभावने ज कारक
बनावीने परिणमतां ते उपाधिभाव छूटी जाय छे ने शुद्धतारूप परिणमन थई जाय छे; ते ज आत्मानी शुद्ध क्रिया छे,
ते ज धर्मक्रिया छे, ते ज क्रियाथी मोक्ष थाय छे.
जुओ आ कर्तानी क्रिया! कर्ता एवो आत्मा पोताना ज छ कारको वडे (अर्थात् पोते ज छ कारकोरूप थईने)
पोतानी क्रिया करे छे, कर्ता पोताथी भिन्न बीजा कोई कारकोवडे पोतानी क्रिया करतो नथी. जेम के–
मिथ्यात्वनो नाश करीने सम्यग्दर्शनरूपे परिणमवानी क्रिया अन्य कारकोने अनुसर्या विना पोते पोताना
स्वभावने अनुसरीने करे छे. सम्यग्दर्शनमां साचा देव–गुरु–शास्त्र वगेरे निमित्तो होवा छतां, ते निमित्तोने
पोताना कारक बनाव्या विना, पोताना ज छ कारकोने अनुसरीने आत्मा सम्यग्दर्शनरूपे परिणमे छे. ए रीते
पोताना कारको वडे ज पोतानी क्रिया करे छे. ए प्रमाणे ज्ञान, चारित्र, आनंद वगेरे बधा गुणोमां निर्मळ
परिणमनरूप क्रिया आत्मा पोते स्वतः छ कारकोरूपे थईने करे छे, आवी क्रियाशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे.
एक आ वात खास समजवा जेवी छे के शुद्धताना ज छ कारकरूपे थवानो आत्मानो स्वभाव छे, पण
अशुद्धताना कारकरूपे थवानो आत्मानो स्वभाव नथी. जे जीव एकली अशुद्धतारूपे ज परिणमे छे तेणे, स्वयं छ
कारकरूप थवाना आत्माना शुद्धस्वभावने जाण्यो नथी तेथी ते एकला परने ज कारक मानीने तेना आश्रये
अशुद्धतारूपे परिणमे छे. जो परथी निरपेक्ष स्वयं छ कारकरूप थवाना आत्माना स्वभावने जाणे तो ते
स्वभावना आश्रये शुद्धतारूप परिणमन थया विना रहे ज नहि; आ रीते शुद्धद्रव्यस्वभावने स्वीकारतां पर्याय
पण तेनी साथे एकता करीने तेना जेवी–शुद्ध–थई जाय छे, एटले त्यां द्रव्यपर्यायनो भेद रहेतो नथी ने
अभेदमां निर्विकल्प आनंदनो अनुभव थाय छे.–आवुं आत्मस्वभावनी समजणनुं फळ छे.