Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १८ः आत्मधर्मः १७२
– परम शांति दातारी –
अध्यात्म भावना
भगवानश्री पूज्य पादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’
उपर परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना
–भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(वीर सं. २४८२ जेठ सुद एकम समाधिशतक गा. ११–१२–१३–१४)
शरीरनी क्रिया माराथी थाय एम जे माने छे ते शरीरने ज आत्मा माने छे, ने आत्माने जड माने छे.
आत्मानुं लक्षण तो ज्ञान छे–एम ते जाणतो नथी.
ज्ञानलक्षणी प्रभु आत्मा छे, ने शरीर तो जड परमाणुथी लक्षित छे. शरीरमां क्षणे क्षणे अनंता परमाणुओ
आवे छे ने जाय छे, पण तेथी कांई आत्मामां एकेय प्रदेश घटतो के वधतो नथी. पुद्गलना पिंडथी चैतन्यपिंड तद्न
जुदो छे. आम जे नथी जाणतो ते बहिरात्मा पोतामां आत्माने शरीर ज माने छे ने बीजामां पण तेना शरीरने देखीने
तेने ज आत्मा माने छे. ‘आ ज्ञानी, बोले छे–खाय छे–चाले छे–हसे छे’ एम अज्ञानी देहनी चेष्टाने ज आत्मा तरीके
देखे छे, ने तेनाथी ज्ञानीने ओळखे छे, पण ज्ञानीनो आत्मा तो ज्ञाताद्रष्टा छे, देहथी पार छे ने रागनो पण कर्ता ते
नथी, ते तो आनंद अने ज्ञानरूप परिणमे छे–एम ओळखे तो ज ज्ञानीनी साची ओळखाण थाय; पण एने तो
अज्ञानी ओळखतो नथी; ते तो शरीरनी चेष्टाने ज देखे छे.
शरीरनो नाश के उत्पत्ति थतां जाणे के जीव ज नाश पाम्यो ने जीव उत्पन्न थयो–एम अज्ञानी माने छे केमके
तेणे शरीरने ज आत्मा मान्यो छे. पोतामां पण ‘शरीर छूटतां मारो नाश थई जशे–हुं मरी
जीव पोताना स्वभावने कारण न बनावतां परने कारण बनावे छे ते संसार छे; जो पोताना
स्वभावने कारण बनावे तो शुद्धतारूप परिणमन थाय ने मोक्ष थाय. आत्मानो स्वभाव शुद्धतानुं
ज कारण थवानो छे तेथी तेने कारणपणे जे स्वीकारे तेने शुद्धतारूप कार्य थया विना रहे नहि. हे
जीव! तारी सिद्धिनुं साधन तारा आत्मामां ज रह्युं छे; तारी क्रियाशक्तिने लीधे तारो आत्मा
पोताना ज छ कारको वडे एक अवस्थामांथी बीजी अवस्थारूपे परिणमी जाय छे.–माटे पराश्रयबुद्धि
छोड ने आवा तारा स्वभावनो ज आश्रय करीने निर्मळभावरूपे परिणमवानी क्रिया कर.–एम
भगवान संतोना उपदेशनुं तात्पर्य छे.
–४० मी क्रियाशक्तिनुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं.