Atmadharma magazine - Ank 172
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः ४ः आत्मधर्मः १७२
श्री दशरथ महाराजाए वैराग्य पामीने जिनदीक्षा अंगीकार
करी; श्री राम–लक्ष्मण–सीताजी विदेश सीधाव्या.. ने
अयोध्याना राजसिंहासन उपर वैराग्यवंत भरतकुमारनो
राज्याभिषेक थयो..वैरागी भरतनी त्यार पछीनी आ कथा
हवे आगळ चाले छे. (मोटा पद्मपुराणना आधारेः ब्र.
हरिलाल जैन)
श्री राम–लक्ष्मण–सीताना विदेशगमन बाद कैकेयी वगेरेने अत्यंत पश्चात्ताप थाय छे अने तरत ज पाछळ
जईने कैकेयी तथा भरत, राज्यमां पाछा आवीने राज्य संभाळवा रामचंद्रजीने घणो आग्रह करे छे..पण पिताजीना
वचनना पालननी खातर राम पाछा आवता नथी ने विदेशगमन करे छे. भरतराज उदासीनतापूर्वक, श्रावकधर्म
अंगीकार करीने धर्मपालनपूर्वक राज्य संभाळे छे.
आ तरफ रामचंद्रजी वगेरे देशोदेश फरतां, एक वार अति भक्तिपूर्वक देशभूषण–कुलभूषण मुनिराजना
उपसर्ग दूर करे छे ने ते मुनिवरोने केवळज्ञान थाय छे. त्यारबाद “वंशगीरी” पर्वत उपर श्रीराम सेंकडो भव्य
जिनमंदिरो बंधावे छे तेथी ते पर्वत “रामगीरी” तरीके प्रसिद्धि पामे छे. एक वार नर्मदा–किनारे वनमां
गुप्ति–सुगुप्ति नामना चारणमुनिवरोने रामचंद्रजी भक्तिपूर्वक आहारदान करे छे; ए प्रसंग देखीने त्यां झाड
उपर बेठेला एक गृद्धपक्षीने जातिस्मरण थाय छे ने मुनिराजना चरणसमीपे भक्तिपूर्वक पांखो फेलावीने ते
नृत्य करे छे.
एक वार त्रण खंडनो राजा रावण कपटथी सीताने हरी जाय छे; राम–लक्ष्मणने तेनी साथे युद्ध थाय छे, तेमां
लक्ष्मण चक्र वडे रावणनो घात करे छे. रावणना मृत्यु बाद तेना पुत्रो इन्द्रजीत वगेरे तेम ज कुंभकर्ण जिनदीक्षा ल्ये छे,
मंदोदरी वगेरे हजारो राणीओ पण दीक्षा लईने अर्जिका थाय छे..राम–लक्ष्मण–सीता वगेरे लंकामां रावणना महेलमां
शांतिनाथ जिनमंदिरमां भक्ति करे छे..त्यारबाद त्रण खंडना अधिपति राम–लक्ष्मण, बळदेव–वासुदेव तरीके
अयोध्यानगरीमां प्रवेश करे छे, अयोध्यामां घरेघरे रत्नवृष्टि थाय छे, ने ठेरठेर नवा जिनमंदिरो बंधाय छे. राम–
लक्ष्मण–सीताना दर्शनथी भरत बहु खुशी थाय छे..
जेम पिंजरामां पुरायेलो सिंह वनमां जवानी उत्कंठा करे तेम घरथी उदासीन भरतराज घरबार छोडीने
वनवासी मुनि थवा इच्छे छे; एक वार घर छोडीने चाल्या जवानी तैयारी करे छे त्यां कैकेयीना कहेवाथी राम–लक्ष्मणे
तेने रोकयो; ने रामचंद्रजी अतिस्नेहपूर्वक तेने कहेवा लाग्या–हे बंधु! पिताजी ज्यारे वैराग्य पाम्या त्यारे आ
राजसिंहासन उपर तने बेसाडयो छे, तेथी तुं ज आ रघुवंशनो स्वामी छे. आ सुदर्शनचक्र तथा देवो अने विद्याधरो
तारी आज्ञामां रहेशे, हुं तारा शिरे छत्र धरीश, भाई शत्रुघ्न चामर ढाळशे अने लक्ष्मण तारुं मंत्रीपणुं करशे, हे
भरत! जो तुं अमारा वचन नहि माने तो