Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म
वर्ष पंदरमुं संपादक माह
अंक चोथो रामजी माणेकचंद दोशी २४८४
प्रभुता
हे जीव! सिद्धभगवंतोने अखंडप्रतापवंती स्वतंत्रताथी
शोभित जेवी प्रभुता प्रगटी छे तेवी ज प्रभुता तारा
आत्मामां छे. तारा आत्मानी स्वतंत्र प्रभुताना प्रतापने कोई
खंडित करी शके तेम नथी. अनादिथी तें ज तारी प्रभुताने
भूलीने तेनुं खंडन कर्युं छे; हवे तारा आत्मस्वभावनी
प्रभुताने प्रतीतमां लईने तेनुं अवलंबन कर, तेथी तारी
पामरता टळी जशे ने अखंड प्रतापवाळी प्रभुताथी तारो
आत्मा स्वतंत्रपणे शोभी ऊठशे.
सम्यग्दर्शन थतां ज आत्मामां प्रभुतानो अंश प्रगटे छे;
सम्यग्दर्शन वगरना बधा जीवो, (शक्तिपणे प्रभु होवा छतां)
पामर छे. जे जीव सम्यग्दर्शन वडे आत्मानी प्रभुताने ओळखे
छे ते जीव अल्पकाळमां ‘प्रभु’ थई जाय छे; स्वतंत्रताथी
शोभित एनी प्रभुताना अखंड प्रतापने कोई तोडी शकतुं
नथी. आत्मानी प्रभुतानी प्रतीतनुं आ फळ छे.
–सातमी शक्तिना प्रवचनमांथी.
अध्यात्म–श्रवणनो परम उत्साह अने विनय
“अहा, आत्मामां ज आनंद छे, आत्मा सिद्ध भगवान जेवो छे”–आवा अध्यात्मनुं श्रवण करावनारा संत
मळवा अनंतकाळे बहु दुर्लभ छे. आवा अध्यात्मना श्रवणमां जीवने घणो विनय ने घणी पात्रता जोईए.
(अहीं परमभक्तिपूर्वक गदगदभावे गुरुदेव कहे छे केः)
अहाहा! भावलिंगी संतमुनि मळे ने आवी अध्यात्मनी वात संभळावता होय तो, एना चरण पासे बेसीने..
अरे! एना पगनां तळीयां चाटीने आ वात सांभळीए.
वीर सं. २४८४ कारतक वद त्रीज
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