कहेवा लाग्योः
चार गतिरूप नदीमां हुं डूबुं छुं तेमांथी, हे स्वामी! हस्तावलंबन दईने मने उगारो..” आम कहीने, केवळी
भगवाननी आज्ञा अनुसार जेणे समस्त परिग्रह छोडी दीधो छे एवा ते परम सम्यक्त्वी भरतराजे, पोताना
कोमळ हाथ वडे शिरना केशनो लोच कर्यो, ने महाव्रत अंगीकार करीने जिनदीक्षा धारण करी. अहा! भरतनी
दीक्षाना आ प्रसंगे आकाशमां देवो “धन्य..धन्य” कहेता थका पुष्पवृष्टि करवा लाग्या. हजारथी पण वधारे
राजाओ भरतना अनुरागने लीधे विरक्त थईने, राजऋद्धि छोडी भरतनी साथे ज जिनदीक्षा धारण करीने मुनि
थया, अने केटलाक अणुव्रतधारी श्रावक थया.
करवा लागीः ‘हाय पुत्र! तारा विना हवे हुं केम जीवीश!!’–आ प्रमाणे विलाप करती माताने धैर्य बंधावतां
राम–लक्ष्मणे कह्युंः हे माता! भरत तो पहेलेथी ज महाविवेकी, ज्ञानवान अने संसारथी अत्यंत विरक्त हतो;
तेनो शोक तजो. शुं अमे पण तमारा पुत्रो नथी? अमे तमारा आज्ञाकारी किंकर छीए. कौशल्या–सुमित्रा
तेमज सुप्रभाए पण कैकेयीने घणुं संबोधन कर्युं. तेथी शोकरहित थईने ते प्रतिबोध पामी. शुद्ध मन वडे
पोताना मोहनी ते निंदा करवा लागी, अरे! धिक्कार छे आ स्त्री पर्यायने; हवे जिनदीक्षा धारण करीने
एवो उपाय करुं के जेथी फरीने स्त्रीपर्याय न धरुं ने भवसागरने तरुं. आम आम विचारी महाज्ञानवान
अने सदा जिनशासननी भक्त एवी ते कैकेयी, महावैराग्यथी पृथ्वीमती आर्यिकानी पासे आर्यिका थई.
निर्मळ सम्यक्त्वनी धारक कैकेयीए समस्त परिग्रह त्यागीने मात्र एक श्वेतवस्त्र धारण कर्युं. तेनी साथे बीजी
त्रणसो स्त्रीओ आर्यिका थई. अने बीजा अनेक जीवोए श्री देशभूषण–कूलभूषण केळवी भगवाननी समीपे
श्रावक–श्राविकाना व्रत धारण कर्यां.
पंदर–पंदर दिवसना, के महिना–महिनाना उपवास करवा लाग्यो, ने सुकां पान वडे पारणुं करतो हतो.
संसारथी भयभीत अने उत्तम चेष्टामां परायण एवो ते त्रिलोकमंडन हाथी लोको वडे पूज्य एवी
महाविशुद्धिने धारण करतो पृथ्वीने विषे वनजंगलमां विचरवा लाग्यो. क्यारेक पंदर दिवसना, तो क्यारेक
महिनाना उपवास करीने तेना पारणे ज्यारे गाममां आवे छे त्यारे श्रावको अतिभक्तिपूर्वक शुद्ध अन्न
जळवडे तेने पारणुं करावे छे. (सोनगढ–स्वाध्याय मंदिरमां आ प्रसंगनुं चित्र छे.) जेनुं शरीर क्षीण थई गयुं
छे अने वैराग्यरूपी खीले जे बंधायेलो छे एवो ते हाथी उग्र तप करतो हतो, ने धीमे धीमे आहार त्यागीने
अंतसल्लेखनापूर्वक शरीर तजीने छठ्ठा स्वर्गमां देव थयो. पहेलां छठ्ठा स्वर्गेथी आव्यो हतो ने छठ्ठा स्वर्गे ज
गयो; त्यांथी परंपरा मोक्ष पामशे.