Atmadharma magazine - Ank 173
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४८४ः ९ः
न माने, तेमज आ आत्मानुं कार्य पोताथी भिन्न क्यांय परमां होवानुं न माने. आ रीते पर साथेनो संबंध
तूटीने स्वमां ज एकतारूप अभेद परिणमन थतां त्यां विकाररूप कार्य पण रहेतुं नथी, स्वभावमां अभेदरूप
निर्मळ भाव ज त्यां वर्ते छे.–आवा वर्तता सिद्धरूप भावने कार्यपणे प्राप्त करे एवी आत्मानी कर्मशक्ति छे.
जेणे जडना कामने के विकारने–शुभ–विकल्पने पोताना कार्य तरीके मान्युं तेणे आत्माना स्वभावने जाण्यो
नथी, तेथी तेने धर्मकार्य थतुं नथी–अधर्म ज थाय छे. धर्मी–साधकने य दया–भक्ति–पूजा–जात्रा वगेरेनो शुभ
राग थाय छे परंतु ते रागने पोताना स्वभावनुं प्राप्य मानता नथी, तेने स्वभावनुं कार्य मानता नथी...ते
वखते स्वभावमां एकताथी जेटली निर्मळता वर्ते छे तेने ज ते पोताना कार्य तरीके स्वीकारे छे;–ए ज धर्मीनो
धर्म छे.
निर्मळपर्यायरूप कर्मपणे थवानी शक्ति आत्मानी छे, एटले ते निर्मळ कार्य प्रगट करवा माटे क्यांय बहारमां
जोवानुं नथी रहेतुं पण आत्मामां ज जोवानुं रहे छे; आत्मस्वभावना अंर्त–अवलोकनथी ज निर्मळ कार्यनी सिद्धि
थाय छे, बीजी कोई रीते तेनी सिद्धि थती नथी.
जडमां के विकारमां एवी ताकात नथी के ते निर्मळपर्यायने पोताना कर्म तरीके उपजावी शके.
निर्मळपर्यायमां पण एवी ताकात नथी के बीजी निर्मळपर्यायने पोताना कर्म तरीके ऊपजावी शके. पूर्वपर्यायने
कारण कहेवाय छे ते तो उपचारथी छे, खरेखर तेनो तो अभाव थई जाय छे तेथी ते बीजी पर्यायनुं कारण नथी,
पण पूर्व पर्यायमां वर्ततुं अखंड द्रव्य ज पोते परिणमीने बीजा समये बीजी पर्यायने कर्मपणे प्राप्त करे छे–पोते
ज अभेदपणे ते कर्मरूपे थाय छे; ए रीते निर्मळपर्यायरूप कर्म करवानी ताकात द्रव्यमां ज छे, द्रव्यमां ज
शुद्धतानो भंडार भर्यो छे; तेना आश्रये ज शुद्धता थाय छे. तेनो आश्रय न करे ने निमित्त वगेरेनो आश्रय
करीने शुद्धता थवानुं माने ते जीव पोतानी आत्मशक्तिने नहि माननारो मिथ्याद्रष्टि छे. स्वभावशक्तिना
आश्रये ज निर्मळता थाय छे, एटले के निश्चयना आश्रये ज धर्म थाय छे ने व्यवहारना आश्रये धर्म थतो ज
नथी–एवो अनेकांत–नियम आमां आवी जाय छे. आचार्यभगवाने आ शक्तिओना वर्णनमां अद्भुत रीते
जैन शासनना रहस्यनी सिद्धि करी छे. पूर्वे अनंता तीर्थंकरो–गणधरो–संतो–समकितीओए आवो ज मार्ग
जाणीने आदर्यो छे ने कह्यो छे; वर्तमानमां पण महाविदेहक्षेत्रे सीमंधरादि वीस तीर्थंकरो बिराजमान छे, ते
तीर्थंकरो तेमज गणधरो–संतो वगेरे पण आवो ज मार्ग जाणीने आदरी रह्या छे ने कही रह्या छे; भरतक्षेत्रमां
पण आवो ज मार्ग छे, ने भविष्यमां पण जे तीर्थंकरो–संतो थशे ते बधाय आवा ज मार्गने आदरशे ने कहेशे.
अहो! एक ज सनातन मार्ग छे.–आ मार्गनो निश्चय करे त्यां मुक्तिनी शंका रहे नहि. आ मार्ग नक्की कर्यो त्यां
एम आत्मा साक्षी आपे के बस! हवे अमे अनंता तीर्थंकरोना–संतोना–ज्ञानीओना मार्गमां भळ्‌या! हवे
संसारनो छेडो आवी गयो ने सिद्धिना मार्गमां भळ्‌या.
आत्मामां ज एवी ताकात छे के पोताना स्वभावमांथी सम्यग्दर्शनादि कार्यने प्राप्त करे; ए सिवाय कोई
पण पुण्यरागमां एवी ताकात नथी के ते सम्यग्दर्शनादिने प्राप्त करे. कर्ता पोते परिणमीने जे कार्यरूप थाय ते
तेनुं कर्म छे. आत्मा ज परिणमीने सम्यग्दर्शनादिरूप थाय छे, राग के निमित्तो परिणमीने कांई ते–रूप थता
नथी. अहो! मारा निर्मळ कर्मरूपे थवानी कर्मशक्ति मारामां ज छे–एम पोताना आत्माने प्रतीतमां लईने तेनी
सन्मुख थतां आत्मा पोते परिणमीने पोताना निर्मळ कर्मरूप थई जाय छे. सम्यग्दर्शनरूप कार्य, सम्यग्ज्ञानरूप
कार्य, सम्यक्चारित्ररूप कार्य– ए कर्मरूपे आत्मा पोते पोतानी कर्मशक्तिथी थाय छे; पण महाव्रतादि विकल्पोना
आधारे के शरीरनी दिगंबरदशाना आधारे कांई सम्यग् कार्य थतुं नथी. ‘कर्मशक्ति’ कोई परना आधारे के
विकल्पना आधारे नथी एटले ते कोई आत्माना कर्मरूपे थता नथी; एकली पर्यायना आधारे पण कर्मशक्ति
नथी एटले पर्यायना आश्रये निर्मळ कर्म प्राप्त थतुं नथी अथवा पर्याय पोते बीजा समयना कर्मपणे थती नथी.
कर्मशक्ति तो आत्मद्रव्यनी छे, तेथी आत्मद्रव्यना आश्रये आत्मा पोते निर्मळ कर्मरूपे परिणमी जाय छे. आ
रीते आत्मा अने तेनुं कर्मनुं अभेदपणुं छे. ए अभेदना आश्रये ज कर्मशक्तिनी यथार्थ प्रतीत थाय छे. आमां
व्यवहारना आश्रये निर्मळ कार्य थाय–