करी; श्री राम–लक्ष्मण–सीताजी विदेश सीधाव्या.. ने
अयोध्याना राजसिंहासन उपर वैराग्यवंत भरतकुमारनो
राज्याभिषेक थयो..वैरागी भरतनी त्यार पछीनी आ कथा
हवे आगळ चाले छे. (मोटा पद्मपुराणना आधारेः ब्र.
हरिलाल जैन)
वचनना पालननी खातर राम पाछा आवता नथी ने विदेशगमन करे छे. भरतराज उदासीनतापूर्वक, श्रावकधर्म
अंगीकार करीने धर्मपालनपूर्वक राज्य संभाळे छे.
जिनमंदिरो बंधावे छे तेथी ते पर्वत “रामगीरी” तरीके प्रसिद्धि पामे छे. एक वार नर्मदा–किनारे वनमां
गुप्ति–सुगुप्ति नामना चारणमुनिवरोने रामचंद्रजी भक्तिपूर्वक आहारदान करे छे; ए प्रसंग देखीने त्यां झाड
उपर बेठेला एक गृद्धपक्षीने जातिस्मरण थाय छे ने मुनिराजना चरणसमीपे भक्तिपूर्वक पांखो फेलावीने ते
नृत्य करे छे.
मंदोदरी वगेरे हजारो राणीओ पण दीक्षा लईने अर्जिका थाय छे..राम–लक्ष्मण–सीता वगेरे लंकामां रावणना महेलमां
शांतिनाथ जिनमंदिरमां भक्ति करे छे..त्यारबाद त्रण खंडना अधिपति राम–लक्ष्मण, बळदेव–वासुदेव तरीके
अयोध्यानगरीमां प्रवेश करे छे, अयोध्यामां घरेघरे रत्नवृष्टि थाय छे, ने ठेरठेर नवा जिनमंदिरो बंधाय छे. राम–
लक्ष्मण–सीताना दर्शनथी भरत बहु खुशी थाय छे..
तेने रोकयो; ने रामचंद्रजी अतिस्नेहपूर्वक तेने कहेवा लाग्या–हे बंधु! पिताजी ज्यारे वैराग्य पाम्या त्यारे आ
राजसिंहासन उपर तने बेसाडयो छे, तेथी तुं ज आ रघुवंशनो स्वामी छे. आ सुदर्शनचक्र तथा देवो अने विद्याधरो
तारी आज्ञामां रहेशे, हुं तारा शिरे छत्र धरीश, भाई शत्रुघ्न चामर ढाळशे अने लक्ष्मण तारुं मंत्रीपणुं करशे, हे
भरत! जो तुं अमारा वचन नहि माने तो